शज्त्थात प्रगता बायमाता

प्रधान सम्पादक-पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचारये

/ सण्यानय सम्चालक, राजएपान गाच्यविद्या यक्तिष्ठहान, जोधपुर

ग्रन्थाकझू ३५

कषि हेमरतन कृत

गोरा बादल पद्मिणी चउपई

सम्पादक

डॉ० उदयर्सिह मटनागर, एम० ए०, पी-एच० डी० प्राध्यापक, हिंदी विभाग, विक्रम विदवधिद्यालय, उज्जेन

प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित

राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोघपुर ( राजस्थान ) विक्रमाब्द २०२३ भारतराष्ट्रीय शकाब्द प्रथमावृत्ति ७५०

खिस्ताव्द १६९६६ श्प्ण८ सल्य- ५,००

मुद्रक- १. मूल पाठ-निर्णयसागर प्रेस, बम्बई २. शोष-श्री हरिप्रसाद पारोफ, साधना प्रेस, जोधपुर

सउठ्चाक्कीय वक्तव्य

कोई ५० वर्ष पूर्व, जब हम पाठण के जैन-भण्डारों का श्रवलोकन कर रहे थे तब हमें हेमरत्न की इस रचना का प्रथम परिचय प्राप्त हुआ | मेवाड़ और चित्तौड़ के प्राचीन इतिहास को जानने की हमारी रुचि बचपन से ही बनी हुई थी हमने हैमरत्न की इस रचना को भी प्रकाह में लाने का तभी मनोरथ कर लिया था। श्पने देश के प्राचीन इतिहास के अज्ञात, श्रप्रकाशित, एवं अ्रलभ्य ऐसे साधनों को-प्रबन्धों, ग्रस्थो, शिलालेखों, प्रशयस्तियो आदि को प्रकाश में लाने का हमारा सतत लक्ष्य रहा और इस दृष्टि से श्राज तक श्रनेकानेक श्रप्रका- हित ऐतिहासिक साधन-सामग्री को प्रकाशित करने का प्रयत्त भी करते रहे हैं

सवत १६३९ में उदयपुर में राजस्थान हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन में हमारा झाना हुआ और हमने राजस्थान के प्राच्चीन इतिहास की सामग्री का अन्वेषण, सशोधन, प्रकाशन श्रादि कार्य के विषय में भी श्रपने राजस्थानी बधुओ को समयोचित प्रेरणा दी उसके बाद तुरन्त ही, प्रो० श्री उदयसिहजी भटनागर बम्बई में हमारे पास भारतीय विद्या-भवत्त के एक शोधकर्ता विद्याभिलाषी क्रे रूप से पहुँचे मैंने इतको उसी समय पद्मिनी की लठपई ज़ैसी रचना का श्रष्ययन शोर अनुसन्धान करने का सुझाव दिया मेरे पास जो इसकी प्रतिया थी वें इतको दी इन्होने कार्य प्रारम्भ किया, परतु बाद मे ये वहा से चले गये और श्रपते श्रन्य कार्य-क्षेत्र में लग गये सन्‌ १६९५० में जब राजस्थान के इस प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान क्री सुल रूपरेखा बनी तो हमने इस प्रकार के राजस्थान के प्राचीन इतिहास के श्रनेक ग्रन्थ प्रसिद्धि मे लाने का कार्यक्रम बत्ताया कान्हडदे प्रबन्ध, क्यासखां रासा, लावा रासा, वीरमायण, मुहता नशासी री ख्यात, बांकीदास री ख्यात सुरजप्रकाश श्रादि ग्रन्थ इसी कार्यक्रम के श्रनु- सार यथा-समय प्रकाशित किये गए प्रस्तुत 'पदमिणी चडपई' भी उसी कार्यक्रम में सम्मिलित थी डॉ० भठनागर ने इस बीच अपना क़ाय्ये चालू रखा और उन्होने इस रचना - पर पी-एच० डी० को पदवी प्राप्त करने के लिये विस्तत निबन्ध भी तैयार किया जब मैंने पहलें-पहल इनको यह कार्य करने की प्रेरणा दी थी उसके कोई १२ वर्ष अनन्‍्तर ये मुझे जयपुर में मिले मैंने इनके कार्यों को देखा और सूचित किया कि यदि ये इसकी सुसपादित प्रति तैयार कर सके

उसको 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशित कर दिया जाय न्होने सत्षें स्‍्दीकार किर' # तदमनुसार मैने तत्काल इसको बम्बई के सप्रसिद्ध

निर्णयसागर छस से हएग “या परन्तु श्री भटतागरजी को कुछ निजी

[ ]

कठिनाइयों मे उलझे रहना पडा, श्रतः इसका मुद्रण-कार्य बहुत घीरे धीरे चला श्राखिर में, फिर १२ वर्ष वाद श्रब यह ग्रन्थ छपकर पूरा हुआ है श्लौर राज- स्थानी साहित्य एवं इतिहास के प्रेमियों के करकमलो में उपस्थित हो रहा है

हमारी मूल योजना तो थी कि हम इस हेमरत्न की रचना के साथ, लब्धो- दय, भागविजय श्रादि को रचनाश्रो को भी एक ही सग्रह के रूप में प्रकाशित करें श्रौर उनका तुलनात्मक विवेचन भी उपस्थित किया जाय। परन्तु, उक्त रूप से हेमरत्न की रचना ही को पूर्ण होने में श्रसाघारण विलम्ब हुग्रा देखकर हमें उक्त विचार को स्थगित रखता पडा तथापि, हमें यह देख कर बहुत सतोष हुआ कि बीकानेर-निवासी नाहठा बघुओ के सदुद्योग से लब्धोदय-रचित पद्मिनी चउपई की भी एक सुन्दर श्रावृत्ति प्रकाशित हो गई है

डॉ० भटनागरजी ने प्रस्तुत सस्करण को सुसपादित करने के लिए बहुत ही परिश्रम उठाया है। भिन्न-भिन्न प्रतियो के विविध पाठो का संकलन और सन्नि- वेश बडे अच्छे ढंग से किया है। जिस प्रकार, इस ग्रन्यमाला मे प्रकाशित 'कान्हडदे प्रवन्ध' का उत्कृष्ट सस्करण हमारे परभप्रिय विद्वान मित्र प्रो० के वी व्यास ने प्रस्तुत किया है, उसी प्रकार डॉँ० भटनागर ने प्रस्तुत गोरा बादल पदमिणी चउपई' का यह सुन्दर सस्करण तैयार किया है इस प्रकार की प्राचीत क॒तियो के प्रमाणिक सस्करण तैयार करने वालो के लिए डॉ० भटनागर का यह सम्पादत श्रादर्श माना जाना चाहिए ५२

हम इसके लिए डाँ० भटनागरजी का अपना हार्दिक श्रभिवादन करते हैं प्रस्तुत 'पदर्मिणी चउपई' की मूलभूत श्रादर्श प्रति जो सवत्‌ १६४६ में लिखी हुई हैँ वह स्वय वनेडा निवासी स्वर्गीय वेरिस्टर श्री रविशकरजी देराश्री मे हमे जयपुर में दिखाई थी हमारा विचार था कि उस प्रति के श्राद्यन्‍्त पत्रो के ब्लॉक वना कर इस पुस्तक में दें दिए जावे, परन्तु बहुत कुछ प्रयत्न करने पर भो स्व० देराश्रीजी के वशजो से हमें यह सुविधा प्राप्त नही हुई। आशा है राजस्थानी-साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान्‌ इस प्रकाशन का यथोचित समादर करेंगे

मुनि जिनविजय

चैत्र शुक्ला (रामनवमी) स० २०२३ दिनाक ३१ मार्च, ६६६

राजस्थान प्राच्य-विद्या प्रतिष्ठान जोघपुर

प्रस्तावना

ग्राभार निवेदन

सन्‌ १६४०-४१ में मेने उदयपुर से श्रौर उसके आरासपास के गांवों तथा ठिकानों मे प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज कर लगभग २००० ग्रन्धो के विवरण लिये थे। इस खोज मे मुझे पद्मिनी की कथा से सम्बन्धित अनेक रचता- प्रतियाँ देखने को मिली। इसी समय श्राचारयं मुन्ति जिनेविजय जी से मेरा सम्पकं हुआ दो वर्ष तक बम्बई मे भारतोय विद्या भवन मे उन्ते साथ रह कर विद्याभ्यास कर ज्ञान से लाभान्वित हुआ। 'पदमिनी चठेपई' भी उस कायें- क्रम का एक प्रधान श्रग रहा इसका एक आआलोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रेरणा मुनिजी से प्राप्त हुई ओर इस कार्य को मैंने बम्बई मे रहकर पी- एच० डी० के लिये थीसिस के रूप मे श्रंग्रेजी में तैयार किया हिन्दी के प्रति विशेष श्राग्रह होने के कारण मन माना मेंने बम्बई विद्वविद्यालयस से हिन्दी में थीसिस प्रस्तुत करने को भ्राज्ञा माँगी, पर श्राज्ञा मिली; हाँ, इस बांत की श्राज्ञा तो मिली कि में उसे हिन्दी में लिखित किसी भ्रन्य-जो लेता चाहे उस- विश्वविद्यालय को प्रस्तुत्त करूँ तो बस्बई विश्वविद्यालय को कोई शआ्रापत्ति नही होगी कार्य शिथिल पड़ गया इस बीच हिन्दी मे पुत. थीसिस लिखने के पूर्व किसी विश्वविद्यालय की खोज का प्रशइन सामने भ्रा गया कार्य चलता रहा नवीन सामग्री नवीन अनुभवों के साथ जुड़ती रही राजस्थान विश्व- विद्यालय स्थापित हुआ १६६२ मे मेंने 'हेमरतन कृत पद्सिणि चउेपई-एक परिपूर्ण श्रालोचनात्मक सस्करण तथा, उसकी भाषा--राजस्थानी वि० स॒० १६४५-का वैज्ञानिक श्रध्ययन'-थीसिस प्रस्तुत किया | वह स्वीकृत हो गया भोर मुक्ते पी-एच० डो० की डिग्री भी प्राप्त हो गई

यह सब हुआ मुनिजी की प्रेरणा, प्रोत्साहन और प्रबोधन से। शझ्राभार मुझे प्रकट करना है--पर किन भावनाओं मे, किन छाब्दो मे ? एक शिष्य जिसके पास वाणी नही, शब्द नहीं-वह अ्रपनती वाणी की कगाली को भी प्रकट करने में असमथ्थे है, आभार तो उसके लिये बहुत भारी है--बलिहारी गुरु श्रापण, जिन युरु दियो बताय ।”

है]

गोरा बादल पद्मणी धठेपई

काम कुछ जटिल हो गया--अनेक संकट श्औौर कठिनाइयाँ, जीवन की ऊवडखाबड भूमियों के बीच जीवन भ्रौर मरण, ये सब-

डेहली डोर साबाण सराचा, कटक तणा सिणगार

घडिया जोणी, साँढ पलाणी, पूठ परठिया भार और मैं चला | कथा कुछ दुखद हो गई

बडौदा विश्वविद्यालय मे जाने के पश्चात मुनिश्री ने फिर स्मरण दिलाया

कि तुके यह करना है; और इसके प्रकाशन का श्राशवासन भी मुझे मिला हेमरतन की जितनी प्रतियाँ मुझे; बम्बई तक प्राप्त हुईं उनका उपयोग मैने बम्बई में ही कर लिया था। इसके बाद मुझे इसकी एक प्राचीनतम प्रति मिल गई जिसने इस सस्करण का आधार प्रस्तुत किया श्रव प्रेस-प्रति तैयार करने मे फिर से उतना ही कार्य बढ गया जितना किसी आलोचनात्मक सस्करण का श्रारम्भ से अन्त तक होता है। अत, जितना-जितना काम होता जाता उतना- उतना में मुनिजी को भेजता जाता और वह छुपत्ता जाता इसी बीच में अनेक वाधाए उपस्थित हुईं मेरी पत्नी की निराशाजनक शअ्रवस्था ने मेरे सयम श्रोर मानसिक सन्तुलन को बिलकुल नष्ट कर दिया मुनिजी की प्रेरणा और उनके उत्साहवद्धतल ने इस कार्य को समाप्त करने मे सहायता की प्रूफ देखने तथा मूल पाठो को सुधारने का कार्य भी मुनिजी को ही करना पडा कार्य समाप्त हो गया श्रौर इधर प्रत्ती की जीवन लीला भी समाप्त हो गई

भूमिका का कार्य रुक गया | प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन रुक गया। श्रत. इसका प्रकाशन देर से हो रहा है। श्राशा है पाठक मेरी विचशता को समभेगे मुनिजी इस अवस्था मे भी अपने कार्य मे सलग्त रहते हैं श्रपने कार्य मे व्यस्त रहते हुए भी उन्होने मुझे प्रेरणा दी, उत्साहित किया और मार्ग-दर्शन भी उनकी मुक पर कृपा है, उनका आझ्ाभारी हूँ | एक शिष्य पर गुरु की कृपा

का भार तो जीवन भर ही रहता है, वह तो उसकी सम्पत्ति है, उसका प्रदर्शन फ्र वह उसको लौटाना नही चाहता

बंशाखी मगलवार, १३ शअप्रेल, १६६५ विक्रम-विद्वविद्यालय, उज्जैन

उदयसिह भठनागर

प्रस्तुत संस्करण

पश्चिनों की कथा को लेकर जायसी कृत 'पदमावत' हिन्दी साहित्य के क्षेत्र मे बहुत प्रसिद्ध है। श्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल वे जायसी की श्रन्य रचनाओं के साथ इसका भी उद्धार क्रिया। 'मिश्रबन्धु विनोद तथा शुक्लजी के हिन्दी साहित्य का इतिहास” मे लब्धोदय (लक्षोदय) कृत 'पद्मिनी चरित्र' की सूचना मिलती है। इधर नागरी प्रचारिणी पतन्निका के पुराने भ्रको मे जटमल नाहर कृत 'गोरा बादल की कथा” के गद्य मे लिखे जाने के विषय में भी विवाद चला था | राजस्थान मे हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थो की खोज मे मुझे अपनी यात्रा में इन रचनाओ्रो की श्रनेक॑ हाथ-पडतो की छान-बीन मे हेमरतन करत गोरा बादल प्रदमिणि चठेपई” के साथ भागविजय (श्र सग्रामसूरि) कृत 'गोरा बादल पदमिशि चठेपई' की भी अनेक प्रतियाँ प्राप्त हुईं इन सब मे जायसी को छोड कर श्रन्य सभी रचनाशो के मुल मे हेमरतन की रचना ही श्राधार रूप मे बनी है | हेमरतन ही इस रचना का मूल लेखक है।

वि० स० १६४५ मे हेमरतल ने अ्रपने इस काव्य की रचना की थी। वि० स० १६८० मे जटमल नाहर ने हेमरतन की रचना का एक विक्ृत रूप गोरा बादल की कथा” नाम से प्रस्तुत किया था यह रचना गद्य मे होकर पद्य मे लिखित है। फिर वि० स० १७०६ में लब्धोदय ने हेमरतन की रचना को ही गेय रूप प्रदाव कर “पद्चिनी चरित्र! नाम से विविध ढालो मे ढाला। वि० स० १७६० में भागविजय ने श्रीर उसके कुछ वर्ष पूर्व संग्राम सूरि ने इसके परिवर्तित और परिवद्धित सस्करण तैयार किये। इस प्रकार पश्चिनी की कथा को लेकर रचित काव्यो को निम्न लिखित वर्गमो मे रखा जा सकता है

श्रज्ञात वर्ग : सम्भवत. बन अथवा श्रन्य कोई चारण कवि | बेन का उल्लेख जायसी ने 'पदमावत'” मे किया है-'कथा अ्ररम्भ बैन कवि कहा' इसी प्रकार हेमरतन की रचना में 'हेतमदान कविमल्‍ल भणि' (२१।१५४) आया है

जायसी वर्ग: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'पदमावत' के प्रथम सस्करण में अपने पूर्व के चार सस्करणो का उल्लेख किया है। उक्त सस्करणा को उन्होने प्रामाणिक हस्तलिखित प्रतियो के श्राघार पर तैयार किया था इसके पछ्चात्त डा० माताप्रसाद गुप्त ओर डा० वासुदेवशरण अग्रवाल के दो भिन्न (पर दूसरा पहले पर श्राधारित) प्रामाणिक सस्करण प्रकाहित हुए। मैंने इस सस्कररा मे तुलना के लिये इन तीनो का उपयोग किया है।

गोरा बादल पदमणी चडेपई

३. हेमरतन वर्ग : इस लेखक की श्रनेक रचनाएँ खोज मे प्राप्त हुई प्रस्तुत रचना 'पदमिणी चठेपई' की ही अनेक प्रतियाँ प्राप्त हुई उनमे से निम्न लिखित प्रतियाँ महत्वपुर्ण हें--

(१) श्री रविशंकर देराश्री (बनेड़ा) की प्रतिः--उक्त प्रति की एक फोटो प्रति श्री देराश्नी ने मुझे उपयोग के लिये दी थी इसमे रचना- काल बवि० स० १६४५४ दिया गया हें श्रीर लिपिकारू १६४६॥। हसमे प्रशस्ति सहित कुल ६१८ छन्द है पर यह हेमरतन की मूल प्रति नही है भरत स० १६४६ मे लिपीक्ृषत मूल प्रति ही इसमे जो क्षेपक दिये गये है उनसे लगता हैं कि यह उक्त सवत १६४६ मे लिखित किसी हाथ-पड़त की प्रतिलिपि है। फिर भी यह मूल रचना के सबसे भ्रधिक सन्निकट है और पाठ भी सबसे अ्रधिक बुद्ध और मौलिक है

(२) मुनि श्री जिनविजयजी की दो प्रतियाँ --पहली प्रति मे रचना- काल सं० १६४५ श्रौद लिपिकाल सं० १६६१ है इसका श्राकार १० इच लम्बा और ४-५ इच चौडा है। इसमे २० पत्र और ६५४ छन्द हे पाठ की हृष्टि से उक्त भाषा के विकसित रूपों का प्रयोग इसमे मिलने लगत्ता है। दूसरी प्रति जो ऊपरवाली (पहली) प्रति के श्रधिक सन्निकट है, वि० स० १७२९ की लिखित है। इसका श्राकार पौने दस इंच लम्बा और साढ़े चार इन्च चौड़ा है २६ पत्नो पर ६५१ छन्द हे इसमे पहली प्रति की भाषा के भ्रधिक विकप्तित रूप मिलते हूँ

(३) वद्ध॑मान ज्ञान मन्दिर, उदयपुर की.प्रति:--यह प्रति वि० सं० १७८४५ से ढाका मे लिखी गई थी। इसका अआ्राकार इच लम्बा और ५, डच, चौड़ा हैं। इसमे १०२ पन्नों पर ६७५ छन्द दिये हैं। ' यह प्रति खण्डित है भर श्रार्म्भ के ६१ छन्द त्रष्ट होगये हैं ।, क्षेपक तथा पाठा- न्तर होने पर भी इसके छन्द मूल छन्दो के श्रधिक सन्निकट हैं

(४) अ्रन्य प्रतियो मे माणिक्य ग्रन्थ भण्डार, भींडर की कुछ प्रतियां झ्ोर श्रॉरिएन्टल इन्स्टीट्यू 5, बडोदा की प्रतियां भी उल्लेखनीय हैं ये पाठ की दृष्ठि से उतनी शुद्ध नही है गुजरात विद्या सभा, श्रहमदाबाद, भाण्डारकर इन्स्टीट्यूट, पूना, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी में भी इसकी प्रतियाँ सुरक्षित हैं

जटमल वर्ग . इसकी श्रनेक प्रतिया मिलती हैं कुछ में पाठान्तर श्रौर मापान्तर भी हो गया है। ऐसी ही एक प्रति की नकल मुनि जिनविजयजी के

प्रसत्तावनां

सग्रह मे भी है। यह उन्होने अ्रपनी बीकानेर यात्रा मे लिखवायी थी इसका एक प्रकाशित सस्करण भी मिलता है। कुछ हस्तलिखित्त प्रतियों के भ्राधार पर प० अयोध्यानाथ दरर्मा ने इसका सम्पादन कर तरुण भारत ग्रन्थावली, दारागंज, प्रयाग में प्रकाशित करवाया था। प्रकाशित रचना खड़ी बोली के शअ्रधिक निकट है जो हस्तलिखित प्रतियो से भिन्न है।

लब्धघोदय वर्ग : इस वर्ग की चार प्रतिया उल्लेखनीय हैं--

(१) सवत्‌ १७४३ की लिखित प्रति:--इसमे ७८० छन्द हैं। इस समय यह उदयपुर के सरस्वती सदन में सुरक्षित है

(२) स० १७६१ की लिखित प्रति:--इसका श्राकार &”»८६ २” है। यह मारिएय ग्रन्थ भण्डार, भीडर (उदयपुर के पास) में सुरक्षित है इसमें ६१ पत्र और ८११ छन्द हैं

(३) सवत्‌ १८२३ की लिखित प्रति:--यह सरस्वत्ती सदन, उदयपुर में सुरक्षित है इसमें ८०३ छन्द हैं।

(४) संवत्‌ १८६५ की लिखित प्रति--यह भी मारिक्य ग्रन्थ भण्डार, भीडर के सग्रह में हैं। इसका श्राकार १३ ५” ८८४” है। इसमें ८०० छन्द हैं। लिपि अधिक भ्रष्ट है

भागविजय वर्ग : इस वर्ग में केवल वे ही रचनाएँ ली गई हैं, जिनमे सग्राम सूरि के क्षेपक भी सम्मिलित हैँ ऐंसी कोई प्रति नहीं मिलती जिसमे केवल संग्राम सूरि अथवा केवल भागविजय के ही क्षेपक हो इस वर्ग की निम्नलिखित प्रतिया महत्वपूर्ण हैं

(१) माणिकय ग्रन्थ भण्डार, भीडर की दो प्रतियां --इनमे पहली वि० स०१७६० की लिखित है शोर दूसरी सवत्‌ १७७१ की इनमे पहली प्रति लेखक की मूल हाथ-पड़त लगती है श्रोर दूसरी उसी की , प्रतिलिपि पहली का श्राकार १०”)८४” है इसमे ३१ पृष्ठ भौर प्रशस्ति सहित ६१६ छन्द हैं दूसरी का झाकार १०”,८४.५” है। इसमे ३८ पत्र हैं भ्ौर ६१७ छन्द हैं

(२) श्रॉरिएन्टल इन्स्टीट्यूट बडौदा की स० १७८३ की लिखित प्रति:--इसका पाठ अधिक छुद्ध नही हैं प्रस्तुत सस्कररा के लिये हैमरतन वर्ग श्रौर भागविजय वर्ग ही श्रधिक

उपयोगी सिद्ध हुए हैँ जायसी श्रौर जटमल की रचनाएँ प्रकाशित हैं | लब्धोदय

द्ृ गोरा बादल पदम्णी चठेपई

के 'पद्चिवी चरित्र' के एक स्वतन्त्र सस्करण का प्रकाशन श्रपेक्षित है भागविजय की रचना हेमरतन की रचना का ही परिवर्तित और परिवर्धित सस्करण होने के कारण पाललोचन श्र पाठ्शोधन के लिये उसका उपयोग करते हुए उसको नीचे पाठान्तर मे रखा गया हैं। इस प्रकार उपयु कत प्रतियों मे जिनका प्रयोग प्रस्तुत सस्करण मे किया गया है उतका नामकरण निम्न प्रकार से किया गया है--

१. 2 प्रति - हेमरतन वर्ग की प्रति सख्या देराश्रीवाली प्रति वि० स० १६४६ की लिखित प्रति - हेमरतन वर्ग की प्रति सख्या मे उल्लिखित पहली प्रति वि० स० १६६१ की लिखित प्रति -हेमरतन वर्ग की प्रति सख्या मे उल्लिखित दुप्तरी प्रति वि० स० १७२९ की लिखित 9 प्रति - हेमरतन वर्ग की प्रति सख्या में उल्लिखित बद्धेमान ज्ञान मन्दिर, उदयपुर की वि० स० १७८४ की ढाका मे लिखित खण्ड प्रति।_- 5 प्रति - भागविजय वर्ग की प्रति सख्या में उल्लिखित पहली प्रति वि० स० १७६० मे रचित श्रोर लिखित मूल प्रति उपर्युक्त प्रतियो के छन्‍्दों की तुलना और निरीक्षण से एक उलमन उप- स्थित हुई। प्रत्येक प्रति में क्षेपकों के श्रतिरिक्त अनेक सुभाषित, उक्तिया, और प्रसंगातु्तार अन्य श्रनेक कवियो की रचनाओ के उद्धरण भी थें। इन सभी पर एक ही क्रम में छन्‍्दर सख्या अकित थी यहा तक कि सबसे प्राचीन स० १६४६ की लिखित प्रति में भी यही स्थिति थी। इधर कई प्रशस्तियों के अ्रनुसार हेमरतन के मूल छनन्‍्दों की सख्या ६१६ (पटसित षोडस) होनो चाहिये, जब कि प्रत्येक प्रति में छन्‍्द इससे श्रधिक सख्या से थे। स० १६४६ वाली प्रति में भी यही स्थिति वत्तेमान थी। प्रत्येक प्रति के छुन्दों की पारस्परिक तुलना श्र सूक्ष्म निरीक्षण से हेमरतन के मूल छुन्दों की खोज मे बहुत सहा- यता मिली इस तुलना से प्रत्येक प्रति की छनन्‍्द सख्या की स्थिति निम्न- लिखित देख पडती है :--

प्रति स्वीकृत छुन्द अस्वीकृत छुन्द प्रति के मूल छन्द है. ६०४ ६१०

६१२ डर द्र४

( ६०६ ; डर ६५९१

2 ६०६ ६६ ६७५

श्ध्र ३०२ घ्श््ड

प्रत्तावना हु |

स्वीकृत मूल छनन्‍्द इस प्रकार हैं-- .- 8 प्रति में मूल स्वीकृत (हेमरतन कृत) ६१६ छन्‍्दो में से १२ छन्द कम हैं (६१६-६०४)

5 79 $$ १5 $$ 9) 9) 9 १7 (६ १६-०६ १२) ( ,, हुए 79 १9... 9$ , +$ (६१ ६-६० ६) 7 ,, 7 93 हक शा $४ (६ ६-६०९) &छ,, क्र हक 39 78 ऐए $+ 3४ (६ १६०५६ २)

प्रत्येक प्रति मे जो छुन्द कारण विद्येष से क्षेपक माने गये हैं, उन्हें नीचे टिप्पणी मे दे दिया गया है। प्रत्येक प्रति के स्वीकृत तथा अ्रस्वीकृत छन्दो में कई छन्द पूर्ण नही हैं कही-कही क्षेपक रूप मे एक एक श्रद्धाली जोडी गई है श्रौर कही कैेपकोी मे मूल छन्द का कोई श्रश है। श्रत. प्रत्येक प्रति मे इस स्थिति की सूचना यथास्थान दे दी गई है

छन्द-निर्णय के पश्चात्‌ पाठ-निर्णय भी झावश्यक है। प्रस्तुत प्रतियो में कीई भी प्रति हेमरतन की मूल प्रति नही है। तो किसी मे हेमरतन द्वारा रचित पूरे ६१६ छन्द ही हैं श्रौर कोई भी प्रति क्षेपको से सर्वंथा मुक्त ही है। पर विभिन्न प्रतियो मे से हेमरतन के ६१६ छन्द श्रवश्य निकल जाते हैं ऐसी स्थिति मे उनके पाठो की समस्या सामने भरा जाती है | श्रत पाठ सशोधन - के लिये निम्नलिखित झ्ाधार निश्चित किये गये--

१. प्रतियों फी प्राचीनता का श्राघार ; सामान्य रूप से सब से प्राचीन प्रति को श्राधार मान कर पाठ-निर्णय करने की एक हौली परम्परा से चली आती है। परन्तु कभी-कभी प्राचीनतम प्रति भी लिपिकार के श्राग्रह से मुक्त नही होती ऐसी स्थिति मे वह उतनी सहायक नही होती जितनी ग्रत्य प्रतियाँ यहाँ & प्रति मल रचना के एक वर्ष पश्चात लिखित प्रति की प्रतिलिपि है। परन्तु यह भी पाठान्तरो और क्षोपको से मुक्त नही है श्रन्‍्य प्रतियो में पाठान्तर श्रधिक होने पर भी कही-कही पाठ-निर्णय मे उनसे बडी सहायता मिली है। इस दृष्टि से प्रति उल्लेखन्तीय है जिसमे सबसे श्रधिक पाठान्तर और क्षेपक होते हुए भी अ्रनेक स्थलो पर प्रति से मेल खाने से वह पाठ-निर्णय मे सहायक हुई है, जैसे--

है| 2: 2 भ्रबकद्द झबकइ झवकिद प्रबर्के झबकदह प्राजुण॒डे श्राजुणठे. श्राजुणो भराजुयौ झ्ाजूणऊ

आरिएस्‌ प्राणिसि पशारिसि भारिस्‌ आरिसू

प्र गोरा घादल पदमणी चठउेपई

२. मूल छ्दों की प्रतिशत सख्या का आधार : प्रत्येक प्रति मे मूल छत्दों की सख्या निकाल कर उसका निश्चित मूल छन्दों से प्रतिशत निकालने पर प्रतियों की ऋमगत श्रेष्ठता स्थापित हो जाती है और उसके आधार पर भी पाठ-चनिर्णय किया जाता है। पर कभी-कभी प्राचीन प्रति मे मूल छन्दो की संख्या कम होने पर पाठ-निर्णय में कठिनाई होती है। उक्त रचना मे यही स्थिति हैं

प्रति में सब से कम मूल छन्द हैं :--

ब्

2 प्रति में मूल ६१६ में से ६०४ छन्‍्द होने से उनका प्रतिशत ६८ ०५

35 ,॥ 3४. 5६) 5 हि१ २४४ . हो ३६ 9. ध€्ह ३५ 7 | ? ५०६९ ११ १8 7) शा €८ ८६ 2- अ७ 3 ६०६ ऊपर ७». ध्य८६ 25. :2 के आई % हर » ६१ रे३े

इस दृष्टि से 8 प्रति में ६८५०४ प्रतिशत होने से उसकी स्थिति 8 (६६३५ प्रश,) और 0 तथा 0 (&८-८६ प्र श.) के नीचे भ्रा जाती है पर ल्लेपको श्रौर पाठान्तरो का प्रतिशत उसकी स्थिति को बहुत ऊपर उठाये रहता है

३. क्षेपकों श्रोर मूल छुन्दों के श्रनुपात का श्राघार : प्रत्येक प्रति मे क्षेपको शरीर मूल छन्दो का अनुपात निम्न प्रकार से है:

प्रति कुल छन्द -- मूल छन्द -- क्षेपक-मुल छन्दो का प्रतिद्मत क्षेत्रकों का प्रतिशत

2. ६१० “5 ६०६ ना ६&६*१५ ००'&८ दृफ्४ड ने ६१२१ नी ४२ ६३६१ ०६४२ है ६५१ “- ६९०६ ने ४२ ५५ ०६ ४५ ६७५ “++ ६०६ ६६ €६०'२२ ०६*७७ छछ पद +-+ ४प२ न३े०२ ६५ ४२ ३४ ६५

४. प्रत्येक प्रति मे सिलनेवाले पाठान्तरों को प्रतिदयत संख्या का श्राधार : पाठ-निर्णय के लिये भिन्न पाठो और पाठाच्तरो के तुलनात्मक श्रध्ययन से प्रत्येक प्रति और उसके पाठो की प्रामाणिकता सिद्ध हो जाती है और उससे पाठ- संशोघन तथा मूल पाठो के निर्णय मे सुगमता हो जाती है। इन पाढो में से १००० ऐसे पाठ चुने गये जिनके विविब प्रतियो में भिन्न पाठ अथवा पाठा- न्तर मिलते है उसके झाधघार पर भी प्रत्तियो की प्रामाणिकता क्रमब्रद्ध कर

पाठ-निर्णय में सहायता ली गई इस प्रकार प्रत्येक प्रति में पाठान्तरों का जो प्रतिशत प्राप्त हुआ्आा वह इस प्रकार है-

प्रस्तावना &

- &॥# प्रति में १००० छाव्दों में १७ पाठान्तर हैं +5 १७ प्रतिशत 5 49 कक 9. अफ७ ड़ घस्ज् र८5 | ऊऋ | ७. 5९ 7५ सन ६५८५ $१ 22: +$ कक ५» ऊरेरे थे नर ७३.२ रे &8& ,, ४5 ७. फट > घस्- पएर्टं,ड +

भू ऐतिहासिक आधार : प्रतियों मे आनेवाले कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी पाठ-निरंय में सहायक होते हैं। उक्त प्रतियो मे दिये गये ऐतिहासिक उल्लेख ग्रन्थ के रचनाकाल तथा लिपिकाल प्रमाणित करने मे सहायक हुए हैं इनके ग्राधार पर प्रतियो की प्राचीनता श्रौर कालगत भाषा-प्रवृत्तियो की खोज करने में सहायता मिली है ये उल्लेख विशेष रूप में इन प्रतियों की प्रशस्तियों में मिलें हैँ। & प्रति की प्रशस्ति उसकी प्राचीनता सिद्ध करने में सबसे अधिक सहायक हुई है यह प्रशस्ति मूल रचना की ही प्रशस्ति है। इसमें लेखक ने अपनी ग्रुर-परम्परा के साथ रचनाकाल (वि० स० १६४५) भर रचना-स्थान 'सादडी” (मारवाड) के साथ महाराणा प्रताप और उनके मन्त्री भाभाशाह का उल्लेख करते हुए सादडी के शासक ताराचन्द का भी उल्लेख किया है, जो ऐतिहासिक सत्य है। इस दृष्टि से इसका महत्त्व अधिक बढ जाता है कि यह मूल रचना के अधिक सब्निकट है। श्रत. इसके पाठ श्रन्य प्रतियो की श्रपेक्षा अधिक प्रामाणिक सिद्ध हुए है

साहित्पिक आ्राधार : किसी रचना के पाठ-निर्णाय में साहित्यिक भ्राधार भी अन्य आधारो के प्तमान ही महत्त्वपूर्ण होता हैं। रचना-वत्त्वो में छन्द, अलकार, भाव और रस के उपयुक्त भाषा के रूपो को विभिन्न प्रतियो से तुलना तथा शोध-सशोधन कर पा5-निर्णय किया ग्रया हैं। इनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया जाता हें---

(१) ५० च० में प्रधान रूप से दोहा और चौपई छल्दो का प्रयोग हुआ है इन छन्दो में श्रादि से अन्त तक एंक विशेप लय है पाठान्तरों का तथा शिन्‍्त पाठो का कही-कही इस लय में मेल नही बैठता इसी प्रकार गति-भग-दोष तथा न्यूनाधिक मात्रा-दोष भी पाठ-निरणय में सहायक हुए हैं निम्न लिखित उद्यहरण देखिये:--

मूल - ब्रह्म-विष्णु-शिव सइ भुखइ, नितु समरइ जसु नास (२) यहाँ 'मुखइ' के स्थान पर 5 प्रत्ति में 'मुखे” पाठ है यह बहुवचन होने पर भी 'सडइ मुखई तथा उसकी क्रिया 'समरद! की लय में नहीं बैठता 'मुखइ' के स्थान पर # प्रति का “मुखि” पाठ माज्ञा-दोष के कारण अमान्य

श्०

गौरा बावल पदम्षणि चरेपई

हो जाता है। इसी प्रकार दसवे पद में 'वसुधा लोचन जेंसु विसाल में जेसु विसाल' के स्थान पर 5 प्रति का पाठ जस 'सुविशाल' गति भग दोष के कारण त्रमान्य है

(२) इसी प्रकार पहले दोहे में ववणसगाई श्लकार पाठ-निर्णाय में सहायक हुआ है :---

सुख सपतति दायक सकल, सिधि बुधि सहित गणेस

घिघन विडारण विनयसुं, पहिली तुक प्रणमेस ॥8॥

इससें 'विघन विडारण विनयसुं के स्थान पर # प्रति का पाठ 'विघन विडारण सुखकरन' श्रथवा £ प्रति का पाठ “विघन विडारण रिधिकरण' कर देने से उक्त श्रलकार की स्थिति नप्ट हो जाती है, जब कवि ने वीर रस को रचना में वयणसगाई को प्राथमिकता देने की परम्परा का निर्वाह किया है

(३) रस का आधार भाव है। अ्रतः भाव-व्यञ्जना के लिये शब्द श्रौर श्रर्थ में सामजस्य आवश्यक है | बादल के इन गांज भरे शब्दों से देखिये ---

"“सुणि बावा” ! बादिल कहइ, “सुभरटासू कुण काँम ?

सुभटद सहू सूए रहउे, करिस्यु हुं काँम ॥४०६॥ इसमें 'सुभटाँ सु कुण काँस! के स्थान पर 7 प्रति के 'अवरां केही कांम' तथा “सि रहो सारा सुहड' में प्रत्यक्ष भावाभिव्यक्ति होने से बादल के उत्साह का भाव सीधा ग्रहरा नही होता +

७. होली और परम्परा का श्राधार : वीर-रस की रचना होने पर भी कवि

ने जेन-शैली की, भाषा-परम्परा और लेखन-परिपाटी के प्रति श्राग्रह दिखाया है इस सम्बन्ध में श्रागे प० च० को भाषा के अन्तर्गत सविस्तार वर्णन है। नीचे कुछ ऐसे प्राचीन रूपो को दिया जाता है जो आग्रह पूर्वक प० च० में रखे

गये हैं, श्लौर जिनके प्रति श्रन्य प्रतियो में यह आग्रह नही दीख पड़ता:---

मूल - भ्रम्ह 8, ८, 7., 8, - हम | जवकि इसके विपरीत मल “अम्हि' के स्थान 70, ->हमने | पर ऊ»े, 0, 9), 58, मे “श्रम्हे', 5 में 'अ्रम्ह में 'अम्हे' झौर /0, & मे 'हम' भी मिलतेहै झ्ाविडे 9-श्राविश्रो, 0, 70 - झावियो ऊतरीरें 8 - ऊतरीयो, ! £, 70 -- ऊतरीयो & ऊतरीयों «_ ऊतरयछे| ऊत्तर॒यो उदधि 8, ८, 9 - जलद 3, - समुद्र | & सायर दरिया जलधि |;

चस्तावना ११

८. भाषा का झ्ाघार : पाठ-निर्णय में भाषा का श्राधार सबसे महत्त्वपूर्ण आधार है। पाठ-निर्यय के लिये कुछ भरषा-सम्बन्धो प्राधारो का उल्लेख नीचे किया जाता है :--

का 4

(१) पाठ-भेद प्रवृत्ति ; कुछ लिपिकारों तथा क्षेपककारो में मूल रचना से सर्वथा भिन्न पाठ कर देने की प्रवृत्ति होती है | इसके श्रनेक कारण होते हैं, पर मुख्यतः यह कभी तो श्रर्थ समभरने में आने पर किया जाता है और कभी प्रसाद या व्यक्तिगत रुचि के कारण :--

(क) श्रर्थ समभबे के कारण --

मुल- श्रति सुकमाल पसभ पडवडी (१५३) (स० सूक:-ःकमल ) छ- , शुकसाल पश्स + (शुक ... >ततोते का पर) ४. फोमल सदल पसम पडवडी (श्र स्पष्ट है )

(ख) व्यक्तिगत प्रमाद या रुचि के कारण---

मूल - ऊपर खेन्र लागइ बीज विण झगडा नवि थापई घीज (४२) यहा रेखांकित दाब्द उपयुक्त हैं। यहां खेत्र' के स्थान पर 5 प्रति में क्षेत्र' (भिन्न अर्थ) 'लागइ” के स्थान पर 5 प्रति में 'उगे', 'ऋगडा के स्थान पर प्रति में 'ऋगडइई” तथा प्रति में “झगड़े श्रौर, 'थापद के स्थान पर 9 प्रत्ति में 'होबइ! पाठान्तर त्था पाठ-भेद हो गये है इसी प्रकार 'ए ऊषाणु श्रख्या दी5' (५८) में अख्या दीठ' के स्थान पर £ प्रति में 'साचो दीठ' पाठ लिपिकार की प्रमाद-प्रवृत्ति का द्योतक है +

(२) पाठान्तर प्रवृत्ति : भाषा के प्राचीन रूपो के व्यवहार से मुक्त हो जाते पर लिपिकाल के समय लिपिकार उनसे विकसित नवीन रूपो का प्रयोग कर छेता हैं। इसी प्रकार कभी तत्सम रूपो के प्रति उसकी रुचि तथा उसकी स्थानीय बोली का प्रभाव श्रौर उसकी उच्चारण प्रवत्ति श्रादि प्ननेक कारणो भे एक ही रचना की भिन्न-भिन्न प्रतियो में पाठान्तर हो जांते हैं कुछ क। उल्लेख यहाँ किया जाता है-

(क) अ्रव्यवहृत प्राचीन रूपो के स्थान पर चवविकसित या प्रचलित रूपों का प्रयोग :

भूल--अवडा - 3,८,0, - एवडा, 8 इतने करावउे - (०,०2 - करावो (-वौ) कहवाडउं- 35,0 कहवाडो (-हो), 0,7-कहावो (-वो) झजुआलइ- ऊ, - उजवालइ, (-उजबाले, 5 उजाले

१२ गीरा बादल पर्दणि चठेपई

(ख़) तत्सम रूपो के प्रति लगाव-

मूल--अठेर - 3»,0,02 - अ्रवर (< स० अपर) उछाह «5 2 - उत्साह ऊछेद 5 2 - उच्छेद (ग) स्थानीय बोली का प्रभाव+- भूल--कवित्त - 53,0,0,8 - किविंत्त ) मारवाडी की श्रादि इकार- कस्तूरी - 8 > किस्तूरी | ईत्ति पर कार हप मध्य राजस्थानी कीं (घ) उच्चारण की मुखसुख प्रवृत्ति ('य' का निवेद् ) मूल--करिसइ - 3, - करिस्यई कहीइ - 3,0८ - कहियइ ॥0.8 - कहिये उबेलीजे -_ - उवेलीयडे

(च) व्याकरण सम्बन्धी भूलें--

(१) लिंग की भूल - मूल - आराडी (स्त्री०)-४-श्राडडे, 0॥2,8-श्राडी (पु०) (२) वचन की भूल- मूल - आाणा (ब.व.)-9-श्राणठे, /2,8 -श्राणु (बव ) पदमणि चडेपई की कथावस्तु का विस्तार दस खण्डो में हुआ है प्रत्येक खण्ड की कथा सक्षेप में इस प्रकार है-- हे खण्ड - चित्तौड़ के राजा रतनसेन का श्रपनी पटरानी प्रभावती के व्यंग पर सिहलद्वीप मे जाकर वहाँ के राजा की बहिन पद्षिनी से विवाह

कर के लौटना--( १-६३)

खण्ड - रतनसेन और पद्चिनी के प्रेम-प्रसण के समय राधव का श्रन्‍्त पुर में प्रवेश श्रौर इस कारण रतनसेन का क्रोध में श्राकर उसकी आँखें निकलवामने का श्रादेश राघव का डर से भाग जाना-- (६४-१३५)

ह६ खण्ड - राधव का दिल्‍ली पहुँचना और वहाँ एक भाट की सहा- धता से भ्रलाउद्दीन के दरबार में प्रवेश कर पद्चिनी स्त्री का प्रसग छेंडना प्रलाउद्दीन का श्रपनि हरम में पद्मिनी स्त्री की खोज के लिये राधव द्वारा मिरीक्षण कराना और उसमें एक भी पद्चिती स्त्री होने पर राघंव कै सकेत पर पश्चिनी के ल्यि सिहलद्वीप पर चढाई करना--(१३६-१०६)

55

खण्ड » अ्रलाउद्दीन द्वारा सिंहुल पर आ्राक्रमण और समुद्र मे

प्र नर्माइयों के कारण पीछा होदता5-(११७-१२७)

प्रस्तावर्ना

४. खेण्ड - दिल्‍ली लौटने पर श्रलाउद्दीन की बीबी के व्यः्य करना फिर राघव की सूचना और सकेत पर पश्चिनी प्राप्त करने के लिये वित्तौड पर आक्रमण का आदेश--(२२८-२४१)

खण्ड + रतनसेन और शअ्रलाउद्दीन का युद्ध श्रलाउद्दीन का गढ लेने में असफल रहने के कारण श्रपने मत्री को भेजकर केवल किला और पश्चिनी को देखकर लोट जाने का छल-पूर्ण सन्धि-प्रस्ताव-- ( २४२-२०५२)

खण्ड - अ्रलाउद्दीन का गर्ढ से प्रवेश भोजन के समय द्वासियी को देख कर उन्हें पद्चिनियाँ समझ कर बार-बार चौकता और राघव का उसको सचेत करता भोजनोपरान्त भरोखे की जाली से फक्रौकती हुई पह्मिनी को देख कर उसका मूछित हो जाना और राघत्र का उसको समफ्राना किला देख कर लौटते समय .रतनसेन को बातो में लगा कर द्वार तक ले श्राना और वहाँ अपने छिपे हुए साथियो द्वारा उसे बन्दी बचा लेना--(२०३-३४७ ) !

८. खण्ड - रतनसेन-प्रभावती का पुत्र वीरभांण पद्मिनी की उसका मात्रा का सौभाग्य छीनने चाली समझता है श्र इस कारण वह उसको अलाउद्दोन को सरैपषकर उसके बदले मे राजा को लेने का प्रस्ताव स्वीकार करता है। यह सुन कर पत्मिनी के मन से रोष, चिन्ता श्रौर ग्लानि तथा चहा जाने का हंड निदपचय--( ३४५८-४२ १)

€& खण्ड - पह्मिनी का सहायता के लिये गोरा-बादल के पास जाना बादल द्वारा रत्तनसेन को छुडाने की भ्रतिज्ञा सुन कर उसकी माता का उसको रोकना--(४२२-४६७)

१० खण्ड - अपनी बात सानने पर बादल को माता का उसको नव-विवाहित वधू को भेजना श्रपने स्वामी के हह निश्चय तथा रणो- ल्‍लास को देखकर नव-वधू का डसको रणवेश से सज्जितकर श्राथुध देकर युद्ध के लिये विदा करना | बादल का वोरभॉण को समा कर श्रपने पक्ष मे करना और श्रलाउद्दीन के पास जाकर उसको छलभरी बातो से पद्चिनी के आने का विश्वास दिला कर उसकी सेना को वहाँ से रवाना करवा देता फिर गढ में झ्राकर डोलो में दापियो के स्थान पर श्रपने सैनिको को झर पद्धिती के स्थान पर गोस को छिपा कर ले जाना, रतनसेन को छुडाता शोर अभ्रलाउद्दीव तथा उसके चुने हुए साधियो को मार भगाना। युद्ध मे गोरा को सृत्यु भर उसकी स्त्री का सती होना-- (४६७-६२० )

2४ गोरा बादल पदममणि चठेपई

पदमरणि चठेपई में भाषा की सामान्य प्रवृत्तिया और उसकी शैली :--

पदमणि चठेपई का रचनाकाल वि०सं० है ६४४५ है श्रत” इसकी भाषा विवग्स० १६०० और ६५७०० के बीच की विकसित भाषा का रूप है विकास-काल की हष्टि से इसको मध्यकालीन राजस्थानी तथा क्षेत्र की हृष्टि से इसको मध्य राजस्थान की भाषा मानना चाहिये मध्य राजस्थानी क्षेत्र राजस्थान का गोडवाड़ का प्रदेश, उसके पूर्व में श्रजमैर, श्रजमेर से जहाजपुर-माडलगढ, वहाँ से भोलवाड़ा, गंगापुर, रायपुर, श्रामेट, कुम्मभलगढ ओर पुन: गोड़वाड के बीच का विस्तृत भू-भाग है। उस काल की - मध्य राजस्थानी का क्षेत्र भी लगभग इसी के श्रन्तगंत मानना चाहिये उक्त रचना का रचयिता हेमरतन गोडवाड़ प्रदेश में स्थित सादड़ी का निवासी था | श्रत* इस ग्रन्थ की भाषा-प्रवृत्तियाँ सामान्य रूप से मध्य राजस्थान की उस काल की भाषा-प्रवृत्तियाँ हैं, जिसके भीतर कही-कही गोड़वाड़ी की स्थानीय प्रवृत्तियों का भी समावेश है लेखक के जेन साहित्य की परम्पराओ्रो में शिक्षित होने के कारण इस ग्रन्थ मे जैत शैली की भाषा-परम्परा का तिर्वाह भी देख पडता है | इसी प्रकार वीर-रस की रचना होनें के कारण इसमें डिंगल शैली का भी समावेश है :- १. मध्य राजस्थानी की भाषा-प्रवृत्तियां -- (१) शब्द के भ्रादि में श्र-कार दे; स्थान पर मारवाडी इ-कार की प्रवृत्ति : इधकी (७८ 70 अधकी ), इसउ (२२७); खिण (२४ क्षण); खिन्री (३८१--क्षत्रोय) सिबद (४३६८-शव्द) (२) कही-कही 'इ तथा 'उ' के स्थान पर 'ए! तथा भझो? श्रोर 'एँ तथा ओो' के स्थान पर 'ई! तथा 'उ' की गुण-वृद्धि; (क) जिमडे (४८६)-जेंसु (१०) ; करियो (४)-करेयो (४३१) 'जीपिंसु (४६५)-जीपेशां (४०४); जीता (५६६)- जेत (५१४) दिप्डे (१५४ 8,2)-दीठ (६६)--द्रेडि (२७०) (ख) सुहामणी (१६८)-सोहामणी (708); सुगद (२६९ )- सोगध (2); फुजदार (२८६)-फौजदार, फोफल (३३०)- पुगफल, पुप्पफल; वुल्लइ (३६७)-बोलइ (३८६९), होई (१००)-होइ (३३), हुई (३६४)

प्रस्तावना

(३) तालव्य 'श्‌! श्रौर दन्त्य 'स्‌” का एक दूसरे के स्थान पर अनि- यमित प्रयोग जीपेशा (४०४)-जीपिसूं (४६५), करशां (४०१)-करेसां (५३७ 8,8), करिसुं (५३६)

* (४) मध्यग - ब्‌- के स्थान पर कही -य्‌ - ओर कही -श्र का श्रनियमित प्रयोग : बहुअ्समर (४४६), - बहुयर (8,2,8 ) - बहुबवर (7) खाझ्मां (३६१) - खावा जावइ (४७८) - जायइ (४६८)

(५) स्वर-लोप द्वारा शब्द - सयोग की प्रवृत्ति :

+- आवइ 5 नावइ (२५) -- आदरी नर नादरी (४८४) + आावइ -5 मावइ (४२२)

(६) मध्य अनुनासिक का - आरा - मे परिवर्त्तन

(क) वात सह बहू श्रर नां कही (४४६ 8) स्त्री० ए०

(ख) सिघलपति नां सिरपा दीउ (२२२ 8) पु० ए०

(ग) मोठां नां परि दीघूं मान (२२३ 8) ब० व०

उक्त रचना मे इस प्रवृत्ति का प्रभाव कम कारक के चिन्ह 'ने” पर पड़ने से उसका “ना हो गया है। शभ्राधुनिक बोली मे इस क्षोत्र मे 'थने कहयो' के

स्थान पर “थना कियो' बोला जाता है कर्म कारक मे ही यह प्रवृत्ति सीमित नही है मध्यस्थित स्वरो की यह प्रवृत्ति ध्यान देने योग्य है:

भांश भेस, फाक्यो फंक्यो, खाच्यो खेंच्यों श्रादि प०च० मे खची (५६३) ८“ खाची खेची

- है. पद्मेणि चठेपई में मध्यराजस्थानी की गोड़वाडी बोली की स्थानीय प्रवत्तिया

(क) सख्यावाचक दो-तीन (२,३) के स्थान पर बे-त्रण तथा उसके रूपों का प्रयोग

॥|

बि-च्यार (५४४), बी- सहस (१०१), बे (६७), बिवणउे (२०४) बेउ (५४), बेइ (३६) बेही (८०), बिहु (७), बिहु (१५१), व्यु (६२), ब्यड (५०३), बिया (५४६), बीजा (३६६), बीजी (५०)

१६ गोरा घादल पद्माण चडठेपई

त्रिगण (१८७), त्रिहु (३१६), त्रीजउं (१२६), त्रीजी (३०६), त्रीस

(४१), त्रीसहस (३७३); त्रीसहजार (२८५)

(ख) करण - श्रपादान कारकों मे 'सूँ' (सृू) के स्थान पर भीली “थी का प्रयोग :

१/--रतनसेन थी मत महि डरइ (८२)

२।--तु सिंघल थी अ्विडे नासि (२५०)

(ग) भूतकाल 'हतो' (श्राधु० राज० 'हो” ) के स्थान पर “थो' का प्रयोगः १--श्रागें - थो बभण गृणी (१४५) (घ) दो दीर्घ स्वरो के बीच वाले श्रक्षर मे स्थित स्वर “श्र” का /इ” में परिवर्तत : दोहिली (४५४); पाछिली (६४) ४. जेन शैली की भाषा-परम्पराश्रों का आग्रह :

(क) संयुक्त स्वर 'ऐ' तथा “श्रौ” के प्राचीन रूपो को ग्रहण कर उनको प्राचीन रूपो मे हो लिखा गया है, जब कि श्रन्य प्रतियो मे उनके नव विकसित रूप लिखे गये हैं * वइसणइ (२६)-बेसण (8); बेसणउे (५०३)-बेंसणी (70)

(ख) श्रादि “यू-! के स्थान पर “जू- का प्रयोगः जोअञ्रण (४१) योजन; जोगी (६०) < योगी

इसी प्रकार अन्त्य “जू' के स्थान पर इसके विपरीत “य्‌' का प्रयोग;

आवयो (५३६) ₹र"श्रावजो,

(ग) कही-कही जब्दों के प्राचीन रूपो का निर्वाह, (१) मध्य “त” के स्थान पर “प” : जीपण (७३) - जीतण (२) श्रादि “ल” के स्थान पर “न , निलवटि (४६८),- ललाटि

(६०६)- निलाटि(8,0,0,8), नालि (२८६)-लारि (१८४)

(३) श्रादि व- के स्थान पर - : मोनती (१६१)-वीनती (२०६) ५. वीर-रस की अश्रभिव्यवित के लिये भाषा में डिगलत्व .

(क) व्यण्जन द्वित्त्व . सावप्य॑ प्रवृत्ति के श्राधार पर विकसित प्राकृत-अप- अ्रश के द्वित्त-व्यञ्जन-युकत शब्दों का प्रयोग डिगल की प्रधान विशेषता है | इसी श्राघार पर उसमे श्रनेक प्रकार के द्वित्त-व्यव्जन-

युक्त रूपो की रचना हुईं। इसमे से निम्नलिखित प्रवृत्तिया उक्त रचना में दीख पढतो हैं :--

प्रस्तावना १७

(१) प्राकृत-अपन्न में स्वीकृत सवर्ण द्वित्व भट्ट (१६२) खग्ग (३६७)

(२) अपक्रश मे द्वित्वव्यजन वाले जो शब्द राजस्थानी में परिवर्तित हुए थे उनमे द्वित्वव्यंजन लोप होकर उसके पू्व-वर्ण को दीघे करने की प्रवत्ति देख पडती है इसी नियम के विपरीत दाब्द के मध्य मे द्वित्व के झ्रागमन के लिये पूर्व स्थित दीघे वर्ण को हस्व करने का नियम डिंगल

में देख पडता है निम्नलिखित उदाहरणो में यह प्रवृत्ति देख पडती

है: '

श्र < +-- भल्‍लई (३६७) < भालद (३६६)

<ई -- लिज्जइ (३७४) < लीजइ (२६७)

<ए -- खिल्लूं (४३३) < खेलू (७४) उ.< -- फुट्टटे (४४२) < देखो, फूटइ (२५६)

< ओो-- बुल्लइ (३६९७) < बोलइ (३३)

इसी प्रकार के द्वित्व मे कही-कही पर-वर्ण भी ह्ृस्व कर दिया जाता है:

सत्ति (४१६) < सती (२०)

(३) कभी-कभी पुर्व तथा पर-वर्ण को प्रभावित किये बिना हो द्वित्वव्यजनागम

हो जाता है फट्टू (४४२) < फिट (५६८); सक्‍कइई (१३) < सकइई (१३) (४) मध्यव्यंजन महांप्राण होने पर उसके साथ द्वित्व की स्थिति में श्रल्प-प्राण का ही सयोग होता है : रक्‍्खाविउे (४४२); पाउेद्ध रद (२५६) (५) (क) दित्वव्यंजनागम के पूर्व उध्वे रेफ का भ्रधोरेफ होता : गरप्नव्व (१६३) < गंधवें; स्नग्गि (२४१), स्ग्ग, < स्वर्ग (ख) उच्चारण लाघवत्व भ्रथवा छन्द-बन्धन के कारण श्रक्षर लोप की प्रवृत्ति सख (१६३) < सुखिणी (१६३); रभ (१६५) रभा; कति (१६६) < कांति; नीद्र (१६९) < निद्रा;

(ग) सर्वेनाम के प्राचीन रूपो का प्रयोग :

अम्ह (१७०, ५८२-सबंध-कर्त्ता), भ्रम्हनि (५४२-कर्म-अ्रधि०), तूय (४४०), तूझ (४४३), तुज्क (६०५४)

ताणचिय (१५६), ताम [ ५७० 4 (५५०) ]

क्वण ( श्८प७ )

श्द गोराबादल पदरमणी चठेपई

(घ) प्राकृत 'हन्तो के रूपो का विविध विभक्तियों मे प्रयोग : १. कर्म “- वासइ श्रोलोचह कीउे (३६८) २. सम्प्रदान-संबंध -- पोतू बीतू श्रमलह तणू (४७) सामी सिंघल दीपह तणूं (६२) ३. अपादान -- गढनी पोलि हुति ऊत्तरिडे (४६८) (च) भ्रनुस्वार का विभक्ति के रूप मे प्रयोग :

१. कर्त्ता-कर्म -- खबासां उजासां (२८६)

२. क्में -- छत्रा घघइई (२८६) ३. करण. -- श्रख्या दीठ (५४८) ४. सबध -- रायां घर (२५६), असुरा घेह (३६७)

(छ) 'न' के स्थान पर 'ण' का भ्राग्रह : विणास (३६२), खांण (२०२), समांणी (१६१), सांमिणी (४१६)

(ज) श्रन्य प्राचीन रूप : पे

पडसाद (पट--सह < हब्द-२४६), पायोलइ-१८७ (पातालइ) अ्रछइ (३०६), भ्रछां (४०२) (फर) हृष्य साहश्य के लिये श्रनु रणन : 2१. ढलकदद.. ढीकली (२४४) २. दुमकि दुममा.... २४५) (८) श्रपश्रश के अडडडुलल' से विकसित स्वाथिक प्रत्यय : इसडेंउ, इसडइ (४३५), बड़े, प्रियडुठझे (३६७), बोलडा ' (२४०) प्राहुणडां (२६५), भीरिलल (३६३) हेमरतन और उसकी रचनाएँ कालनिर्णय वि० स० १५०० श्रीर १७०० के बीच का युग राजस्थानी भौषा, साहित्य सस्क्ृति और कला के चरम विकास का युग था इस युग में राजस्थानी भाषा और साहित्य की बहुंमुखी प्रवृत्तियो का विकास देख पडता है, जहा घर्मं और सम्प्रदाय, भक्ति श्रौर सांघना, लौकिक और पारलोकिक भाव॑नाए श्रादि का साहित्य के साथ-साथ सामंजस्य हो जांताः है। साहित्य, नरक्षेत्र और आध्यात्मिक क्षेत्र में सामजस्प स्थापित करता है। एक झोर वह 'मानव-व्यापारों मे आदर्श

प्रस्तावनां १६

स्थापित करता है तो दूसरी ओर वह उन आदर्शों द्वारा भगवत्माप्ति की श्रौर सकेत करता हुआ साधना और भक्त के स्थूल तथा सूक्ष्म तत्वों में भी प्रवेश करता है जहाँ धर्म सम्बन्धी रचनाएँ घामिक तत्वों श्नौर सिद्धान्तो के सीमित क्षेत्र मे ही देख पडती थी वे श्रब लौकिक चरित्नो श्रौर लौकिक व्यवहारो के साथ सामंजस्य स्थापित करने लगी जैन साहित्य की अनेक रचनाएं ऐसे ही पात्नो के चरित्र को लेकर सामने आईं, जो इन श्रादर्शों के कारण लोकप्रिय हो रहे थे। ये आदर्श पहले जैन धर्म तक ही सीमित थे। फिर जैनेतर चरित्र भी उन श्लादर्शों के साथ संमाविष्ट हुए धीरे-धीरे जैन लेखको ने जेनेतर विषयो श्रौर चरित्रो को भी श्रपने काव्य का विषय बना लिया, श्रौर इस प्रकार अनेक जैन लेखको द्वारा उत्तम कोटि के चरित-काव्य रचे गये, जो राजस्थानी भाषा और साहित्य की अ्रमूल्य निधि बन गये हेमरतन इसी प्रकार का एक्त कवि था, जिसने जेन होकर भी जैनेतर वस्तु श्रौर पात्रों को अ्रपने काव्य का विषय बनाया इस युग में इस प्रकार की श्रनेक रचनाएँ हुईं, जो जैन साहित्य की ही अमूल्य निधि नही हैं उनको राजस्थानी भाषा और साहित्य से श्रढल्ग नही किया जा सकता राजस्थानी साहित्य के विविध रूपो की परम्परा श्रौर विकास की द्योतक ये जैन रचनाएँ ही हैं, जिनसे साहित्य के इतिहास के लिये सम्बन्धित सामग्री भी परिपूर्ण मात्रा मे प्राप्त होती है हेमरतन के भ्रनेक ग्रन्थ पिछली खोज मे प्राप्त हुए हैँ, जिनसे उसके अपने यूग का एक महत्वपूर्ण कवि होने का सकेत मिलता है। उसकी प्राप्त रचताओ मे “पदमणि चठेपई' यहाँ प्रस्तुत है हेमरतन के जीवन के विषय मे बहुत कम सामग्री प्राप्त है। राजस्थानो लेखक इस दृष्टि से इत्तिहास लेखक की पोथी मे बहुत बदनाम हुआ है पर अपने महत्व की प्रशस्ति स्थापित करना राजस्थानी लेखक ने कभी श्रपने जीवन का उद्देइय तही बनाया उसका उदेश्य रचना और तद्गत विषय को प्रस्तुत करता था। इसीलिये उसने विषय श्र वस्तु की ओर अधिक ध्यान दिया उसने ग्रन्थ के आरम्भ तथा अन्त में अपने आराध्य तथा श्राश्रय का . उल्लेख कर उनके साथ अ्रपना सम्बन्ध स्थापित किया है। चाहे वह धार्मिक क्षेत्र हो, चाहे साम्प्रदायिक, चाहे लौकिक क्षेत्र हो, चाहे पारलौकिक, सभी मे राजस्थानी लेखक की यही स्थिति रही है कि उसने अपने व्यक्तित्व को अपनी कृति में कही उभरने नही दिया इस कारण इतिहास-लेखक ने एक शोर उसकी रचनाओ को कृत्रिम कहा और दूसरी श्रोर उसकी सन्दर्भ-सामग्री का उपयोग भी किया हेमरतन की रचताश्रों मे 'पदमणि चठेपई” का विषय इतिहास से सबंध

२० गोरा बादल पदमणी घडठेपई

रखता है। फिर भी उसका कोई श्रद्म पूर्ण ऐतिहासिक नही है पर वह किसी किसी मात्रा मे ऐतिहासिक सामग्री भ्रवश्य प्रस्तुत करती है। इतना होने पर भी उसका उद्देश्य सहित्य रचना है, रस उत्पन्न करना है, इतिहास लिखना, नही (देखो-खड १।४॥५) अतः उसको इतिहास के क्षेत्र मे लेजाकर कृत्रिम कहना उचित नहीं है। 'पदमणि चठेपई इतिहास नही, काव्य है। उसका रचयिता इतिहासकार नही, कवि है, जिसका उद्देश्य क्रिसी आश्रयदाता को प्रसन्न करना नही, केवल लोकप्रिय चरित्रो को लोकप्रिय काव्य-शैली मे चित्रित करके उनके श्रादर्शों को लोक-जीवन मे स्थापित करना है

हेमरतन की प्राप्त रचनाओं में उसके जीवन सम्बन्धी जो श्रन्तर्सादय सूत्र प्राप्त होते हैं, उनसे उसके रचनाकाल, गद्य-परम्परा, शिक्षा, ज्ञान, अनुभव, तत्सम्बन्धी इतिहास श्रादि की श्रोर सकेत-सूत्र प्राप्त हो जाते हैं उनके श्राधार पर उनके व्यक्तित्व की शोघ सभव है। जैन धर्म मे दीक्षित हो जाने के पश्चात्‌ माता-पिता आदि का सासारिक सम्बन्ध टूट जाता है श्रौर ग्रुरूप रम्परा से उसका सम्बन्ध स्थापित्त हो जाता है। यही कारण है कि हेमरतन ने अपने माता-पिता का परिचय देकर गुरू परम्परा का ही उल्लेख किया है।

बहिसर्क्षिय सामग्री से हमे उसकी शिक्षा-परम्परा तथा तत्कालीन साहित्य श्रौर तत्सवधी इतिहास का सकेत-सूत्र मिल जाता है। एक लेखक के विषय मे इतनी तो जानकारी होनी ही चाहिये श्रौर इसके लिये प्राप्त अ्ल्पत्तम सामग्री भी किसी सीमा तक पर्याप्त है उसके आ्राधार पर उसके जीवन श्रौर व्यक्तित्व का पता लगाने मे तो हम सफल हो ही जाते है। श्रत उसकी रचनाओं के श्राधार पर उसका जीवन निश्चित करेगे हेमरतन की श्रव तक जो रचनाएँ पिछली खोज मे प्राप्त हुई हैं, वे निम्नलिखित है--

झ्रभयकुमार चडेपई रचना काल विग्स० १६३६ महीपाल १3 7... 39 7 १६३६ गोरा बादल पदमणि चठेपई 3 9 » श६४५ शीलबती कथा 9. 89 # १६७३

33 8 ६७

रामरासो सीताचरित जदवबा बावनी

र्‌ रे है. प्र॒लीलावती द्‌ कट प्ः दानिचर छुद

प्रस्तावना २१

इसमे से पहली पाच के तो रचनाकाल उपलब्ध हैं। शेष चार की खोज इन पाँच के आ्राधार पर सम्भव है

जिन पाँच रचनाओो पर रचनाकाल दिया गया है, वे सब प्रीढ रचनाएं हैं इनके आधार पर हेमरतन का रचनाकाल चि०स० १६३६ से १६७३ के बीच निश्चित हो जाता है इस प्रकार पहली रचना (१६३६) और पाँचवी रचना के बीच ३७ वर्षों का अन्तर है। इनके श्राधार पर इन ३७ वर्षो के समय के तीन कालो मे-१६३६, १६४५ भर १६७३ हेमरतन की सभी रचनाशओ्रो को स्थापित किया जा सकता है। हेमरतन के रचना-विकास (मानसिक-विकास ) के ये आदि, मध्य और शअ्रन्तिम अथवा आरम्भ, विकास और उत्थान की स्थि- तियाँ भानी जा सकती हैं | श्रादि भर मध्य के बीच लगभग दस वर्षों का श्रौर मध्य और भ्रन्तिम के बीच २८ वर्षो का श्रन्तर है। २८ वर्षो का समय उसके चरम विफास का द्योतक है। इसी काल में हेमरतन की अन्तिम और महत्त्वपूर्ण रचनाएँ पूरी हुई होगी कवि ने भ्रपनी रचनाश्रो मे कही-कही भ्रपतती रचना सम्बन्धी योजना की श्रोर भी सकेत किया है; जेसे 'अभयकुमार चठेपई! मे उसमे लगभग सात विषयों की रचनाएँ प्रस्तुत करने का सकेत किया हैं.-- दानं, सील, तप, भावना, चारु, चरित्र, कहेस क्रोध, मान, साया, वली, लोभादिक, प्षणेस ॥। इसमे दान, शील, तप, सान, क्रोष, साया भर लोभ ये सात विषय स्पष्ठ हो जाते हैं। लोभादिक कहने से चारो विकारों मे शेष काम भी झा जाता है इस प्रकार ये श्राठ विषय श्राठ रचनाश्रों की श्रोर सकेत करते हैं। इस . श्राधार को देखते हुए वि० स० १६३६ की प्रथम दो रचनाओं मे भी यह स्पष्ठ हो जाता है कि 'भ्रभयकुमार चठेपई' उसके पहले की और 'महिपाल चठऊेपई” उसके बाद की रचना है | ऐसा लगता है कि कृवि ने इन्ही विषयो को भ्रपत्ती काव्य-रचना का श्राधार सानकर एक-एक विषय पर एक या श्रधिक रचनाएँ प्रस्तुत की इनमे से एक रचना 'शीलवती कथा” का रचना काल जैन गुजेर कविश्लो (भाग पृ० २०७-२०५) के छेखक ने वि० स० १६०३ दिया है। पर यह ठीक नही लगता। लेखक की मान्यता का आधार उक्त प्रति मे दिया गया यह रचनाकाल है : सवत सोल न्निरोत्तरे, पाली नयर मझारि। सील कथा साची रची, प्रवचन वचत विचारि ॥|

२४ गोरा धादल पदमणी घठेपई

मे वृद्धि की लोक-प्रिय काव्य को श्रात्मा का कलेवर इसी प्रकार घटता-बढता रहता है। इसकी लोक-प्रियता के श्रन्य कारण भी है :

१. श्रन्य जैन रचनागत्रो के समान यह एकांकी नही है। श्रन्य जैन चरित- काव्यो के समान इसके श्राघार में कोई घामिक-सिद्धान्त या प्रचार की भावना नही है

२. रचना के विपय, वस्तु और पात्र सभी ख्याति-प्राप्त और लोक-प्रिय है

कथा ऐतिहासक हुँ तथा उसी राजवश से सम्बन्धित है, जिसमें महाराणा प्रताप जैसे वीर ने इसकी रचना के समय ही श्रपने मान, मर्यादा श्रीर स्वतन्त्रता-प्रेम का परिचय दिया था | उन्ही के त्याग शोर बलिदान की प्रेरणा से इसकी रचना हुई है

४. इसमे घामिक परम्पराश्रों के स्थान पर साहित्यिक परम्पराश्रो का निर्वाह

दीख पडता है इस रचना में उस काल के लोक साहित्यिक परम्पराद्रो का निर्वाह हुआ है यह वीर रस का एक सुन्दर लोक काव्य है

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उदयसिह भटनांगर

कवि हेमरतन कृत

गोरा वादल पदमणी चउपई [ पहलो खंड |

दूहा 'खुख संपति दायक सकल, सिधि बुधि सहित गणेस विघन विडारण विनयखरुं', पहिली' तुझ प्रणमेस' १॥ ब्रह्म' विष्णु शिव सईं' मुख", नितु समर" जखु नॉम ते देवी सरसति' तणई'', पद्‌"' युगि' करूं प्रणॉँम २॥ पद्मराज वाचक॑ प्रश्चुति,, प्रणमी' निज' गुरु पाई केठवस्यु' साची कथा, कॉणि' आवद काइ ३॥ नवरस दाखई' नव-नवा, सयण सभा सिणगार कवियण सुझ करियो' कृपा, चदतों वचन विचार वीरा रस सिणगार' रस, हासा रस हित हेज | सामि-धरम-रस' सॉमलर्ड', “जिम हुई तनि अति तेज ५॥ सामि-घरम जिणि' साचविड, चीरा रस सविसेष' सुभरों' महि' सीमा लही, राखी खित्रवट रेख ६॥

१॥ सकल सुख-दायक सदा ४। गणेश 8। सुख-करन 5, रिधि करण 8। पहिलु 8,

पहिलो ०, पहिलि ०। प्रणमेश 8, प्रणमेस्ु ०। ॥२॥ जह्मा 5। विष्तु 8। सइ ०, से ४। मुखि मुख 8। जस 8। ' नाम तेण 8, तिण छ। 2२ युग 8, जुग 8। १३ प्रणाम 58। ॥३॥ १वाचिक्र 8। प्रभति छ। ' केठविसु ०, केल्वर्तां 58 काणि 5०, तथा छ। छार्गँ झ। ५९ काय 70४8 ॥४॥ दाखह 50, दास 8। ज्षिणगार 8 करिजो 5; करिज्यो ०। वयण मर ॥0५॥ सिंगार ख। सॉमि 5, साम ०, सॉम 8। ते ०, विधि सौंभलो छ। ज्यु वार्ष तन तेज छ। 8 सील साच जगि भाषिई, जसु असाद सुख होइ पदमणि जिणपरि पालियो, सॉमलियों सह्ठु कोइ 8६

समरइ 5, समर 5 ! ९५ सरसती &। १० त॒मै छ। ११ पय 8

प्रणणु 8। सद ४) पाय 8708। केण्विसु 8,

संभल 4, समर ०,

॥६॥ श१्साम४। २जिम ०, जां ४झ। साचविव्य् 8०, साचव्यो 8झ। सुषिशेप 8, सविशेष॑ 8&।

सुभडों 5, सुहदों 8। माँद्दि 50, मे ४3 सोमा ०४8।॥

२२ गोरा बादल पदम्रणी चडेपई

विह्ान लेखक ने त्रिरोत्तर' का श्रर्थ तीन (३) मान लिया है, जो ठीक नही है वैसे भी 'त्रिरोत्तर' कां श्र्थ त्रिदशोत्तर होता है। पर यह पाठ ही श्रशुद्ध है | बुद्ध पाठ “त्रिहोत्तरे” है जिसका अर्थ ७३ होता हैं

हेमरतन का रचनाकाल वि० स० १६३६ श्रौर १६७३ के बीच मानने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वि० स० १६३६ मे उसकी आ्रायु २५ वर्ष के लगभग होगी इस दृष्टि से उसका जन्म थि० स० १६११ के श्रासपास हुआ होगा ! हेमरतन के एक शिष्य कुँवरसी की एक रचना 'नवपल्‍लवपाइबनार्था श्री श्रगरचन्द नाहटा के सम्रह मे है। उसके श्रनुसार हेमरतन का वि० सं० १६८१ में होता पाया जाता है इस दृष्टि से वि०ण स० १६८१ में हेमरतन की झ्रायु ७० वर्ष के लगभग होगी | इसके बाद वे ६।१० वर्ष और जीवित रहे होगे अत हेमरतन का निघन वि० स० १६६० के श्रास पास ठहरता है इस प्रकार हेमरतन का जीवन काल वि० स० १६११ और १६९० के बीच निश्चित होता है

पदमरिय चडेपई की ख्याति और महत्त्व:

चित्तौड़ की प्रसिद्ध रानी पदूमिनी की इतिहास-प्रप्तिद्ध कथा को लेकर लिखी जाने वाली यह प्रथम उपलब्ध राजस्थानी रचना हैं। इसकी रचना के ४८ वर्ष पूर्व मियाँ जायसी श्रपना पदमावत श्रवधी बोली में रच चुके थे

स्पष्ट हैं कि युग की परिस्थितियों ने ही हेमरतन को इस रचना की प्रेरणा प्रदान की थी वि० स० १६३३ में हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध हो चुका था, जिसमे महाराणा प्रताप के श्रटल धेयें और कुल की मान-मर्यादा की परीक्षा हुई थी | वे तो अकबर के आगे भुके और अ्रपत्ती बहन-वेटी को भ्रकबर के हरम में पहुचा कर राज्य-सुख ही भोगा कठिन संघर्ष श्रौर रक्‍त-प्रवाह तथा त्याग और वलिदान के द्वारा वि० स० १६४३ मे उन्होने अपने खोये हुए राज्य को पुत्रः अपने अधिकृत कर लिया था रह गया केवल चित्तौड़ ! जिसको प्राप्ति के लिये अन्तिम प्रयत्नों मे वि० स० १६५३ मे उन्होंने अपने प्राण त्याग किये | महाराणा श्रताप की यह आदर गौरव गाथा देश मे दूर दूर तक गायी जाने लगी | उनकी यह प्रणबद्ध श्रटलता, अडिगता श्रौर श्रणनमता सभी के लिये एक आदझोें उठाहरण वन गई थी साहित्य मे भी यह नवीन श्रादर्श एक नवीन उत्साह लेकर खडा हुआ था, जिसने लोगो के मन में देशभक्ति की भावना प्रतिप्ठित की लोग इस त्याग पर श्रभिमान करने लगे। जैन लेखको पर भी इसका प्रभाव कम नहीं पडा पद्भसागर ने तो श्रपने प्रसिद्ध ग्रन्थ

प्रस्तावना शरद

जगदगुरु काव्य! (वि० स० १६४६) में श्रकवर के भ्रागे अपनी भ्रान वेचने वाले राजाओ की भत्सेना करते हुए राणा श्रताप के प्रति श्रद्धा भ्कट की थी:--

फेचिद्‌ हिन्दुनपा बलश्रधणतस्तस्यथ स्वपुत्रीगण , गाढाभ्यथैंनया ददत्यविकला राज्य निजं रक्षितुम्‌ केचित्प्राभृतमिन्दुकान्तरचन मुक्‍त्वा पुरः पादयो: , पेतु: केचिदिवानुगा: परमिमे सर्वोषषि तत्सेविन:

स० १६४६ में पद्मसागर कृत जगद्गुरुफाब्य, ८८

कितने ही हिन्दू राजा उस (अकबर) के बल को सुचर कर स्वय के राज्य को बचाने के लिए अपनी पुत्रियों के समुदाय को बड़ी अभ्यर्थना के साथ उसे निरन्तर प्रस्तुत करते हैं। कितने ही चन्द्रकान्‍्तमणि आदि जवाहरात देकर उसके पेरो पडते हैं भोर कितने ही उसके गाढ़ अतुयायी चत कद उसके सच्चे सेवक कहलाने की कामना करते हैं 4 (परच्तु एकंमात्र मेदपाठ का राणा प्रताप जो हिन्दू जाति का कलझसूृत साना जाता है चह उस (अकबर)का तिरस्क़ार करता रहता है झौर अपने पूर्वजो की श्राव को निभाने के लिये दृढतापूर्वक झणनम बन रहा है ।)

हेमरतन ने भी प०च० की प्रशस्ति मे महाराणा प्रताप का उल्लेख किया है:

पृथ्वी परगट राण प्रताप प्रतपई दिन दिन अधिक प्रताप

अपने युग की प्रेरणा ने ही हेमरतन को इस वीर रस की रचना की श्रोर प्रवृत्त क्रिया था। कोई झ्राइचर्य नही कि पदमणि चठेपई के अतिरिक्त भी उसने कोई वीर रस की रचना की हो | पदमणी चठेपई मे रतनसेन के पुत्र वीरभाण की कल्पना इसी प्रकार के आन बेचने वाले राजाश्रो का प्रतिनिधित्व करती है। गोरा शोर बादल उस श्रान की रक्षा के लिये प्राण देने वाले वीरो के प्रतीक हैं। बड़े ही उपयुक्त समय मे हेमरतन ने श्रपना यह चरितकाव्य प्रस्तुत किया था इससे भारतीय नारी के सतीत्व श्रौर कुल मर्यादा की रक्षा हेतु प्राण देने वाले लोक-प्र सिद्ध चरितो को शभ्रकित किया हे। ऐसी रचना का महत्व भी उसी समय प्रकट हो गया था मेवाड़ के पुनरुद्धार (वि० स० १६४३) के साथ ही इसकी श्राधार की भूमि तैयार हुई श्रौर दो वर्षों मे उस जनता के सम्मुख प्रकाशित कर दी गई जो ऐसे ही त्याग का दिन-रात अनुभव कर रही थी उसी समय यह रचना इतनी लोकप्रिय भी हो गई कि कवि के जीवन-काल मे ही इसकी श्रनेक प्रतियाँ दूर-दूर तक पहुँच गईं | श्रमेक लिपिकारों श्रौर क्षेपककारो ते इसमे क्षेपक जोडे, सशोधन परिवर्तेत भर परिवद्धेव करके इसकी लोक-प्रियता

न्रे्‌ काच हम्स्तच छूपत हर

गोरा' रावतों अति गुणी, बादरू अति वरूवंत वोलिखु' वात 'बिहूं तणीं', खुणियाँ' सगला संत ७॥ रतनसेन राजा तणई', छलि हआ' अति छेक |

गोरड" बादरू वें गुणी', सत्तवंत सविवेक' <॥ , युद्धां करी जिम जस' लीड, बसुहाँ हुआ विख्यात चित्रकोट' चावउ' की", ते निसणड* सह" चात ९॥

चोपई चित्रकूट पवंत चड॑ंसाल, वखुधा-लोचन जेंसु विसाल सुर-नर-किंनर तणर्ड “निवास, सम रह्मया था जिहाँ वनवास १०॥ गिरवर ऊपरि' दूढ दुरंग, विषम ठाम गढ अति हि उतंग | गयणह' पडण विधाता डरी, जाणि कवि थम्न दीउ/ थिर करी॥ ११॥ विपम' घाद गढ' विसमी पोंलि, अति उंची कोसीसाँ' ऑलि संचा माँहि' घणा' साँसता", अणरभंग' कोट घणी आखसता १२॥ वॉक' दुवारा विसमी गली, विकर्ट' कोट” अति विसमर्ड' वली”-। “अणजाणिड सकइ नीकली', कद ही कोइ सककद कली १३॥ ि मौहि मनोहर' महरू अनेक, सगला' छोक वसईं' स्विवेक' त्याग भोग सहु' छामईं" तिहाँ, सुर इम जॉणइ इणि गढ़ि रहो १४॥

॥७॥ ९१ गोरो 50। राउ॑त 9, रावति ०] वादिल 3, वादल 8। 'छुं०। चेहूँ० सुणिज्यो ०४५ सघला 80। गोरा वादल रिण गहिल, विन्हे सुददृढ वलिवंत वोलिस वात हुई यथा, सुणयोी सगला संत ॥4॥ तणे 8। हूया राखी छ। कुल ४। ४टेक 5। गोरों 808। वबादिल ,4 | सूरिमा 8। सतथधारी छ। सुविवेक ०8। ॥%॥ १जुद्ध 80। छीयर्ड 9, लीयो ०॥ वसुहाँ 8, वसुधा ०। हुयर्ड 8, हूया ०१ गो ०। चाबु &, चावो ०। कियर् 5, कीयो ०। त्िुणो ०। सहु 8 सवि ०॥ जुध जीतो जप्त खादीयो, वसु-पुदि हुआ विख्यात ] चित्रकोट चावो कीयो, सुणयो ते अवदात 5 १० नर नर॒पति पढित सभा, साँमलियो सहु कोइ परचान्यों तन धन दिये, भम सतघारी कोइ ११॥ ॥१०॥ चित्रकूट 8 चीसाल ४। जस सुविज्ञाल », जे सुविशाल 8। तणो तणे ए, शाम 805 ॥११॥ ऊपर 2) २दूद ए0। तिहोँं ०। गयणा ०। दीयर॑ 8, दीयो ०, कीयो १३॥ तिपमी छ०एछ कोसीसा ए०5छ। माहिं छ, नीर 5&। ४घणों 0, तगा छ। सास्तता ए054 ६8 अभग ०।

१३ वाघ ४। विसमा #। घाट ४। विसमों ०। क्षोटि ०। विसमु », विसमो % विप्तमी 7॥ वाट ४। जाणि पुरुष भूलरइ पणि बढी ०, अणजाणग सकई मीफठी ४। ५६ अणजाणठ सफर नीफकी जाण पुरष पिण भूले गली ०।

04४॥ खनोपम ए७। मदुरू ०, महिल #। सघछा छ8। बसे +। सुविवेक ०॥ बमवि मुख ४। ७सपती 0/। <जद्#। सुर पिण जागे वसीमै इसे

चहलो ] गोरा धादल पद्मिणी चडपई

चघरउरासी' चोहटा हृटसाल, भणिमय तोरण झाक-झमाल

'गोख घणा उंचा आवास, राजभवणि' संधिड' आकास' १५॥ चरि-घरि गोख घणा' पाखती, रंगि' रमई बेठी देपती गोखरँ-गोखि घणी जालिका, तिहाँ बेठी दीसईं बालिका १६॥ फमलर-चदन गज-गति-गामिणी', कोमल तन दीसईं कामिनी | सात झ्ुँया" उंचा आवास, छोक वसईं' सहु लील विलास १७॥ (तिणि गठि राज करइ गहिलॉत्त'; रतनसेंन राजा जस-जोँत्त

प्रबल पराक्रम पूरा प्रताप, 'पेसी सकई' जखु* घटि पाप १८॥ अवनि घणी रूग' अविचछ आण', भारि तप जसु वारइ' भॉण"। बेरी' केद तणउ' कुद्दाल'', रण-रसीउ अति रंढाल॥ १९ पटराणी' तख परभावती, रूपईँ' रंभा सीलईं' सती

एँद्र तणइ इंद्राणी जिसी, तेहनई' ते” पठराणीट तिसी २०

अवर अनेक अछदी तखु नारि, अपछर रंभ तणई' अणुहारि।

पिण' मन-मानी” परभावती, तिणि पिणि' मोहि छीउ” निज पती २१॥ सतर भेद भोजन रसचती, केल्ठविं जांणइ' ते गुणवती'

राजा तिणि" रीझ्वबीउ' घणु", किस घणु हिच ते हुं। भणुं॥ २०॥ भोजन भगति करइ' ते नारि, तर ते भूप करइ आहार

अवर तणउ' कीचर्ड' अनपाक', रतन्सेन नह कागइ" खाक २३

१५॥ चोरासी 8। सुविसाल ०, सुविशाल ४। मणिमइ ०, मणिमै ७) जाढ़ी गोख अनोप आवास 8। भुवणि राजझुवन 8। सुरिज &। परगास 5

॥१६॥ घणणों 8। २रंग8] रमइ 8, घरि घरि गोख चिहु दिस घणा, देखण ख्याल बाजार त्णों गोखे जढित ग्युपत जालिका, वेठि तिहों खेले वालिका 8 १८॥ प्रति में यह चौपई नहीं है।

१७ गामणी 8, दामिती गरामिनी चतुर ४। दीसह सरस 8&। भुमिया '80। वसे छ।

१८॥ तिण गठ राज करे गहिलेत्त 8," "गहलोत ०। रिण प्रिसणों मौत्त 8, * राजा सजोत ०। तेज 8 पैसि सके नहि 8) त्सु ०।

॥१९॥ ९१ त्स छ। २जाण 80] साल 03। तपइ 80, तपै छझ। ५जस 8। बारह ४। भाण 8; वॉण ०0। वयरी झछछ, केवी 4। तणो ए85। १० कुद्दार ०0, कोदाक 8 २१ रिण 08। १२ रसियो 8। १३ मढ ४8।

॥२०॥ पटराणी 5। २१तत्त 8) रूपइ छ0, रूप छ। सीलइ 80, पीले छ। त्णी ०४। एू रतन छ8॥। तणै छ। पटरॉएणिं ८।

॥२१॥ अछे 8). २तंस छ। तणेझ। पणि 03। मनिशमानी 80, भांनि छ। पणि 05। लीयो ०5।

सप्त 8॥

२२॥ ते फेलवी 8 | , जाणिइ 8, जाणें 5। रसवती 8। राण झ08। तणों चित्त छ। रीक्षवीयों ०, रीक्ष्यो 8। घणु ०, इसो ४। किस #। "९ घणु झ। १० तेहनो ०। ' हिव ०॥ १२ भणु ०, से ११- चात्तुरता नु कद्विवों किसो छ।, ॥२३॥ १करि 0। ' निज ०, १-२ राणी करे रसोडो हाथ, तव ते आरोगे नरनाथ॥ तणों ०। कीपो ०४। जंनपाक 8। नह ने 8। लागिइ झ| छागे 8। खाख ह&।

|

फ्रबि हेमरतन कृत [खंड

माहो-माहि' घणुं' मनि-मोहँ, सहि सकई' खिण एक विछोह वीरभाण" तसु सुत अति सर, प्रतपद तेज तणु' घट पूर! २४॥ चतुरंग सेंन सँपूरण! साथ, नीतईं राज करइ नरनाथ |

अरि सगला नाँख्या ऊछेद, खिति धरताँ तसु ना वइ खेद २५ सवल सूर साचा ससनेह, छल करहँ नवि दाखई छेह। सुरपति दियई' जिणाँरी' साखि, इसा सुभट तखु घरि ऐएँक छाख' २६॥ हय गय पायका रथ नीसंख, करे सक्कइ को आकंख

इण' परि परिगह तणइई पड्टरि, रतनसेन राजा भरपूरि॥ २७

एक दिवस भोजन नई समइ', आदी दासी इम वीनमइ

“सांसि' ! पधार्ड भोजन भणी*, पाक हआ हुई बेला घणी” २८ आचबी वइठों' न्प वइसणई, पटराणीखु प्रेमईं" घणरँ

थारू कचोला कनकह तणा*, सोवन पाटि पथराव्या' घणा॥ २९ प्रीसरइ भोजन भगति भँडार', नारी रंभ तणईं" अणुहारि

राजा भोजन जीमई' रंगि", विचि-विचि वात करइ कणयेगि ३० 'कदली दुलस घालइ वाउ', जिमतर्ड' जपदइ ते नर-रार्ड

“आज भोजन भावद' कोइ, नितु/ निसवादा' जीमण “होइ ३१ शाक-पा्का सगलछा पकवांन, चुरि निसवादा' छागा धांन।

रूडी जुगति' करड" रसवती””, तव ते पमणई' परभावती ३२

स्त्री

॥२७॥ १माहिं छझ २घणो प्रेम मन-मोह समोह 8 सकईं ४0, खिण शक खंमे विरद्द विछोह 85। वीरभाण 8। & प्रतपै 8) तणों ०, प्रताप पडूर २५॥ सपूरी ०। २उछछेद ०। खेध ०५ सवल सेन सझाइ घणी, न्याय राज पाले गढ़-घणी अरि नापै जेहने मडवाव, जिम गेवर दीठे वनराव २८॥ ॥२६॥ दाखइ 8। २वायहइ ०। ह$ जिणरी ०0। इसा सुभट घरि वसइ के लाख झ। सामंत सकल वढा रजपूत, साम-भ्रमी वाका रिण-घृत। महिपति मोटा चित्त उदार, दोश लाख सेवे दरवार २५ ॥२७॥ १पाएक छ। १इंणिझ। रहेतणईंठ। २-३ अबर परिग्गदतणो पडूर। ्‌ है गे रथ पाशक अणपार, नीत-रीत पट धरम आधार रिद्धि-सिद्धि पूरित भंडार, दरवारे नित दे-दैकार ८३०॥

२८॥ "नई 5, “ने छ। समझ 5, समें छ8। वीनवई 8, वीनवृह वीनवै 8। खामि 8 पद्धारो ०, पधारो 8घ। काजि वेढ 8, भोजन ढील कीजे राज 8। २९५॥ वइठड 5, वेठो ०। वश्सणइ ०। सू 5, सू ०। प्रेमर म0। घणइ ०। '"तर्णों 8 पथरानज्या 4) घर्णो ०। , नृप आवी वैठा वैसणै, दासी वाय करे वीझ्णै थाल कवोला सोवन तणा, कन्क कपाट पथराया घणा ३१ ॥३०॥ १प्रीसे८४छ। २अपारछझा सैंगीछ। तणगैछझा जनुहार ०। जीमे ४। ७रग ०0। करेछ। ५९ पिण चग 0।

३२१॥ १-१ राजा मित्र कदे कहाइ 8। जिमतों ०; २-३१ भोजन विचि वोल्यो रदहाय ४।

भावें छझ। नित८४। ६८ निसिवादा ०, जीवणि ०।

॥3२॥ सकल छ। २३ पकवान ४0। निसिवादा 70, सुसवादा झ। घान 8॥ युगति ०७। करो 8। अभिमान ४8।

लागइ होता 5। < अनपान 8। $ जपद्ट ०, मान तणों मूकी

पहलो ] गोरा बादल पद्मणी चडपहई

आसंगइ आणी अभिमेन, रैणी वोलइ-“खझुणि राजॉन' ! भगति भावद' मुझ केंव्ठवी, तड' काइ नारी आणड' न्वी ३३॥

परणउ काइ जई' पदमिणी', ते जिम भगति करई' तुम्ह' तणी |

अम्हैं" जिमाडी' जांणां' नही”, कोप” फीड कामणि इम कही ३४ भाणवती' हुई महिला सूल', मार्णा गमाडई विनय ससूल |

वित्तय” गयईइ“ रहंई' सोहाग'", विण सोहाग'' छामई भाग ३५॥ श्तनसेन राजा रंढाल, तिजि! भोजन ऊठि्ड ततकालढ।

“तरऊ' हु जड' आएु' पदमिणी', भगति ज्ुगति जीमुँ ते" तणी ३६॥

इम गरवी सारी किसुँ, नारी आगलि हु किमा खिरुं

असकय॑ नही हुँ आणण' नारि', क्यु' एप अबछा कह अविचारि” ३७ मुछ' मरोडी ऊभर्' थयउ', '“गरव भझही घर वाहर गयउ'।

शतनसेन राजा एकलूड”, साथि खवास करी इक भलड़'॥ ३८

सवल्!' खजीनउ' साथईं लेइ*, “असि चढि चाल्या छाना बेह'।

फोइ जाणईए' विरतंत”, खिति-पति मनि अति छागी खंति ३९५

३३॥ १-१ आसंगे छोडी मुख लाज, राणि कहे सॉमिलि महाराज झ। भावै 5। त्तमे कॉइ ०। आणो ०, आणो 8 |

॥४३४॥ जाई 8। पदमणी 8, १-२ परणों नारी जे पदमिणी 8। करे 8। तुम ०। अम्दे 8। जीमाइु 8छ॥ ७जाणु ०। <८मांण ०। कीयो छ।

३ै५॥ साणवती छ। मूलि छा मसाणि माने छू गमाडि ०, हुई ४। विनष्य 8,

विणसइ ०। सवि घूलिछझ। विनह8। गयेैझ। रहै ए। १० सोभाग ०।

; ११ सर्ईभाग ०0। १२ लाग 4, छामै 8।

॥8६॥ तजि 05।* ऊठ्यउ 0 उठ्या घ। १तो ०9। जो ०छ। पदमणी 8। तस ०, तेह ४8।

॥३७॥ किमि8छझ। असक 03] आंणिवाघ। हार ०। किम 08] धृइ्ठ 0। ईं वदि ०, जपे 8 < अविचार ०४ | 2505 प्रतियों में निम्नलिखित दो दोहे और एक गाथा क्षेपक

(१) वस्येड वचन अति आकेरड, राणी माण गहि्ि तेजी सह ताजणउ*, सहइ तः टाइर दिछि॥ ३१७ ज॥ [१ बच्चो, आकरो, $ जिणो, तट्टाइर ०॥ ] वचन कहिर्ड अणभावतो, राँगी मान गहिल तेजी सद्दे त्ताजणो, सहैय त' टारर ढिछ ४१॥ (२) सुददढ सपुरसों सिंह नूप, प्रहरेश वछवत अनश बकारधा" माण वर्दि, ते नवि कदा खमति ३७ झा [ प्राहिइ; वकारथा; हे मौण वदि ०॥ ] सीह सुहड नृप सापुरस, एद सदा वलवत' ) वाकारता माण वस्ि, कदिहि वयण खम्त 2 ४२ गाहय (३१) माया पियाइ वधू, भज्जा गेह घण धन्न च। अविमाणया पुरिसा, देस दूरेण छट्डति 8४ ३७ ०॥

३८। सूछ 8 ।) ऊस्तो 0 उस्मा 8४। थया 8 ४४ गमर करी निज महिले गया या झ। एकलो 8&। भलो 0छ।

| रे5॥ खरच 8। २खजीना ७8। 8 साथै छ। छेह छ। है चढि छाना चास्‍्या तेह ७, अश्व॒ 5, अश्वि ०। जाणै ४। चरतत 8। राजा मनि छागी अति खति झ।

हि

आणु ०, परणु ४8।

हर कवि हेमरतन कृत [ खंड

“प्दसिणि' परणी' आदँ' घरे, नहिं तरि रहिस्यु' गिरि-कंदरे |

विण पद्सिणि' नवि पोढ़े सेज, विण पद्मिणि' हर हित हेज” ४० दम प्रतिज्ञा कीधी पूर्रा, राजा चालिड' साहस खूर'

बीस तीस जोअण वउलिया, तब ते बेही इम' वोलिया ४१॥

“उपर खेचज' छागइ' वीज, विण झगडा' नवि थापद' घीज |

विण चादर नवि वरसइ' सेह, एक पखउ नवि हुई/ सनेह ४२॥

गाम नही तड' केही सीम, अगनि माहि' नवि जाँमईं हीम |”?

सेवक जंपद' “सॉमी', सुणड", प्रगट प्रकास् मुझ मंत्रणड' ४३ मरम पखे' किम रहीद माग, ताण्यां विण किम छाभइई ताग”! |

"गजा जंपर “पद्सिणि भणी“, मई ए. अवनि उलंघी घणी ४४ पद्मिणि' तणा' पठंगा जिहाँ, ठावी ठोड वतावर्ड' तिहों”।

सेवक जैपदई' “सामी', सुणउ*, खरच-वर्च' साथइ” छद घणउ! ४५॥ पिणि' नवि जाणी' जा छगि पंथ, तॉ छगि सगलऊ' गोरख-कंथ'” वइठउ" भूप जई तरूु तरूई, पंथी आवि्ड”" इक तेतलइ ४६॥

भूख च्रिसई सेदाएं घणु, पोतुं बीतु/ अमलह' तणं/।

पंथ तणु' वलि पूरड'' खेद, घटि सगलई हा परखेद ४७॥ | अटवी माहि' घण आफलइ, पिणि' नवि" कोई मॉणस" सिलइ |

तिणि' ते” दीठउ/ भूपति जिसइ'', पगतलि/ आवी“ पडीड तिसखइ" ४८॥

॥४० पदमनि 8।॥ २परणी 8॥ | आविस 8। नहिंतर 8। रहिसूं 8। पदमणि 85॥ युद्ुु 0 पोढोौ 8।

४१ मनसु एहवों पण आदरी 8। चाल्यो ०, चाल्या 8। हे धरी म। जोयण 8, वोलिया 4, रशाति-दिवस चाले श्म राव8। वेऊ ०॥ ६एम ०। पथ ल्गे हैवर पाव 8 ४७।

॥8४२॥ में यह अधिक है- | राजा भेद प्रकासे नहीं, सेवक वोल्यो अवसर लही

शक्षेत्र 3) २७गे४। झगढइ 0, झगड़े झ। होवइ छ) वरसि ०, बरते ४। पस्तो 5७) हुइसइ ७, होइ ०, हुये 8॥ नेह 5।

॥४४॥ तो ०05) माँहि ४। रे नमि 8, किम 2। जामईं 8, जामइ जामैे ४। बोलइ ०,

वोडे 8। खासी ०४) ७सझुणो ०8। प्रगासर ४, प्रकासो 8। भ॑त्रणो मत्रिणो 8।

॥४४॥ पसइ पखे 8 र्‌ लहीये छ) हे ताणा 8। ४जिम ४8। लम्यश लहे 8। प्राग 88 तव वलतो जपश नर-राज 8 हु चालयो छु पदमिण काज

॥४५॥ पदमणी ०] पदमण छ] तणी 9 होश 82। वतावो करेवी 5। ५सोइ ४। जपै ४&। खामी 08। सुणो ०४। विरच ०, लीयो 5घ। १० साथि छट्ट 8 छे साथे 8 ११ घणो 5॥

॥४६॥ पणि ०४। जोंगड़ ०, जॉण्यो जा संबंध 5 सगलो 08] धघंधघ 8। चभेठो ते तलरईं ते तलिं ०; ५-६ बृयनछाया राजा पीसमै 8। आयो आब्यो ह। < एक ०८। समे 5।

४७॥ $ त्रिपा 8 तिसा 7। भेदाणों भेदाणो 8 घणो ०05। ४पोतो &। ५वीतो 02 अमलठी ७त्तणो ४॥ < पंथि8 08। ९५९ तणो करता 58 | २० पूरों उपनी ४। १५१ सघले 8। १२ प्रगस्थो ४।

॥४८) मादिय 2, माई ४। २घगो ०। आफडै ४8। ४प्॒णिछ। ५नवीए। कोइ 0७म्रापप्त 9 मिडे # ति८&। १० वलि०, पढे ०। ११ दीठो दीदी

टन शिमए जिसे 2) २३ जागलि ए।.. १८ जाविझ। १५ पढीयो ४। २६ तिसईं

हे

पहंलो] गोरा बादल पंद्मणी चउपई

राइ कीआ सीतल उपचार, वाली! चेतन पायुं वारि।

अमल 'अमोलिक देई करी, भाजी भूख गई नीसरी' ४९

सावधांन हुउ' पंथी' तेहँ, कर ज्ञोडी' जपइ ससनेह्‌॥

“तहूँ: मुझ्त कीघरड' अति उप्रगार, जनम दीउ“ झुझ बीजी बार ५० मुझ सरिखर्' को' कहियो' काम, हुं सेवक नई तुं सुझ सॉँसि””

चलतु' राइ भणइ सव्िसेस', ““तईं दीठा बहु देस विदेस” ५१॥

'पुद्दवि फिरंतद तई पदमिणी, काई नारि कठेई खुणी'”।

तव ते जपइ' “खुणि मुझ 'घणी' ! सिघल' दीपि घणी' पद्सिणी' ५२ 'दृक्षिण दिसि छद्द सिंघल दीप, सगलाँ दीपों माहि प्रदीप

आडड' आबइ' उद॒घि/ अथाह', तिणि तख कोइ लासइ माह'॥ ५३॥ इम निसुणी राजा रंजीउ', लिंघल दीप दिसी' चालीउ'

पवन-वेग चंचल चतुरंग, अंबरि ऊड्या बेड तुरंग। ५४

गाम नगर पुर पाटण तणा, मारग माहि उलूंध्याँ घणा।

"अखलित गति ऊलूंघी भही', समुद्र समीपहँ' आदव्या' वही“ ५५०॥ आगलि' उद्धि कफरई' कलछोल, छिटकि रही चिहूँ दिसि जलूछोलि' | पवहंण' तिकोई पइसइ नही, तउ॑ कुण' माणस जाह चही' ५६॥

पॉणीरुं' नवि चालइई' प्राण, 'उद्धि तणा आवद ऊर्चाण' |

रतनसेंन चिति' चितइ“ इस, हि” जगदीस करीजइ“ किसे ५७॥

॥४०॥ जाल्यो 8। चेतनइ 0॥ हे पायो ०, प्याइ '४-४ «वगालि पायो ततकाल, तथ प्रग़व्यो चल तेज विलास 8

॥५०॥ हुयो 08 सवि 8। रे देह 8॥ जोडीइ 58, जोडी इम 8। जपै ७। कंरतां ७।|जन्म 8। दीयो ०७।

॥५१ सरिखो ०8)॥ कोइ म08। कहयो 8, कदज्यों 9७ साषों छ8। नह

खामि ६-६ पम्णे ऐंम तरेस ४) तें दीठा होस्ये वहु देस '।५२॥ १-१ प्रथवी पीठ सिरे पदमणि, किंण देसै उतपति तेह तणी एह भेद जे मुझ ने कहे, छठाखपसाव वधाइ छट्ठे है २जपे ४। अरदास 8। संघर 500। देसे 88_ अछइ ०, उतपति ८5। तास ६०

॥५३॥ १-१ शघलड 500, छे दखिण दिसि सिध 8। प्रसिध 8) आडो 08। जावे झ। समुद्र 8, जलूषि 8। अथाग ४। तसुनो ७, तेहनो 08॥ लह्‌इ 0, रहे ४। ५९ प्ञाग 5। ॥५४॥ रजीयो ०। २दिसा०। चालीयो ०॥ ४जाइ ०। कुरग ०। २४ वात सुणत-राजा चित चढी, दीघी रत्तन-जडित मुद्रडी। पूंछी सवि सारग विवहार, चंढीया राजा दर॒प अपार 8 ६१॥ ॥५५॥ जेह ०। बवहतोँ 5 देखे 8। तेह8। राजा मारय छुष्यो जितै ४। * समीप६ ०, ससीपे 884 आया 8४। तिसे 8) ॥५६॥ आगे ४७। कर्‌इ 50, करे ४। छलकि रही ०, छिल्ता दीसे पाणी छोलि 8। पवन 8 प्रवदण सके चालि जिहाँ 5। किम ४। तिहाँ ६५ 4

॥५७॥ पाणी छ। चालिइ ४8, चाले ४। प्राण 8। ४-४ लागै नहि कोइ घुधि विणाण ४8। चित ४। लचिते ४5। हिवइ ०, हिचै ४७५ करीसि ०, करीजै 8 किस ०।

्छ

कवि हेमरतन ऋूत [खंड

भूपति चिति' चमकइ' पद्मणी', जरूधि चेछ पिण बीहामणी'

नई पिण' उंडी' गुल पिण* सीठ,' ऊखाणु' अंख्या” दीठ ५८॥ बाघ अनइ' दोतडिन्' न्‍्याई, सुझ आज पहुतउ आई!

केम करूं हिच चितु' काइ, मेड कोई अधिक उपाइ! ५९ फिर्तइई' फँम पयोनिधि पास, दीठ्' जोगी एक उदास

साधइई' पवन सदाई' तेह, जगम जोग तणड' गुण-गेह ६०

सिध साधक जोगेसर जती', पणमी' पासि गय भूपति

विनय' करी राजा वीनवइ", वलि-चलि सिर तखु चरणे ठचइ ६१॥ “सॉमी' सिंघल दीपह' तणु, मुझ मनि हर॒प अछद' अति घणु तुम्द सेल्योँ हिच भावटि दलूइ, पदसिणि नारि किसी परि मिलइ ६२ 'मुझसखु सॉसि कर हिच मया', दुख देखेताँ वहु दिन थया” विन्तय-चचर्ता वीनवीयाँ जिसइ'“, सुप्रसंन हु जोगी तिसइ ६३॥ नेत्र उघाडी निरखइ! नूर, आयस मनि' हु आएँद पूर।

“आवर्ड रतनसेंन" राजॉँन” | नाम कही 'तखु दीघुं मान ६४ बिसमया हुअर्ड' राजा भणी, 'आऑँ किम वात लही मुझ तणी!।

जोगी जंपई*, “खुणि' राजाँन ! 'जउ तु आयउ इणि मुझ थॉनि'॥ ६५॥

॥५4॥ मन 8 २चाहे छझ। ह# पदमणी 0०। सोह्ामणी 8 8 नय ०। पणि ०॥ ७ऊँडी ०। कऊँडी ०। उपाणो ०। १० साचो ४8। ॥५५॥ अने ४झ। तडिनो ०8) '१ न्‍्याय5) पहुतुँ 8, पहुतों छ। आय ०। करो ०।॥ च्यत्तों ०५ माडो ०। अपर ०, जवर ४, ६-७ राजा इम चिंते मन माहि 8। काने मुद्रा रयण झलठकति, लाइ विभूति वइ्ठो तपसत। चित्रात्तच आसनि मगचर्स, ध्यान मोन व्यावई शिवसम 80 ६१॥ मुद्रा नाहि विश लगाइ , वैठो शिवसुं ताली छाय ध्यॉन मोन व्योंवे शिवससे, चीत्रनतुचा आसन सझगचरस ७०

॥६०॥ बिप्त्॒ 5 फिरतों फिरता 88 २दीठो ०७। सांधे 8।8 सदाही ०, साधना 5): है|

॥१६१॥ साथधिक ०। योगेसर जोगीसर ४। जती ०४।

प्रणमी 5। गयो 08।

विने छ। ७विनवै 8। वे ४8। ॥६२॥ खामी 08)। शघतद् 48, सीघल ०४॥ १दीपी ०। 058॥ 0 232 पक 9 दी तणो सुझिमंन ०॥

॥६३॥ मुझसु महिर करो हिवे मया ०, महिर करी मुझ कीजै मया वोह ०, सेवक ऊपरि आणी दया ४। हे बचन ०। बीनवीयों वीनचीया 8। जिस्ते 08। हुवो ०५ हइुमो ०; *: 9 ६४ ७१ 28 ७३॥

१६४॥ निरस्यो ००8४ १मनझ। ३हुंवी ०, हुयो छ। सैंवी ०, आवो ४। रतनसेन 5, रतनसेनि ०। . दीधों - 8,.... मन दीपो वहु मॉन

॥६०॥ विसम३। हूवो, हुवी ०, इुयो ७। किम इणि 5, इण ४, बात 8, बात ०, छही 8, कही 3>3किम एजेंणिपरि - ०। ४जयै० कह ०। ५सुणो ०। ६..-,-«भाव्य्.- *न्‍्थात्रि 9, जो «आयो मुमनई..-० जो तु भायो माहरे थानि ०, जो बुम्द्द म्राए माहरें,..8॥

पहंंलो ]

गोरा बादल पदमिणी चडपई 6

तर! हिर्च' सगलड' होसी' सलउ', मत' मनि जाणई' छुं/ एकलूउ वीद्या अंबरिं! ऊडण तणी, समरी साही करि समरणी ६६॥

वे असवार घरी निज बाथ', सिंघल दीप गयउ' गुरुनाथथ

नगर समीपद आया' जिस, आयस“ हुड' अलोपी तिसई ६७ राजा रंजिड' देखी दीप, जो जोवई ते अतिहि उदीप' | |

फोलाहल अति कसबर्उ' घणउ, चणज* अनइ व्यापारों' तणड" ६८॥ 'हीयइ-हीयउ॑' दलाइई' सही, विरछउ' कोइक' जायइई' चही'

आगलि पडहड< फिरतउ' दीठ', 'तास रूगइ ते आव्या नीठा ६९॥

पूछण छागा पड॒ह विचार, तव ते जपइ “खुणि असवार सिघलो दीप तणउ' राजी", शुणे करी महिमा गाजीड' ७०

॥६६॥ तो ०। हिवइ ४8, हि£वे ०। सगलो ०, सवही ४। होसइ ०। भरो ०), भला ४|

मति ०॥

७जाणो ०, जांगे ०। <८छु मैं ०. छह 8। ५९ एकलो ००, एकलछा ८।

१० त्रिया ०0 २११ अबर 7०।

॥६७॥ हाथि 5 हाथ 0। शुघल 48 गयो गया 7० सुपरनाथ ०, गुरनाथ समीप ००4 जाव्या 8, आयो ०। जिसे ००) जाइस ०। ५९ छुवो थया

१० तिसि छ0।

॥६८॥ रज्यो ०, रज्या २रूप ०। जोबै 00। उठीप 5 सरूप 00] कसुबद 8;

कलहद 007

व्यापारी ०।

घणो ०० विणज 58, वीगजण० <भने ०। & च्यापारी ०, १० तणो ०।

॥६५॥ हीये हीयो 58। हीयोहीये 8। दलायइ ०0। हू धंके ०। बिरली ०, विरलो कोई 00] जाये जाई 9। सके ०। इस अद्धांली के पश्चात्‌ 809४ प्रृतियों में

थे क्षेपक दें“

|]

सोवन-कल्स सोहइ ( सोद्दे ०) सवि (सहु ४) गेढ

नर-नारी बहु ( सह्ठ 0) चतुर सनेह (सनेह ०)॥ 5 ७०॥

मणिमय ( "मै ००) गठख (गोख ००) जड्या अतिसार

माद्दे (माँहि 80) बइटी (वैंठी बैठा ०) राजकुमारि ( 'कुवारि 8, 'कुआर )॥ थानकि थानकि ( थॉँनिक ०) दीसइ (दीसे ०) चरी |

जाणे (जाँणि ) इद्रपुरी अवतरी 8 ७१॥

चतुरा नारी मोहन वेलि ( वेल बेलि ०)

सहियाँ स्थूँ (यू 8, सुं ०8) हीडइ (हीडे ००) गयगेलि (गजगेलि ००)॥

नव नव नाटक (नाटिक ०) जोबइ (जोवे ०४) भूप

थानकि थानकि (थॉनिक ०) अकल सरूप 5 ७२॥

हाट पटण (बाजार 8) सह्ठु देखइ ( देखिए 8, देखे ०) राइ (राय ०)॥। सध्य साग ते नयरें ( नयरद्ध ०5) जाइ

इससे आगे शेष अर्दधाली (६५ ) भारम्म होती है - पढद्दो ०छ। वाणतर्ड 0, बाजतों ०, सुणयो ४8। १० सुणइ ०, सुँणै ०, जिसे ४। ३१ तेह वहि आवइश नृप द्वित घणइ ०, तिहाँ वहि आवै त्रपति घणे ०, राजा देखण पहुता विस 5 * ६५ छझए ७३३॥ ०7० ८०॥ 5 ८२॥ ' ॥७०॥ बिचार जपै' ०, ते जपै “सुणिद्दो असवार !”5। सघिल ०। तणो एड। राजीयो ०, राजान ख। ,.गाजीयो 2, छील-विलासी शद्व-समेनन & ७० 70 ७३॥ 7

<१ ४० ८३१

१० कवि हेमरतन कृत | खंड

तास वहिनि' परतिख' पदमिणी$, त्रिश्ुवनि' ओपम'" नही तखु तणी।

अह निसि पद्मिणि' ते” इम वकइ', सुझ भाई जे* जीपी सकईो ७१ तेह नह कंठि' ठु चरमारू, इस जप" ते अव्ा' बाल ।!

“हिच ते पडह वजाबइ इसड', मुझनइ जीपइ नही को तिख् ७२॥ जीपण तण्ण घणा परकार, रिण-रामति' किनोँ' मलछाकार। 'किण ते वात करइ खँति घणी””? बलूतउ' वोलइ/ पडसद-धणी' ७३॥ 'रिणवर्ट! तणी रहड' हि वात, संतरंज' रामति' खेल घात।

जड॑ कोई मुझ जीपइ' सही, * तड मईं वात इसी छइ कही ७४॥ अरध देस अरधउ' भंडार, विहची आप अधिक उदार।

भगिनी' वली' परतिख' पद्मिणी, परणावी थुँ पहिरामणी' ७५

ए. मुझ वाचा अविचल' अछद्द', इम मा कहेज्यो' कहिड/ पछद

ऐएँम' सुणी' रंजिउ' नर-राइ' , संतरंज” रामति आवइ'' दाइ” ७६

भूप भणई! -“संभलि' मुझ वात, संतरंज' रामति* केही मात

जे जाणऊ ते लेज्यो' दाण, पिण तुम्ह' वात” अछइ/ परमॉण?” ७७ एम कही ते मेल्हिड' माहि, रामति' ऊपरि अधिकी" चाहि |

तिणि' जाई” सिंघलपति“ पासि, वीनवीड' सहु वचन” विछास*+ ७८॥

॥७१॥ वदिनि 8, वहिलन ०8। परतखि ए४। हे पदमणी ०। तिजुवन ए8॥ उपम् 0; ओप 8 | अहनिस पदमणि 0, पदमिनि ४। मुहृदइ ०, मुहढे 0, एड्बु 8 4 बकरे 78। १० बधव्‌ एछ। ११ को 7, कोई 8 १२ सके एम ७.७१

॥७२॥ तेहने ०, तेहने ०, तेहनें 88 २कठ ०। ठवो ठठ ०। बरमाल 8। जपै 7, जंपे छ। सुदरि ए80 ७इसो ॥< कोइ 8॥ 4 छर॥

॥७३॥ < प्रति में; यह चौपई नहीं है रिण ०, - रॉमति ०, रिणवटि 8 किना ०कै खगभुजि 8। किण ते वात करे खानि घणी ०, किण परि हुस असे तेहतणी छ8। बलतों ०७, बलतो 9। बोले ०, जपै 8 पढहा 8।

७४॥ रिणपट ०। रही ००, नही छ। ३६िचे ०। ४वात 7, माहिं 8। सतरिज ! राँमति खेलइ ०, खेलण ए5। ८घात 7०, चाहि 8। ९जे जैको० १० मुझ 5, मुझनइ मुझने ०। ११ जीये 9; ९-११ रमता मुझसु जीपै लेह 8। १२ ते मिह वात इसी कद्दी सही तो में वात कहा-इम कट्दी ०, भुद माँग्यो फल पौमे तेह 5 ७७१

७५॥ अरधों ०४ आपउ ०, विहची आपु ०। अर॒ध , २-३, है गे मणि मोती अणपार 5! भमगनी ०, वहिन 8॥ पणि ०0 वल ०, सुझ ४छ। परतसि ०। पदमणी ए४। < दि ०, दों०। पहिरावणी 8।

॥७६॥ ६५ अविचल ०9 | झछे 00 भति ०। कहियो कहिज्यों ०, कहयो कृहियो ००४। पछे 98)। ७तवझछ। निसुणी 8। रज्यो 008।

१० नरनाथ ४। २१ सतरज ०। १२ आवे ०, माहरें झा श३ हाथ 5।

॥७७॥ भणे ए8 सेंमिलि एछ। सतरज ०। रॉमति 5। माति 8। जाण्यर्र ऊ, जाणो छए जॉंणो ##] लेब्यो 3, लेयो 0, हेवो 79, मोॉंडो छा ८एुए४5॥ मुझ एड १० वाच 7। ११ अछे ०४। १२ परिमोण ०।

॥७८॥ तस 8। भेल्ह्यो मेल्दो ०, मुक्यो 5। माहि 088 रॉमति 985) इधकी - तिण४। जाय०, जाइघ। सूघल" «0, सींघल" छ। ५९ वीनवीयी 78। १० धचन ०। ३१ विलास ०, विलासि झ।

|

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पहला ] गोरा बादल पदमिणी चडपई ११ धवंघलपति' मनि' हर॑खिऊ घर्णु', तेडावी दीघुं बेसणुं/

आगति सागति करि' अति' घणी, वात बिहुं र्मवानी वणी ७९॥

ग्रेठा' बेही' रमवाँ भणी, जाणि' कि सिख़हर' सह दिनमणी

पासई“ बेठी' ते पदमिणी*, कोमलछ कमर वदन'' कासिणी'॥ ८० रतनसॉन' सतरंजई' स्मई, तिम-तिम नारि तणई' मनि गमइई

जु्॑ किमई' जीपइ* दाण', तड” मुझ वखत' सही" सुप्रमोण" ८१॥ सिंघल'-पति मनि छांका' करइ, रतनसेन' थीं! मन महि' डरइ'

मनमथ रूप मनोहर चेस“, कोइक छइ सबक नरेस ८२॥

फेलि करंताँ रामति! रंग, खिघल' भूपति पाँमिड सेग

'जैत्नर अनइ' जस हू घणउ”, "परत पुहतउ पदसिणी तणउ" ८३॥

फंड! ठवी कोमल वरमाल, जय-जय शबद' जगावइ" वाल

सिंघल' दीप तणउ" हिच” घणी, भगति करइ' ते! भूपति तणी ८४॥ सामदृणी अति मेली घणी, परणावी बहिनर पदमिणी |

अरघध देख' अरधा' संडार, विहची दीचा अधिक उदार ८५॥

परिघल दीधी पहिरामणी', हरषित नारि हुई पदमिणी

बि सहंस बॉदी रूप-नि्धान', पद्मिणि' पासि रहई' खुविधोन' ८६॥

॥७९॥ 'झांघल" &0, सिंघलि मन 50, तव ४। दरख्यर ४, हरख्यों हरख्यौ ०,

हरखत 8। घणों 00, थाय ४। तेढावीं दीधो बेसणी वइंसउ मेल्हि प्रधौन तेडाया माहिं 88 कीची एछ। ब्रेड 0।

<८०॥ वयठा 5, वैठा ०। बेई बेह ०, विन्हे 8) रमिवा ०, रमिवा 0, रभेवा छ। जाँणि 0८।

कि 8, '६ शशिहर ए४। नैऊझ। पासि ०) बदठी ०। १० पदिमणी ०। ८-१० पासे आई वेठी ते पदमणी ०, पास आई बैठी पदमिणी छ। ११ बदन ०। १३ कामणी ४? कामनी ०, कॉमिनी 8

है ८११ रतनसेनि ०। सेन्रंज३ सेन्नजे ०, सत्तरजें 5... रमै 799] तणे ०, तणै 7४।

गम एछ॥ जइ३०। ७"हीक०४। ८जीपै 95। दाण 08। १० तो ए४8। रा ११ घखत ०, पेखत 8। १२ चढ़े ४8 १३ प्रमाण 8 परमांण-0४8।

८२॥ शैधल”" 20४5, सघल" ०। संका ०७ संक्या ०। करे 9 करे ४। रतनसेनि तै0, नवि 0। माहि ०, मै ०0। ७ढरे ०5) ८चेस7०। ५छे एछ।

श८३॥ ३१ रॉमति &08] इहाघल 4। पम्यो पम्यी ०, पॉस्यो ०0। जीती नई जस लीपो घणो ०, जीपी ने जख लीथो घणी ०, जीपे ऊठ्यो रयण नारिंद ४। परतो पहुतो पदमिणी तणो परत्यो पहुतो पदभणि तणी ०, पदमण मनि हुयो ऑणद 5

॥८४॥४ कठि छ। कॉमिणि कामणि ०। कॉमणि झ। बरमाल 8 शब्द 8 सवद 008। गावइ 8, पयपश 0, पयपै झंघरू &, सीघल 8। त्णो 078। हियवें 9, हिवै 2। करे ०, करे 8। १० तेण 5, तिण 8।

# ८५॥ करपि देसि ०, ..राज ०9। अरधो ००। ३-३ विहची आप्यो जरधोदार विदची आप्यौ भरध उधार ०, भणिमॉौणिक मसुगताफल सार 8।

॥<६॥ पदिरोवणी 9, पहिरामणी &। थई ४। 8३ ,विलास 8। पदिमणि पदमणि ०। रहे सावधान सावधान 0, ४-< सेवा सारे पदमिण पास !

|

१५ कवि हेमरतन रत [खंड

हा

भमर घणा गुंजारव करईँ, पदमिणि-परिमल मोह्या फिरहँ/ पद्मिणि' तणउ'* पटंतर एह, भूछा भमर छंडई देह'' ८७॥ पद्मिणि! रूप कही कुण सकई , इंद्राणीथी' अधिकी' जकद रतनसेंन परणी” पद्मिणिश, आस सँपूरण हुईं मन तणी: <<॥ दिन दस पंच' तिहाँ सुखि' रही, रतनसेंन जर्पा अवसर रही 'खिंघलपतिरुं/ शिष्या' करइ', 'विनय-वचन मुख अति उच्चरइ” ८९॥ सिघलपति' साचर्डा भूपाल, आदर अधिक करी सुविशालू

“रंगरढी वहिनडनी वह, सिंघलनड पति पूरइ सह ९०॥

'सेंन घणी ले सिघलनाथ, रतनसखेंन नह हओ साथि

सेना सगली' समुद्र मझारिं, प्रवहण' पूरि करायड” पारि ९१॥ समुद्र परद' पुहचावी करी, सिघलनाथई शिष्या करी |

प्रीति रीति पालिड' पडिवनड', व्यू" ही अधिक वधारिड' विनड/ ९२॥ 'सिंघछपति पाछा संचच्या', रतनसेन डेरइ ऊतप्या |

भार कला भुंजाईँ तणा,' डेर्‌इ/ डेरइ" दीसईँ' घणा ९३॥

॥<७॥ सदा 8 ३२ गुजारबि 0। करें ए8। पदमणि 7, पदमिण 8। फिरै ए४। तणो 008) ७ए३०। ८मोगीछझ। छठे ०, छौँडे ७४ १० देइ ०।

॥]<<८॥ पदमणि ०, पदमिण 8) सफर ०७। छहुदी 8 अधिकोँ श्थकी 0। जिकर ०, जेकद ०, जकै घ। ८६ रतनसेनि ०0। ७ते परणी 8। < पदिमणी ०, पदमणी ०, नारि 8॥ ५-५ आसा हुई पूरी मन तणी आस पूर हुई मन तणी ०, साईं सवाडौं पूरण हारझ। & ८<८। छझ0९२ ॥7 १०१।॥ १२०३

८५॥ पौँच ०7 २-२ तीद्या सुख ०, लगे तिहाँ ४। रतनसेनि न्रप ०। सिहर" 68] स्यू ०। श्षिष्या 8, सिष्या माँगी सीख 58। अति! के स्थान पर 'इम! 0, विनय-वचन मुखि इंम उचरे ०, कहेज्यो कारज अम्द सारीख 8 & ८९॥ 250 ९३। 9 १०४। ४८७ १०६ |

॥%०॥ सिंहल ०४। ? साचो साचौ ०, मोटो 8। राजान 8। द्वित दास्यो देई वहु मान 8। ७५५ यह अद्धीली ओर 5 प्रतियोंमें नहीं है

॥९१ १-१ यह भर्धाली ०० प्रतियों में नहीं है। सघली ००४। मझारि ०। प्रवहणि प्रहुघण ०। करि आया ०, कराया एछ पारि 4 ९१ | 0 ९७५ | 9 १०५ | & १०७॥

॥९२॥ यहद्द चोपई 5 प्रति में नहीं हे। परे ०। ससिंघछनाथै ०। सिष्या ०। पाल्‍यो पढिवन्यों ०, पालि पठवनों बउ ही 8, बिहु मनि 08॥ वधारिनर्स 8, वधारपों ०, धारधो 8। विनो 50, वनो ०, विनो 58 9 १०६

॥९३॥ सिंघल" ४0, पाल्यो पडिवन्यों ०। १-२ यह अद्धांली प्रति में नहीं है, सिंदलपति पाछा जवस्या, रतनसेन आगा नीकस्या 5 २१८। भुजाइ' ए४। ४तेणा ०। डेरैडेरै ०5। दीसे ०8॥ & ९१३॥४० ९७| ४9 १०७ & २११२९

* साइसीयों सतवादियों धीरे! एक मनोंह | देव करेसी चींतडी, लद्दिरी चित जिहाँदइ। 7० १०२। 8 १०४ (दई ०) (चतडी ) (अर्॒‌ढ फवेसी त्याँद ०) साइसीयों लच्छी मिले (हुवे ०), नद्द (नहु ०) कायर पुरसांह (पुरीसोंद ०)। काने कुटछ रयूणमे, मिल्लि कज्जछ नैणोह (अजणयण नयणोंद ०)॥ 2 १०३ ४8 १०७॥

दुजो ] गोरा बादल पदमिणी चडउपई १३

[दूजो खण्ड ]

वात' खुणउ हिव॑ ते पाछिली', रतनर्ेन' राजानी भली छान” छिटकिउ भूपति जेह, मरम जाणद' कोई तेह ९४ सॉझ हुई! नवि दीसई राइ, सॉमी' विण' किम सभा भराई बाहरि' भीतरि कीधउ' सोझ, उपलु कोइ छामई' खोज ९५॥ माहि' जहे रॉणी' चीनवी', तव तिणि" वात हती' ते” चवी “सांमि* सकई' तड' रीसइ' घणी, परणेवा चालिड पदमिणी? ९६॥ चीरमौंण' सुत सकज सनूर, खुभट सभा महि' बेठड खूर कपर्' बात" कूडी फेलवी, वीरमौण' भाषई' नव नवी ९७ “राजा माहि जपई छह जाप, जिणथी' प्रवछ चधई' परताप” | एम कही आएुं' जोगवइ,' भूप तणी परि झुंई' भोगवह”॥ ९८ हम करता दिन हुआ घणा, संकॉणा मन खुभटोँ' तणां “नितु-नितु” बाहरि' करतउ'" केलि, उप हिच' महरू'' यह क्रिण सेलि* ॥९९॥ कुसल अछह कद्दो का वात, मत' सखुति' मारिउ” होहई तात” | एहची चात' करईँ ते' जिखइ', रतनसेंन' उप आविड' तिखद' १०० उ्यारि! सहस हयवर्र हीसता, बी सहंस' गयवर अति गाजतां भी सहंस" बिह' दिसे' पाछखी', त्याँ' माहे बेठी” तखु सखी १०१॥

॥९%४॥ बात 9) सुणो 078) हिवि ०, हिवे ०४ सवि ७) पाछलठी 9) रतनसेनि ' 8 ११८। छानो ०, छोने छ8। «५ छिटकयो 0, छिटकयो ०, चात्या 8। तेह ०। १० जाणइ ४0, जाणे ०, जौण्यो 8) १०९५॥

९५॥ हुवे दीसै ०, दीठा 88 राय बीणि ०, स्वामी. छ। भराय 0। 5 ११९। वबाहिरि 0४) कीघो ०, कीधी ०, पूछया 8४ सोज ०, सही ७। नृपनो ब्रपनो 7, नूपनी छ। काइ 8छ। १० छामे ०, माल्म 9। ११ लछही छ।

९६ माँह्दे 0, माहे 0, मोहि छ8। जाइ 09, जाय ०। राणी झ0। वीनवी ०। तब तिण ०, तिण ते घ॥ छुवी 80, हुती ०, छुइझ। तिम 00, तेम ४। स्वामि ए८5। सके 08। १० तो 78। ११ रीस्ये ००। १२ चल्या ००४७) १३ पदमणी ४।

९७ वीरभाण 80। माहि 5, सह 0, माँद्दि ७) बेठो ०७, वो ०। कटक छ। बात ए। भाषे ए5।

॥९८॥ जय 0, जपै छै 5। जीदा 0, लेह 8। बधइ 80, वयै ०, वयै ४5) भाषों 5,

, - जआाघी ०। गयवै 78। परिसूँ ०, परिझुइ ०, परिधर भोगवै ०७॥

॥९९॥ हूया झए0। सक्‍काणा 0] सुहठा ०। ४त्तणोँ 590 नित-नित 8। वाहिरि ०, वाहिर करतो ०, करता छ। ८, न्रप ०। हिये ०। १० महिले 9। ११ दिये 7, घैड। १२ किणि 9। १३ मेल 8।

१०० अछे ००। कोई कै ०७। छइ ०, कोइ छइ ०, काइक ४। वात 9। मत्ति ०। दे छतइ 5, सुत ०, बेटे 8। मारचों 078। छुवइ ०, होवै 78। ५९ करेंइ कहे ७, हुई ४। १० जिसईं 5, जिसे 75) ११ रतनसेनि ०। १२ न्रप 9) १३ आब्यो ०, आयो ०, आया ४। १४ तिसई 8, तिसैे ०४।

१०१ च्यार' ४। हइवर ४। ३२ बीस सहस ए४। गरजता 8। ५चीस ४#। चिट्ठु 0, बिहुये 2( दिसि दिस 8। पलिखी 8। त्याँ माहिं ०, त्याँ मॉटे 5 १० बैठी ०8 |

१४ कवि हेमरतन ऋरूत [ खंड

विचि' पारुंखी' पद्मिणि' तणी, चिह दिसि” भमरख रह्या रुणझणी” ऊपरि कैचण" कलूस अनेक, एक थकी वलि' अधिकड'' एका'॥ १०२॥ खुभदा तणा नि छामदँ पार, गज-गरजारव हय-हीसार'

पंच शवद' बाज" वाजित्र', जे” सुणताँ सवि* नासईं शत्रा' १०३॥ इम' तख साथईं सवली' सेण", गयणंगणि' बहु” ऊडई“ रेण

आव्या' चित्रकोट'” तलूहदी, हुवड/' कोलाहछा' अति कऊरूहदी १०४ घपीरभमॉण' संकाणउ' माहि, 'सुभट सह धाया असि-साहि'॥

परदल आविड” जांणी करी, 'हांटे हलफर हड्ढे खरी” १०५॥

तितरद आविड' न्पन् दूत, कागल लेई' माहि पहूत

वीरभॉण' चाची“ सह वात, “धन्य दिवस मुझ आविड" तात”॥ १०६॥ विनयवंत' सँम्हड' दोडीड॑, “कप तणड' पडदड छोडीड'

"खुभट सह्द धाया ससनेह“, जोअण आया छोक अछेह' १०७

सकल' लोक' जहँ लागा पाई, कुखरू खेम पूछई' नरराइ

रतनसेंन” चडीउ* गजगाहि', महा महोछवि आविड' माहि'॥ १०८॥

हट

१०२॥ बविचशु विचि ०, विचै झ।. पाछखी छ008] पदमणि ०, पदमिण ०, पदिमिणि छ।

चिट 00, चिट्ू 8 दिख ४। अमर 8। रणझणी ४झ। कचन 8) एक एक धकि वलि म, एक एक थीं 70, एक एक थी वरू 8। १० इधकी ०, अधिकी ०, अधिकों 8 ११ रेख 7

१०३ सुभरों तणों छ। २न श। छासे 08। ४-४ गय गंजारव हय इंसार 8, हिसार गै गरजारव हय हीसार 9, गय««हींसार 8। वाजै ०, वाजे छ। 8 वाजीत्र ०4 जद ए0। सहु ०। नासइ म0 नासे 78। १० शित्र 8, सब श्भु ७, सित्र 5।

१०४॥ इण ००॥ परि 0, तस 8। साधि ००, साथि छ। बहुली ०। सेणि सेन 2 गयणॉगण 8, गयर्णांगणि 0 गयागण ०॥ रूगि ०। ऊछडी 078। आया 00०। १० चित्रकोंटि घ। १९१ हुईं &, हुवो ०8, हुयो ०। १२ कुछाइल ४8।

१०५॥ वीरमाण 80। साक्यउ ४0, साक्यों ०, संक्यो 8। मनमाहि ४808, मनमाहि 9] ४-४ »« भस्‌, «88,, जस ०, सुह्दों तेब्या सिलह कराइ ०। आव्यऊ #, आव्यौ आयो ०, आन्यो 8। वारि ०। ७-७ .«हुइ घरी घरि हलवर पढी सारे वाजारि ०, हांटे हल हूई अति घणी ८8

१०६॥ ततरइ तितरे आव्यर्ड झ, आयो | ज्पनो ०। १-३ तितर लृप मूंक्यों एके दूत ०, ““*आब्यों 8। ४देइ०। माहि 70, रूडो 9। पहुत्त 708, रजपूत वीरभाण 50,

चीरमॉण 8। वाची पूठी ०, वॉँची ४। सव 55, सवि 0 सबि ०। १० बात ए०। ११ धन्नि 8।

१०७॥ विनेवत “करि साम्हौ ०, सॉँम्दा ०। दर्उंडीयर्ड झ, दोडीयौ आवीया ०, दोढीयो ४-४.««छोडीयर् ४,...-तणी पटदों छोडीयो ०, कही भेद सहुु परचावीया ०,««तणों पटदों छोठीयो ४छ। ५-६ 7० प्रतिमें नहीं है 8। जोबवण ए। १०८ झकल 97, नगर ०। जाइ 8, जाय ०, सहु ०। ३3 छागइ झ] पाय 00] कुशरू छ08॥ पूछे ०४७४ रतनसैंनि ! चढीयो चढीया ४। गजगाह 70, गजराज ! १०-१० महामहोछ्व आयो माँद्ि 3, माहा.«« माटि ०, ढाले चमर परे छत्त साज में

दुजो ] गोरा वादंछ पदमिणी चउपई १५

हुउ' पहसारड' पू्ी रली, ठोडि-ठोडि' गूडी ऊछली॥

पद्मिणि' नारी परणी ठणउ', जय जयकार हूड* अति घणड्ड"॥ १०९ महरू' मनोहर दीधी' माहि', तिणि "ते पदमिणि' करइ” उछाह।

वि सहस' पासि रहईं'' छोकरी, चेचलछ चपरः रूप झुंद्री' ११० रतनसैन' गयो' राणी पासि,' पदमिणि/ औणी' द्यउ” सावासि |

भोजन हिवे' जीमेस्योँ खादि' , तईँ'' मुझ वोल वो बडवादि” १११॥ संभलि राणी' विरूखी' थई, “माहरी' जिह्ला वैरिणि' हुई!

निज करिस्यु मई भाग्यों रतन्न, प्चाताप' करदा क्‍या मत्ञ ११२॥

दृहा हिवा पदमिणी झु' प्रेम-रस, सुखि झीलई ससनेह' पंच विषय' खुख भोगवइ”, गय-गमणी ग्रुणगेह ११३॥ वादलू' महि' जिम वीजली', चंचल अति चमकंति'। महलरू माहि' तिम' ते तणड, झलहल तनु झलकंति॥ ११४ पान प्रहीस्यहँ' पदमिणी', गलि तंबोरू गिर्ंति | निरमल तनि तंबोल ते, देह महिय' दीसंति! ११५॥ हंस-गमणि हेजईँ' हसईँ', चदन-कमर् विहसंति'। दंतकुली दीसइई' जिसी', जाणि कि हीरा हंति ११६ प्रेम संप्रण पदमिणी,' सामि' घणड़' ससनेह' | विरूसई जे” सुख" विषयना,' कहि कुण जाणइ तिह ११७

१०५॥ हुयो ०, हुवो ०, हूयो 8 पइसारो पैसारो ०, पेसारो 8। रुली 80। उरंडि" ४, , ठोडि" ०, ठामि , 9, ठॉम 8 ५पदिमिणी ०, पदमणी ०, पदसिण 8४) तणो 008।

जश जए",80, जैजै” ४। हुवउ 5, हूयो 0७, हुवी ०। जस" 5, घणो ०४, घणौ ०।

११० महिल 98। मनोरथ ०। दीधर्ज ७। माँहि ०। तिणि झ08। पदमणि 65, पदमिण 8 करईँ 8, करि 0, करे ०, रहे 8७। उछाहि 8। चेसहस ०। १० रहि ०, रहें एछ। ११ सँदरी,0॥ & १०९५ ११४ 0 १२१ १२५० १३४

,) १११ रतनसेंनि ०, राजा 8 पहुता 8। रौणी छ। पास ए०४। पदमणि 0, पदमिण 7४5। आणी ०8। यो ०8, दो ०। आवास ०। ५९ हवि ०, हिवै ०, हिव ४। १० जीमिशयॉ ०,

जिमैस्याँ ०, जिमेसों छ। ११ तै ए४॥ १२ मुक्ति ०। १३ बदो ०, क्यो छ&। १४ बडवादी ०,

थो वादि यह चोपई « प्रति में नहीं दे

रॉणी 08 | २विठखी 0। ३ेगईए। माहारी ०। जिव्वा 7०। वैरण ०,

वयरणि ०। ७थईछ। 'सु०।९ मे 9। १० भाग ०। ११ पस्याताप ०। १२ कहे ०।

१३ क्यों ०॥ यद्द चोपई 4 प्रति में नहीं है। 8 ११५६॥ १२३० १५२३ १२७। ११६

११३६॥ हिवि हिचै 0। पदमणि रे स्‍्यू 80। झीले ०। ससनेह ०। विष ०। भोगवि भोगवे ये दोहे ११३ से १२० तक . प्रति में नहीं हैं।

११४ बादिल ७, वादलू 00। म्ाहि 90, माँदि ०। बीजुली चमकत ०। महुल ०0,

महिपल ०१६ माँहि ०. ७-७ तेहनउ ७, तेहनों तेहनौ ०) झलकत 79

१६५॥ ९१ प्रद्देते ०। पद्मिणी ०0। गिलन ०। माहि 80, माँहे ०। दीसत ०।

१३६॥ हेजइ ४, हेजे ०४ हसइ हसे ०। बदन कवल ०। घीकसति ७। ] 32093 तिसी ०। हीरा ४8।

१३७) पर्दिमणी 0 पदमणी खामि 800। १घणौ ०। ससनेह ०। पविडुसह विलसे सुखी ०। 'ताँ 8। जाणईं ४, जॉँणि ०, जोंगै हम ४७33,

[१११

कवि हेमरतन कृत [ खंड

राति-दिवस' रूँधों रहइ, नरपति पद्मिणि' पासि |

भमर तणी परि भूपति, अछुझि' रहिड' आवासि ११८॥ चंदन तरवरि जिम चडी, वीटदँ नागर वेलि'

तिम ते कामिणि/ कंतरुँ', विछगि रहई सुण-गेलि' ११० कवित कथा-रस काम-रस', गाह' शूढ ग्रुण गोठि' पद्मिणि' प्रीतम रीक्िवा', जाणि कि बास्या' होठि॥ १२० नारी निरमरू नेहरस, सुधा-सरोवर-सार

ग्तास माहि चप झीऊतड, पौमि सककई पार १२१॥

चोपई शजा स्मलि' करंतउ' रहई, इम केताइक' दिन निरचहई' सगला ठोक वसई सुखवास"”, आवासे' छागा आवास १२२॥ तिणि! पुरि' राघबचेतन व्यास, विद्यारुं' अधिकड 'अश्यास राजा तिणि रीझवबीड घकंु, मुहत घणुं धइ व्यास तणुं॥ १२५३॥ 'राय भवणि नितु प्रति संचरइ', भारत-बात विचख्यण करइ अमहलि' मह्ति' सदा संचरइ", राजकोक' महि' हीडइ फिरइ १२७॥ , एक दिवसि' पदमिणि' नह पासि, राजा वेठउ करइ' विलास"॥ नेह नितंवनि चुंवनि करइ', ' राजा आलिंगन आचरदा १०२५॥

११८॥ दिवसि रूप 5, रूपो 40 लधी ०। रहईं 8, रहे ०। पदमणि .०9 | मद्झ ४, अलज ०। रघ्यूउ 8, रहो रहे

॥११५॥ तरुवर 8, तरवर ००॥। चढी 00]। वींदी 9, बीटी 0 बीटी ०। वेलि ०। कौमणि ०० 'स्पर्डे 3, 'स्थु सौ ०। विलग ०. विलगि ०। रही झऋ0०। ०५ गेल ०0] & ११६१४ १२६॥ 0 १३२१ ४० १३१५

॥१२० कॉम ०। *गाहा ०। रेगूढठा ७, ग्ूंढा 0 शुढा ०। गोठ 50। पदमणि 9 रींझिवा 8, रिशवा ०। ७क8500। वेस्या वाया ०। होठ 80।

१२१॥ नारि निरम्मल 8४। ३-३ . 'झीछतो, पामि --पारि तासु माहि त्रप झीलतौ। पामि सके पार ०, नृपति केकि रस झीलतो, सके पामि पार 8। & ११८। १२५। १३१४॥ 9 १३७ ॥98 १६२

॥१२२॥ रमछ 50०। करतो ०0। रहै ०। केताएक ०) बरवहई ०0, निरवहे वसइ 8, बसे ०॥ वास आवासइ 8।

१२३ तिग ०, तिन 8। <२ पुर गढ ८। व्यास 9 विद्यासु 0, "सु 8। अधिको 0०8

१$२४॥ राइअआवण नित*«« 8, रायअवण नित. ०, राय- «निति-- सचरै ०, राजभवन नितग्रति ते जाइ छ। * भारथ-वात वखाणइ करइ 4, मारथ-वात विचक्षण करइ 8, भारथ-चात विचिखिण करे ०, मारथ-कथा सुणवे रोड 8। 2 अमुहृद 80, अमृहृल एछ] मुहृल 580, मदर एछी। सचरे ०,

सचरे 8 राजमुदछ 80, राजभवन ०, राजमद्दिल झ। माँहि 5, माँहि मे ए४। < हीटइ ४, हीटे ए8॥ फिरे 9», किरे &।

0 १२५॥ दिवस 80 पठिमणि' पदमणिने 0, पढमिगसु छ। सेज 8। बइठो वैठों बयठा ] करि करें छै ४&। विंखास ०, हित-हेज 8। नेहा ०, नेहें 8

रे कक 005] 5५ करे 9 कर छ। १० राजा निज आलिंगन आचरे ०, भार्लिंगन रति सुख आचरे

दुजो ] गोरा बादल पद्मिणी चडपह १७

तिणि/ प्रस्तावई' राघव व्यास, पुहतउ पद्मिणि" तणई' आवास" ते देखी राजा खुणसीड*, राघव ऊपरि कोप कीउ' १२५६ भमह' चडावी' कीड त्रिसूछ', कोप तणड' जे कहीई सूल' राघव पिण' मन" माहे डरिड, 'विण' प्रस्तावई' हूं संचरिड!? १५७॥ चतुर तणी नही चाठुरी, अण तेडिउ' आवह' फिरि-फिरी' बात' गोठि' अण' रुचती' करइ*, 'कार्ठतेई नवि नीसरद' १२८॥ विहूं जणों' विचि' चीज थाई", अमहरू” माहे' आघड' जाइ | अण चोलायड्' वोलइ' घणु", अण दीघु/ वलि' ल्यइ चेसणु" १२९ डीलईं-डील' लिगाडी' घसई', वात करंतउ" आपे' हसइई' ; मनि* जोणई' हु खरउ'” खुजाण,' मूरिखा' जनरा अहिनॉणा'॥ १३०॥ ,. एकंतई' अख्त्री-सरतार, 'रामति रमतो हुईं अपार कन्हदँ' जई" ऊपावद' काणि,' सूरिख” जन रा अहिनोण १३१॥ , एम मनि खुणसिउ राजा घणु, मौन मरोड्युं' व्यासो' तएु"। कीधी रीस घणी ते' राह", जिणथी“ तन-धन' जीवित जाइ' १३२१

अजजीजीज जी जीयी सी सनीनी जिन जी जीन नी लीन जीन नीयत जम +त सी जीनत जननी मनी तीन जी तनमन जी ननी सीन भी नी जी जी जी जीन ज->.......

गज:

॥१२६॥ तिण ०४ ग्रस्तावि प्रस्तावे एछ ब्यास०। पुदतो पहुतो ए४। पदमणि ०, पदमिण एछ। तणि ०, भेर ०, रै 88 आवासि 00। खुण॑सीयो 80798॥ कीयो 8058। | १२७ समुद्द 50 चढावी एड। कीयो झए758 त्णी एछ। तेछजैछ। - $ कहीयो 8, कहिए कहीयै ए४छ पणि 9। मनि* छ, मन ०, मन माँछे 0, माहै 00। विंगि ०। ९१० भ्रस्तावें 8, प्रस्तावि प्रस्ताव ०७) ११ सचरयो 575, सचरधो 8।.., १२८॥ *तेड्यो 8। २जआवे ००७8। ह॥ फिर फिरी 8घ0। ४वात 9। गोठ 80। अर 9 रुचिती 8, जुगती 0] कर 5 करे ०, करे 8। ५९५ काडे त्तोइ ते 5, काढिइ तोश ते ०५, का्दंता पणि 'नवि नीसरे ०, सीख दीयतों नवि नीसरे छ। 4 १२५ 9 १३२। १४२ 9 १४८। छश्छ० है ॥१२९॥ विु' एछ विचि ०। रे त्रीजु 4, त्रीजो ००४) ४थाय०। नृप अमुहल 50, न्रप अमहिल ०। माहि 80, मैं 9, में 588 आघो 078।॥ जाय ०। वोलायरं 5, वोल्या ०, वोलान्यों ०, वोलाब्यो 8 १० बोले 9४ ११ घणर 8, घणों 08, घणौ2। १२ दीध् 5, दीधो 0०5, दीधा १३ सिज 90४8, णिजि ०। १४ लेई ४०, है ०, लयै 8 १५ वइसणरऊ ४, बेसणो, वैसगो ०४ १३० ढीलू-इ-डीले 000 लूगाडी 800 8 सह ४, धसै एछ। वात ०। करतां 80 करतो ए४ आफे 4, आपज इसह ४, हसे एछ मन 8.। जाणे जोणै ०, जॉने १० खरो 800, घणो 8। ११ सुजाँण ०8। १२-१३ मूरख नरनों अद्न्नाण 8, मूरख नर॒नों णए अहिनाण 0०, उत्तमना नहि सहिनाण 5। ३३१३ एकतईं 8, एकाति ०, एकतै ०, एकते छ। स्त्री 50, नारी ए8। . होइ ४०, ..रमता ०, बेठा होवे रग मझार छ। कन्हि ०, पासि ०, पासै 8। जाइ ४80 जाय ०, जह ४१ फ़पजावइ 80, उपजाबै ०४७) काँणि ०७। मूरख ४0, नर्‌ 8079, नाँ 8। ५९ भदिन्नाण 8 अद्दिनाण 00॥ १ऐ३२॥ राजा मन मसाददि (माइ ०, भाहदे ०७) खुणसडे छणर्ड 8, घणो घणौ ०। माण ४। | मरोड्यो ००, भरोड्यो ०, मरथो छ। व्यासा ०, ब्यासाँ9)। तणर्ड ४, तणी ०० |

है तव ४। राय 00। जेहथी 800४8 | तन-धन ०। १० जीवति जीवत ०, जीवन झ। ११ जाय ०।

डे

दर

१८ कवि हेमरतन कृत [ खंड

विलख3' हुई! ऊतरीड व्यास, नीठ' पहुतड' निज आवास

सामी' तणी जब थाई” रीस/, तब जाँणे'! रूठउ/ जगदीस ११३ 'वलता व्यास तेड्या माहि', मौन मुहतथी' सुकया' ठाहि!

इणि मुझ दीठी पद्मिणी', आँखि हरा" हुँ ए" तणी १३४

व्यास खुणी इम' मनि वीहनउ', कुण वेसास' करइई' सीहनउ

राजा मित्र कदी नवि' होइ, नवि दीट्रुड'” नवि खुणीड कोई १३५॥

[तीजो खण्ड | इम चिति' राघव मनि डरइ', नप-खुणसॉणइ खिण विसरदो “जपनी खुणस होइ भली', “नितु निठु हाणि हुईं एकली” १३६ इम आलोची राघव-व्यास', चित्रकोद' नर्ड छाँडिड' वास *। माणस' मुहरदद' लेई करी, गढथी छानर्ड” गड नीसरी १३७ जातउ जातउ' डिह्ली' गयर्ड; तिहाँ जाईनईह' परग् थयड' गामि' माहि हड परसिद्ध', ज्योतिष" निमित'' घणउ'' जस' लीघ॥ १३८ भणद भणावद' शास्त्र अनेक, वात वखाण' करदई' सविवेक' नवरस"“ सयण सभा रीक्षवद,' सिता-सित अरथ' करी सीझवद॥ १३९

१३३॥ विलखों ००७। होइ ००४। ऊतरथ 5, ऊतरधो ०, ऊतरयो ०, उतरीयौ 8। ब्यास ०। तीर्ठि 8, नीढठि ०॥ पहुतो 0, पहुतो 7, पहुतो छ। ७आवासि 8। सामि 80708 जब ०। १० थायइ 8, थाये ०७। ११ जाणे (जाँणै 5) करि 8008। १२ रूठो

१३४ बलतर्ड व्यास ते गयो माहि 800, व्यास ०, “न पहुतो" ०, मौहि ०। मान 80। शतै०। काढ्यक 8, काढ्यों काढ्यो ०। साहि 800। पद्मिणी 0 पदमणी कढावर्ड 8, कढाबु ०, कढाउ. 9] < एह 5008।

१३५॥ ब्यास०0। २एम ०। मन ०। वीहनो विनहो १-४ वात सुणौ मनि वन्‍्हों व्यास 8 वेसास ०। करि करे ०। सीहनो ००। ५-७ सीहाँ तणा केहा विसवास 5 < मींत्र कदे ०, केहनो 8 १० दीठो 0०5। ११ सुणौयो

#5छषछस। १२ लोइ8॥

६३६॥ चिंता 8, चता ०, चितवतों ०४७) डर्‌ईं 70। डरे ०, ढरे 8) नृपनी खुणस खिण बीसरई ४, नपनी खुणस ख्यण वीसरइ ०, श्रपनी ख़ुणस खिण बीसरै ०, नूपनी ईका चीसरे 8। होवइ #, श्रपनी होइ नही * ०, न्रपनी रीसें भलो होइ | 5 नित नित “हुवइ' '8, निति निति * हुव॒ुइ ०, नित-नित हॉणि हुवै" 0, मरण नहीं तो गरुण होश ४। 2 ११३१३१। 8 १४० 0 १५२॥ 9 १५९ १८०

६३७ व्यास | चित्रकूट 8075 नो ००४। छोड्यउ 9, छोडो ००, छॉँड्यो 8। पास ०। मॉणव 8४। मुहर ए०, महरे ०, साथे झ। छौनों ०8४ गयो 85० गियो 5।

॥१३८॥ जातो जातो ००5॥ दिल्ली 7ए058। 8 गयो 505, गियो ०। जाइनइ 50, जाझतने ०, जाशने 8। परगटि 8078। थयो 975, थियो ०॥ गाम 8, आम ०, सिहर 5। < छूयउ 5, हूअठ ०, छुवो ०, हूयो 9। परसीध ००। १० जोतिप ४०), जोतिक 5॥

११ निमत ०, निमति ०। १२ घणो 8078]। ११ छिद्ध 5!

१३९॥ भणे ०, भणे ०। + झेंणावै ०, भणावै 5। सासत्र ०, सासत्र ०, वाल 8। बास ०। बसाण ०, व्खोण 8। दे करें 98। मुविवेक 850, सुविवेक < नवसत 5 वयण ८४। १० सुभा ०। ११ रीझवर 7, रीक्षवें ०, रीकेवे 88 १२ सिति-सिति ०। ११ अर्थ 90। १४ सीझवई 70, सीझवे ०। ११-१३. यूत्न अर्थ सिन सिन बूझने 5

तीजो ] गोरा बादल पदमणी चउपई १९

पूरड' घट विद्या परवेस, तेहनइ' केहा' देस-विदेख'

विद्या" माता विद्या' पिता, विद्या' सयण सगा सासता १४०

विद्या' वित्त तणड' संडार, विद्या' घटि सोलइ' खिणगार,।

मॉन' सुहत' जस विद्या थकी, वित्तथी” विद्या! अधिकी जकी १४१

डिल्लीपति' पतिसाह' भ्रचंड, अवनि' एक' तखु" आण' अखंड

अलावदीन नव खडे नाम, उप सह तेहनई” करइ“ सिलाम' १४२

एक छत्र घर सगली घरदइ', खुर नर सहु को तिणथी' डरइ'

अवनि ठणरउ' अधिक अभिलाष, लसकर तसु नव त्रिगुणा लाख १४३ ,

तिणि ते' सुणीउ' चेभण गुणी, तेडाविड' डिल्लीनइ' घणी"

व्यासि' जई' दीधी आसीस, जेणि' की बेठो' छदद/ जगदीस' १४४

व्यासि' कह्य तरस कविता अनेक, सभा सहित' रीझ्िउ सविवेक'

आग'ई' थो' बेसण” शुणी, पातिसाहि' दी पहिरामणी* १४५)

मॉन' मुदहृत' वधी्डी पुर मॉहि', पूछइ/ तेड़ी नित पतिखाहि

उलगता' तूठडई" अवनीस, पूणी राघव तणी जगीस १४६॥

वास्या' गार्म' ग्रास दह घणा, राघव चेतन बेही' (१) जणा'

पातिसाह' पासइ” नितु रहई', राघव कवित कथा नितु/” कहद्द' १४७

१४०॥ पूरो ०१ घटि पूरो एछ। विद्या ०। तेहनइ 5, तेहवे ०, तेहले ४। केहाँ 8।

विदेसि बदेस 9! विद्या ०। सदा 20०, सदाश्त 8॥ ५९ हिता 8।

मे १४३॥ विधा 0। तणो ००. वित्त तणो 8। घट 50। सोलह ४०, सोडे ०। मान 80054 मद्त 78॥ वित्तथी अधिकी 0। जिकी 8

॥१४२॥ दिछीपति 80758॥। पतिसाहि ०। अविनि अवनी ४। तसि ४) जस 8&॥ जांणि 70। तेहनइ 8। तश्नह ०, तेहने ०, अवर राश सवि 8। < करईँ ४0, करे 98॥ '९ सलाम 08 '१३४५॥ 8 १४६॥ ०0 १६१॥ 7 १६९५ 8 १८८॥

॥१४३॥ परे ०, धरे 8। तिसथी ०, जेहथी ४। डरे ०, ढरें5। तणों ००४। अधिको 078 | मिले 84 सताबीस

॥१४४॥ तिण 80०5, तेण ०१ सुणीयो 8, सुणीया ०0॥ तेढाब्या 80०0। दिल्ली" 80, "ने०, "ने ०। ५धनी 8। व्यास 8, ब्यास ०। जाइ 7078। जाणि 5, जाँणि क॒ बइठ 8, बेठा वैठो ०। १० छै 9।

१४५१ न्यास ०। २इम8। कवित ०। राय 8४। रीझ्यर ४0, रीइयौ ०, रीक्या 8 सुविवेक 80, सुविवेक 0। आगइ 50, भागे 4 < हीं 50। थी 80। २० बॉसण छ80। ११ पातिसाह ०0। १२ दीधी 5, दीय ०। १३ पहिरावणी 80 ७-१३ देखी चातुरता कवि-माव, पातिसाहि दीधघो सरपाव 8

पी पछदकी मान 8। सहुत 70, महत्त 78। वाध्यठ 8, वाध्यो ०, वाध्यौ ०, व्याध्यो 2। भाहिं: ०9] 0५ पूछि ०, पूछे ०, नित्र प्रति तेडावे *७। ६८६ ओलगताँ छ। तूठो ०, तूडौ

॥१४७॥ च्यासों 808, व्यासाँ 090 झ्यम 80, झ्ौम ०। दे ए8॥ चेई 7004 जणा 9। १-७ दीवो आस सात गॉँमनो मोर्टों सेन्योँ वाध्यो विनो 58) पातसाह ?2०। पासे ०, पास 8&। नित ए८5। रद्दे ०७०3 १० निति ०00, रस 8। १९१ कहे ए४8 |

२७ कवि हेमरतन कृत [ खंड

इक' दिन आवि्ड' अभिमान, 'रतनसेंन' मुझ मलीउ” मॉन' वाल वयर* किसी परि एह, साँमि धरम नई दीधड'” छेह १४८ “तर्ड' है! जड़ पदसिणि' अपहरुं, चित्रकोटथी' अलगउ"” करूं पदमिणि' नारि खरी पड़वड़ी', छगि पातिसाह” करूं! परगडी १४९ राघव चितई अधिक उपाइ, प्रगट वात मुखि कहई' काइ भाट एकरुं' भाईपणु, की्ु/ मान-सुहत' दे घणुं। १५० हीआं माहि' आलोची_' हेत, खोजासं' कीधड' संकेत (वित्त विहुनइ दीछु घणुं, मित्र” करी कीथु संत्रणुं १५१ “सत्रा माहि' काढेयों' घणी, वात छिप्ती परि पदमिणी' तणी” अन्न दिवसि बेठउ" खुलितांण,“ मिली सभा सह रॉणो-रसॉण' १५२ अति' खुकमाल पसम पड़वड़ी', कलहेस पंखि' तणी पंखड़ी अतिखुंद्र करि घरी' सभाड, तव' तिणि भादि दियड ब्रह्माउ' १५३ भाटवाक्ये-

एक छत्न जिणि पृथी, धरी निश्चक धर ऊपरि।

आणि कित्ति नवरखंडी, अद्र कीधी डुनि भीतरि।

नल विन्नक्त विध्याड़ि, उद्धि कर पाउं पखालिय

।. अंतेडर रति रंभ, रूप रंभा खुर टालिय

१४८॥ एक झ00। दिवसि 80। आयो 50, जायोौ ०। रतनसेनि ०9) मलीयो 9, छीयो ०, टाल्यों ०। माण 8, मॉण ०। वाठउं 5, वालो ०, वाल 0, वाल 58। वइर 580, बयर ०। सामिधरम नह 80, सामिधरमने सोम धरमने 8छ। १० दीघो ०, दाखु *& १४५॥ 82 १७५२॥ १७० 7 १७८। १५९६

॥१४५॥ तो छकछ हु०ए। 2 जो ०८ पदमणि 00, पदमिण झ॥ अपरऊं 9 चित्रकूट 8 चित्रकोटि ०। अलगो 08, अछ्गौं करठउं 9। परव॒ढी ०। १० पाति- सादि 8। ११ करउ 8, करो ०। १२ पगगडी ०।

१५०॥ चिते ए8। २प्रगदि 80॥ वाति ए0 वात ए8छ। कहे ए8। स्यू 8 सो ०। "पणउ 8 "पणो ००, “चार 8। कीपरड 8, कीधो 008। माँन 8। महत ०, महुत | १०-११ मनुद्दार 8

१७१ द्वीया 508। माँदि8। 8३ आलोचइ 80, आलोचे ०, आलोची 8। स्युं ७. सो ०॥ कीधो ०७8, कीधी ०। * विहूनढ़ दीधर्ड घणड 5, * दीथों घणो ०, वित्त विहुने दीधी घणों ०, विहने घन देइ आपणों छ। म॒न्र 8, भत्रि कीपर्ड 8, कीघो ००४। मंन्रणर 8, मत्रिणों मत्रणा ए5॥

१४२॥ मोँदि 8008। काडेय्यो 8, काढिज्यों काढेज्यौ 2, काढेज्यो 5 पदिमणी ०, पदमणि 7, पदमिण 5॥ हें भणी 04 जअन्नि 8, अन ०0, अनि 78। दिवस 85) बश्ठर्ड 5, वेठो वैठो ०, वैठा 88 झुलनान 809, सुल्ताँण 8। 'राणो राण 5, 'राणो-राणि ०, "राणो-राण ०, सहये दिवॉण 8

१५३६॥ * शुकमाल पशम' छ, कोमछ सदर 9। पख 80, पखिणनी 5। 8 पखुडी छ0।

घरीय 80, अद्दी ०४०। सहाउ 7, सुभाइ ४झ। तथि * दीयो ०, तब तिण दीयो चरह्माव ०, भार्द आाइ दीयो तरद्मयाइ 5

तीज्ो] गोरा चादर पद्मणी चडपई २१

हेतेमदान कवि सल्ल भणि, अमर किति ते चखत गिणि। दीठउ को रवि-चक्र तलि, अछावदीन खुलिताण बिण १५४

चोपई

कवित झुणी रीझर खुलिताँन, भाट प्रतदँ दीधउ' वहु मान “हाथि किस ?” पूछद पतिसाह, तव ते भाट भणइ गुण गाह॥ १५५॥

गाथा

भाटवाक्ये- भाणसरोवर' मध्ये' निवसई' करू हंस पंखीया' वहचे' ताण' चिय॑ सुकमाला एसा पंखी करे“ मज्ञ' १५६

चोपहे इस निसुणी' लेई खुलिताणा, नव-नव सर्जज' महा असमॉन सोहइ' पसम महा सुकमाल, ते देखी-जंपद भूपारू' १०७ “इसी' सकोमलर काई वली', किण' ही वस्त कठे संभली ?”? तव' ते भाट भणद' सुविचार, “हाँ, सुलिताँण" | कह अबधारि/ १५८ पद्मिणि' न्ारि इसी पातली, अति सुकुमार्' सकोमल् वली'। एह" थकी वलि अधिकी तेह", समुण' सकोमलू' नह ससनेह” १५९

१५४॥ यह कवित्त 807४ प्रतियोंमें नहीं है, परन्तु संगरामयरि द्वारा सम्पादित प्रतिमं तथा छब्धोदय गणि द्वारा सम्पादित 'पश्मिनी चरित्र की प्रतियोंमे मिलता है १५५॥ इस चोपईके स्थान पर ४००४ प्रतियोर्में निम्नलिखित चोपई है- 8, पातिसाहि पंख दि पडी। क्या वे हाथि तेरइ पखुडी ०, पातिस्थाहि पखि 9. 9) 9॥ 97 399 9 ०, पातिसाहि द्विष्टी पखन पडी। ,, » » ऐर. »॥॥ ४, पातिसादीकी द्विष्टिश पडी यद किसकी है वे पखडी 8, जीवश पतिसाद हुकम जइ रूह आलमसाह सलामति कहुं 0 9) मी 9) | ०, जीवे पतिसा ,,जो | आलरुसादहि सलमति ,, 5, जीवे हजरत 99 जक॥ 99 99 3 २५२) छे २५८॥ १७६॥। १८४ ८७ २०२॥ १५६ मानसरोवर ०। मझे 807, मझे 8। निवसइ झ078। कलि 70। पंखीया 8॥ बहुवे 80, बहवो, 0, बदवे 8। "चा 850, ताणी तो ०, ताण तणों 8। ८-९ करे मुझ 80, कर मशझ्ञ ०, मम हत्थे १५७॥ नसुणी ०। जोई 80॥। सुरृताण 800, सझुरूुतान छ। नवसत ४807०। देखी मं। मोज 80, मौज ०8 महा असमान 509 | सोहे ०, सोद्दे 5) मराह्य ०, घणर्ड ४8। ' जपै पतिसाह ०, हरपित थइ पूछे छ। $५८ अैसी कोमछता कोइ ओर छ। 'वसत कठे सॉमली 8, “वसत सौंमली ०," बसत कदाँ सॉमली ०, वस्तु दोती है किनही ठोर 8। है तब ०। भणि 0, भणे एछ। आलू

मस्याइ 58, आलमसाह आलूमसाहि ०, एक वस्तु श्सके अणुद्दार 88 & १५५।॥ १६१॥ 0, १७९ ॥। 9० १८७] २०५

$५५॥ पदिमिणि 0, पदमणि ०, पदमिण 8) सुकमाल 509, औैसी पखम ४। सुकोमरू 00॥ वली 8। इसे यादा (ज्यादा) कछु इक तेह 8। सुगुण एछ8। नै ए8।

२२ कवि हेमरतन कृत [ खंड

ठव ते भूप भणइ-“पद्मिणी, काई नारि कठेई सुणी” | भाट भणई अचसर लही, गोरीपति निस्ुुणद गही गही १६० भाटवाक्ये- ऋवित्त

भाद भणइई-'खुणि' भूप, रूप अति रंभ समाणि'।

हुई तुझ" हरम हजार, संख' कुण रूहइ समांणी

ता महि पदमिणि काइ, ह्डसि" तुरकिणी हिंदुआणी |

अद्ल' आज तू राज, अवर कोइ” राउ रॉणी' तुझ महल माहि'" पदमावती, गिणत' न्ारि होसी घणी“। सखुणि” मीनती खुलितांण विण", महँ/“ ज्ञ काइ बीजी खुणी”॥ १६१॥

चोपई एम निस्ुुणी' खोज खलभलइ, पातिसाह' वइठडउ" संभलरूई आसंगाइत' वोलइ इसु' “तई“ रे भाट ) कहिड किसे! ?” १६२ खोजा वाक्य- कवित्त “मम भणि' भट्ट खुकवित्त,' खुंद' खोजउ' चई* पूरड” ] रे! रे | सवद फरोस ! 'सिवद हरमां लगि सूरउ कहां खु नारि पदमिणी'', सेज”' रायनकी सोहद। खुस-नर-गण'गेध्रव्व, पेखि'' ज्िश्वुवन मन मोहई/

१६० 8075 प्रतियोंमें यह चोपई छै ७, “इसी सकोमल अति पठमिणी तह रे भट्ट किहा-किह्टों सुणी ? 0, + सकोमलि ,, पदिमणी | ति रे 39. 9). 99 9 9, सकोमल # पदमणी ते रे 99 किहाँ हई,, छः 58, 9 9) 95 9) कहिवे 99 कहो ते 939 99 9) 98, हमस्थु खूब कह वे साच तुझ उपरि खुसी वहुत मुझ वाच 0०; हमसे ? पीछे 39 3 | 39३ 79, हिमसं 99 कद्दो वो 93 ] 93 93 99 99 939 339 ते ४, हमसे »केंढे वे ,,» »खुस मेरीय ,,

१६६१ १५ “मणे 800, भणहिं भट्ट 8। सुनि ८छ। समाणी ०, समानी 8। हुई ४०, है 9, हैं 8। तुद 8 सव कुण लद्दे " 0, दिवमे रूप जुवॉनी 8। तामइ -४80, तामै पदमणि काई सुगलानी पारसी ०। « होसी तुरकणि ७, होसी तुरकाणि ०, दोसी तुरकणि दिंदवॉणी अदिलराज तूं गाज 8, अदलराज तू आज ०, गदलिराज तू आज ०। १० को झ04॥ ११५ राव ए४। १२ रॉनी 8 १३ तुज्झि 9 १४ मुहल झ0, महिल 8। १५ माँद्दि 8 १६ गिणित * 5०, गणिति ०, छहे है नारि इद्रायनी 8 १७ वीनती सुलितानजी 5, * वीनवी सुल्तानजी ०, सुणोहु अरज मुझि सुलितौंणजी ०, अछावदीन सुल्तान सनि छ। १८ ओर ठौरमें नहु ठुंणि ४।

१६२॥ चद्धणी ०। खोजो 078। पलमले 9, जलफले ४। आलिमसाइ 50, आल्मसाहि ०8। चेठो ०, बैठो ०, वैठो 8 सॉँमले ०8। आसंगइ तब मऊ, आसंगि तब बोले इस ०, बोले उछक आसंग छट्ठी ०४ क्यउ रे भाट | कद्यउ तिंइ ते ०, किस्पर्ड 8, क्युं रे भाद कह्ो तै किछ ०, जबे भट्ट जैसी क्यु कही 8॥ & १५९५ | 8 १६५। ०, १८३॥। 9 १९१ ] 8४ २०९ |

99 93 32 93 ||

तीजो ] गोरा चादर पदमिणी चडपई श्३

सुंखिणि' सबईं'' सुलितांण” घरि”, कोषि'' हुउ वदि इसइ “रे खोजा ला इतवार तूं”*, खुणि पातसाह मुखकह हसइ १६३

चोपहे

आगलि' बेठडउ' राघव व्यास, पुस्तक ऊपरि अधिक प्रयार्सा सईं” मुखि पूछई इम' सुलितांण'”, पद्मिणि/! नारि तणा अहिनॉण' १६४

कुडलीउ

आलिमसाह' अलावदी, पूछद व्यास प्रभाति “रतन-परीक्षा तुस्हि/ करो, त्ीकी केती' जाति १” “बीकी फेती' जाति !” कहइ राघव खुविचारी “रूपचंत पतिबता,' प्रिय सो होई पियारी हस्तिणि' कि चित्रिणि सुखिणी,' पुहवि बडी” पद्मावती ।” इम भणह" विप्र साचउ" वचन, आलिमसाहि“ अछावदी १६५ रूपवेत रतिरंभ कमर, जिम कार्या खुकोमलऊ | परिमिल पुदप सुगेघ, भमर' बहु भमद वलावर्ू पंपकली' जिम चंग रंग, गति गयंद समांणी सिसि-वयणी' खुकमाल', मधुर मुखि' जंपद चाणी।._'

१६३॥ भणसि 8, सणिसि ०0। भद्ट झ0एष्ठ। किवित्त 5073। खूद 80। खोजइ 4 खोजो ००8। दे ०, कहे ४। पूरो पूरी ०, झूठी 58 वाद ०, वात ०, वात 5। सब दल माहि ह॒इ सरुठ 8, सबद माँहि ह॒इ पूरो ०, तू ही वाजारी नूरो ०, करही बाजार वयठों छ8। १० कहाँस 58, किंहाँस ०, काहाँसु ०, कहाँ नारि छ। ११ पदिमिणी ०, पदमणी ०, पदमनी छ। १२. रावण ४0, * रावणरी सोहे ०, लछिन ताका कहि मोहे 8। १३ गण ०। १४ गधर्व 80, गधरव ०, ग्रथव 5। १५ पिंखि छ। १६ जिसोवन०, व्रिमवन 9] १७ मोहे 99। १८ सुखिणी 50, संखणी ०, संखनी 8 १५ सबि 50, सह्ठु ०, सबही 5 २०पतिसादह 80, पतिसाद्ि ०, साह 8)। २१ कोपि हूउ वदिण इसइ », कोपीयो एम चंदण रसइ ४०, कोपीयो एम वोले रसे ०, क्या है दुरावनि हम्मसे छ, २९" इतवार***80, लायतबार ०, जिहाँन- खौन दरगहिं सुनहिं 588 २३"“पातिसाश मुलकें हस६ ०," पातिसाह मुल्के इसे ०," पातिसांद मुलकित हसे छ।

॥१६७॥ आगल ०। वहठा 5, वेठो ०, वैठा 0, वयठा छ। ब्यास ०। पुसतग ०। प्रैम ४2) प्रकास ४। ७सै०ओरए। < पूछिइ ०, पूछे ०७॥ नव 5 १० सुलताण 8, सुलतान ०, सुलतोंन छ। ११ पदमणि 0०, पदमिण ४। १२ इहनाण 4, सदिनाँण

१६५ आल्मसाइ 50, आल्मसाहि 0। पूछिश 8, पूछे ०। 2 ब्यास०। परीख्या 50 परख्या तुम्ह 50, तमे ०। करड 8, करो ०, करौ ०। केही कहि ०, कद 9छ] अविचारी 9।॥ १० पतित्रता ०] २१२१ प्रियस्थु 58, प्रीयछु 0, ग्रीवरछु 9। १२ इसतण 9 १३, शखणी 5, सखणीं १४ पुहिनि ०, पुदविं ०। १५ बी 8 १६ नणे भणै ०4 १७ साचो ०, साचो ०। आलमसाह 250, आल्मसादि ०॥ < प्रति यंद पद नहीं है। & १६२। 5 १६८ १८६ १९४॥

१४ कवि हेमरतत कृत [ खंड

चंचल चपल चकोर जिम, नयण*' कंति सोहई' घणी कहि"राघव खुलिताँण'' खुणि* | पुहवि'' इसी हुई पद्मिणी १६६ कुच' जुग! कठिन कठोर, रूप अति रुड़ी रॉमा हसित' बदन हित हेज, सेज' नितु" रहई सकांमा रूसई तूसई रंगि', संगि सुख अधिक उपावह | राग रंग छत्नीस गीत, गुण गांव खुणावई सन मॉन तवोल रस, रहदँ” अहोनिसि रागिणी कहि राघव खुलिताण खुणि ! पुहवि इसी हुई पदमिणी १६७ वीज' जेम झवकंति', केति' कुंदण ज्यु' सोहई | सुर नर गण' गंध्रव्व', पेखि! जिभवन मन मोहई। जिवली तलि” तनुरँँक, वेक' वह" वयण'* पर्यपइ | पतिसुं' प्रेम सनेह'', अवरखु” जीह जंपइ“। सॉमि' स्रगत ससनेहली, अति खुकमाल सुहामणी फहि साघव खुलितौण खुणि पुहवि इसी हुई पदमिणी १६८ घंवल-कुसुमा-सिणगार, धवरू वहु वस्र सुहावईँ' मोताहल मणि रयण, हार हृदय'स्थलि भावहूँ/ | अलप भूख त्रिस' अछरूप, नयणि' वहु नीद्र/ आवइ' आसण्ि अंग सुरंग, जुगतिस काम जगावद। भगति जुगति" भरतारऊु॑'", करद' अहोनिसि'' कांमिणी'“ | कहि राघव खुलितांण खुणि ! पुहवि इसी हुई पद्मिणी १६५९ १६६ १-२ काइ सकोमर 578, काय स" 0। पुहव ०, पुदोप 8। ४सभंमर 2। समै ए८।

' बछावलि 800 'कुली समाणी 8 | ९५ शिश 5, 'वयणी 2, बदनी 8 १० सुकमालि 80। ११ मुख 08। १२ जप ०8। १३ वॉणी ०छ, वाणी ०। १४ नयन ए४।

| १५ सोहे ०, सोहे १६ कहर 8 कहे ०। १७ सुलतानि ०, सुढताण ०, सुलतौंन 8॥ १८ सुनि १५ पुहुवि पुद्वि २० होइ हुवे 28 १३१ पदिमणी ०, पदमणी ०, पदमिनी छ। '

॥१६७॥ युग ०. कठोरि ०, सरूप एघ रामा 80 हसति 800 | वदन 50 निति निति 0। रमइ 50, रमै एझ। सुकामा 58। रूसे ०8७) १० तूसे ०७।॥ १६ रंग ०। १२ सुखि 0। १३ अधिको पावइ 0, अधिक उपावे 98। श१४गुन 8। १५ ग्यान ए07, ग्यॉँन 5। १६ सुणावै ०, सुनावे छ। १७ सनॉन ०। १८ मज्जन 8, मजन 08, मंजन ०। १९ स्यगु 8, स्यु सु ०। २० रहि रहे ०४8 २१ अद्दोनिस 8। २२ रागणी

१६८ चीज वीजू ०। झछकति 8008] कत ०। कुदन ,५ सोहईँ 8। गुण 5। गधर्वे 809, गंघ्रव 8 रूप 78। भोहईं 8, मोहि; ०, मोहदे ए5। १० तन नर 8, तननो 00, मयतज 58 | १श्वक०। १२ नहु ०, नहुछ १३१ वयण 8, वयण ए। १७४ पयपै एछ १५ 'स्युछ, सु 08, सु श्६्‌ मपार ए8 १५७ स्यु 5, सु फा। १८ जपईं 8, जपै 75। १५ सामि 80, सॉम 58। २० सोहौँमणी ०, स॒हामणी 8। हे

१६०॥ कुसम ०। सुदावइ 40, सुहावै ०8। मुत्ताहल 800, मुगताहरू 8। रिदस्थल ४। सावश 40 भावै ए8छ त्रिति 4, त्रिप 88 नयण छ80798] त्नीद' 800, नींद ४। आवईे 8, आवे 98) १० आसण ऊष्फड। ११५ सुत्नगम 8॥ १२ युगतिस्यु #, युगतिठ्ठु जुगतिस्थो ०, जुगति करि ४।. १३ जयावई ४, जगांवै ए8 | १४ थुगति ४०, हेत ४। १५ स्यु 5, सु स्थो ०। १६ रहइ 8, रहइ 0, रहे 7४॥ १७ अहोतनिस घर १८ रागणी 8।

तीजो ] गोरा चादर पदमिणी चडपई १०

चोपई इणि परि पद्मिणिता' अहिनाँण, निख्ुणी' हरष घरइ खुलिताँगा।_., “अफ्ह' घरि हस्म परीक्षा करउ', पद्मिणि हुई" ते जूदी” घर” 7 १७० व्यास भणइ- संभकि' सुलिताण'", तू मुझ साहिब सुग्रुण' सुज़ाँण। ; हु' तुझ हरम निरखु नहीं, विण निरख्या क्यू परखुं सही १॥ १७१॥ “प्ञ' कहसि' बातो निहालूण तणी”, तब ते जंपर' डिल्ली/ धणी साहि' कहई-“संभलि* हो व्यास, मणिमय' एक करड'” आवास" १७२॥ तिण' माहे' तेहना प्रतिविव', निरखी परख कर3' अविलंब'" 7” सामगरी' सह” सेली करी, राघव माहेट आणिउ' घरी १७३॥ मणिमया मंडप माहे' व्यास', परखईइ" हरम' तणउ परगास' हस्तिणि” चित्रिणि' नह” सुंखिणी'', निरखी नारी का पदमिणी' १७४

कवित्त रयण महलि' अलावदी, साहि' राघव हक्‍्कारी'। नयणि' नारि निरखेवि', परखि* अब हरम हमारी“ पँंस'-गमणि हँसि'” चली, नारि निरमरू' मयमत्ती' | खुर-नर-गण'"-गंध्रव्व, पेखि भूले” अनिरुत्ती | अइसी' से अंतेडरी'', प्रणि” व्यास पेखी' घणी हस्तिणि' कि चित्रिणि" सुंखिणी", नही साहि घरि पद्सिणी* १७५ १७० पदमणी एछ। अहिनाण 50। ' सुक्ताण 5,'“'सुल्तोँणि ०. निरखी हरिष धरे सुल्ताँण ०, सुणी चित हरख्या सुरतॉन 8४। हम 80, हम 00। घर 5४। परीख्या 250, परिख्या 0, परिखा 8। करो ०, करों ०, धरो 8। पदमणि ०, पदमिन छ। होइ

809७ होय ०। १० पासइ 50, पास ०, तो मालिम 8 ११ धरो धरौो ०, करो 8। १७१॥ ब्यास ०। भणै 98। सॉमलि 78। सुलताण ४, सुलताँण ००, सुलुतौन 5। ५तू 8,

तू 0०० सुगण छ। हउ"“““““नरीखठ नही 8, हइठ नरीखो हु" निरखु"” ०, हुरमोँ निरखण हुकम मोदि 8 <““निरख्यों' परखो ०, बिणु निरख्याँ'''परखु ' निरख्यों विण किम पारिख होश छ।

॥१७२॥ इस 80078] कही 8078] बात 9]। जपह 805, जे ०] दिल्ली ००5॥

: साहू 80। कह्ै ०। समझ 0॥ मणिमइ मणिमै ०। १० करू 45, करो ०, करो ०। ११ आवासि ०॥

' ॥१७३॥ तिणि ०० २माहि०। प्रतियव ०, प्रतिब्यव 0 करु 48, करों करौ

मबिलंव 9।. सामग्री 80, सामग्रही ०। सबि ०, सब 7। माँद्दे ०। आण्यठ 8, भेल्यो आण्यी ०, 7 प्रति यह 'चोपई नहीं है।

१७४ मणिमइह 50] सडिप ०। माँहि०। ब्यास ०। परखि परखे "तणो

0, दरमा तणी 9] परकास ०, प्रकास ०। इस्तणी ०। चित्रणी 8008। १० ने ०] ११ शखणी 8, संखणी ०8। १५२ पदमणी 9॥

' १७५॥ ६१ मुह 80, मदिक साह ०। हकारी 200। न्यण ०। नरखेव परख ०। इब0। हमोंरी ५, हमारी ५९ हंसि गमणि ०, हस गमणी १० इसि 4। ११ चलि 8। १२ निमल 4। १३ मयमंती ०। १४ गधरव ०, गंण गधरब। १५ भूलइ ४8, भूलि भूले ०। १६ अनुरत्ती 8008। १७ जैसी ०। १८ सै ०। १९५ अतेवरी ०। २० भणइ

फए, ०। २१ ब्यास ०। २२ देखी 80०0। २३ हस्तिनी 500। २४ चित्रणी 807॥ २५ झुंखणी 80, संखगी ०। २६ पदमणी ०7 | अतिर्म यद्द नहीं है हि]

+* कल

२६ कबि हेमरतन कृत. , [ खंड

चोपई॥ इम निसुणी' परणह' पतिसाह,- “विण पदसिणि केहड' उच्छाह | 8 मे पातसाही' पदमिणि/ विण' किसी, पदमिणि' नारि हीया' महि वसी ॥. १७६॥ . ' तड हू जउ परणं' पदमिणी', केथी" कीजदइ पद्मिणी"। हा हस्तिणि' चित्रिणि' नई सुखिणी, घरि घरि नारि छहीजई घणी १७७॥ विण! पदमिणि' नवि' पोहु' सेज,' विण' पदमिणि हु हित हेज। _ 9.)

विण' पद्मिणि' करूं खुख-संग, विण' पद्मिणि' रमु रति-रंग १७८॥ , , चमकर चित महि नितु पदमिणी', वछूतउ' जंपई डिल्ली-धणी। “कि राघव' ! किहां' छह पदमिणी' ? जेहनइ' हुई! ते आएं हणी १७९ ठावी ठोड' वतावउ' तेह,' जिम" जई ल्‍्यावु पदमिणि गेह” ६१ चलूतउ" व्यास पर्यपइ एम-“पद्मिणी नारि छहीजई' कैम !॥ १८० खिघलदीप' अछद पद्मिणी,' दक्षिण दिसि" विचि' घरती घणी

आडउ” आचइ उद्धि' अथाग, तिणि/ तेहनउ” कोइ” छहई साग?”॥ १८१॥ साहि' भणइ-“संभलि मुझ वात, मो आगलि' सिंघल कुण मात।

खरग पताल' समेत खणी ! का” नारि' जहई पदमिणी”' १८२॥

१७६॥ नस्ुुणी ०। प्रभणे ०, जपै 5। केहवर्ड 80, कहो ०8) पतिसाही 878। पदमणि 08, पुदमणी ०0। विणु 8, बिणि ०। पदिमणि ०, पदमणि ०, पदमिण 8] < हीय ०) माह 8, माहि ०, मे 0, माँदिं 858 १० बसी ॥१७७॥ तो ०8, त्ती 9] जो ०8, जौ ०। परणर् 5 परणु पदमणी ०। ५८ कॉमिणी 0, कीले.- कॉमणी ०, अवर मन री कामनी हस्तनी 8, हस्तिनी श। चित्रणी 800, चित्रनी 8। नइ 80, ने ०, ने 8 सखणी 87, सुखणी ०, शखिनी झ। १० लहीजे ०, लहीजै ०४। है ६७८४ विणि 9। प्दिमणि ०, पदमणि 0, पदमिन 8। नवि&। पठंडर्ड 8, पोढो ०, पौढी 8। सेझ ०। ६,दसउ 80, हसु ०, हसु 8। करउ 5, करो ०, करु 0४ रमठ , रु ०० ५९ रित 8, रिति 0। & १७५॥ 82२०९। २१५। 7 २२१५।॥ २४५ | १७५॥ चमकइ चित्त माद्रि 8, चमकि चित्त माहि. चमके चित्त माहे पदमणी ०, वस्ति नारी चित्तमें पदमिनी 8 बलतर्ु 5, वलतों 08, वलतो ए४ें। जपै 78॥ ढिली नझ 8, ढिलीनो ०, दीली ए8छ। कहसे 5, कंहो 0 कह्ौं एछ। & व्यास 508, व्यास ०। ; किहा 0, कहां 8। < होइ 850, है 78। पदमणि 00, पदमिनी 8। १० लेहणइ ४8, 2 85०५ ०, किसके छ। ९१ होश 800, हैं 9] १२ तिस 8। १३१ आणउ 5, जोणो ञा्‌ | १८०॥ ठंड 8। व॒तावो ,08, बतावी ०। लेह 800, सोइ 8॥ ४, -जाइ ल्यावर्ड * गेह जिमि जाइ लयावी जाय क्‍्याउ पठमणि 7, पदमिण नारि जिहोँ किण होइ छ। बल- तर्ड 8. बकतो ००, बलछतो 8। व्यास ०॥। पयप 78। पदिमिणि पदमणि ०, पदमिण छ] लहीजे ए४। १८१॥ सिंइल दीपि 80, सीघल दीप 0, संघल दीप &। अछे एडा -पदमणी 09। 2 ॥. है ०, दखिणि ०, दखिण ०। दिस॒छझ। विचि ०। आडो ण्छ, 794, ए58] 80, जलद 7, 8] १० १२ तेहनो ०४७, तेहनी ०। १३ कोई को ०ए। १४ 25 3 . १६ माई हक & 25 ॥१4२९॥ साइ कदद 5, साहकद्दि ०। कहे सॉमलि वात ०, 'सुणो व्यास!” इजरत कही वात मुझ 8078 आगल 85। दरीया 809, दरिया 8। पयाल ४79, पयालि ०। सवेठ

80, सब सवैड काठ 2, काढो काडु ए8। ८-८ फ्ठ नारि जाय ०, व्यास नारी 8४! पदमणी 2, पदमिनि छ। नारिजाइ 8, नार जिई

च्

चोथो] गोरा बादरू पदमिणी चउपई ५७

हय-गय-पाखरि' सहु सज किया, घोर दमामा' नोवता दिया। बाहरि' डेरा दीया सही, ऊसकर सहूवइ' आया वही १८३॥ सिंघल' ऊपरि चडीउ॑' साहि,' कोपायोप 'कीड पतिसाहि' हे

3

पद्मिणिस मनि अति अभिलाप", छसकर' लछारि सतावीस राख १८४.॥ असि' चडि' चालिड' आलिम जिसइ, दह दिसि देस' संकाणा' तिसइ | गयणंगरणि' बहु ऊडइ' शेण, सर सिसिहर सझदर तेण+॥ १८० सेपनाग' सहि सकद' भार, आलिम' चालिउ' हुई असवार | ,

घण जिम गाजई' गयवर' घणा, पार छाभई' सुभटां तणा १८६॥

के [ चोथो खण्ड]... शक

. कवित्त असपति' कीउ' आरंभ, चडवि' चंचल दक्षण' घर। पतिसाहि” कोपीउ', कवर्णा छूटई सिंघल' नर” दुल-वादलरू पतिसाह'', जुडीउ'' संग्राम खुहड भड। नव ऊख त्रिगुण" तुरंग, सहस सोलह" मयगलरू' घड। पा 'खेह छोषी गयउ'“, पायारूईं”' वाखुगि डुल्यिड" * चककराइ' संसय' पड्यरउ, पातिसाहि किसु परि चड्यऊ" | १८७॥

क्‍ + कर हे | | १५३२॥,१ पाखर ए8। दर्मोसा ए8। हे नोवति 98४। वाहिरि 79। दीधा ०१ लास्स£ ढ़ हर चोपई बे 5 28 सहुवे ०, सह्ुुयु ४, & प्रतिर्म यह चोपई नहीं है 5२१२४] 0 २२० | २२६-। र५३। १८४ घिहल 8, सीहल ०. सघल &। चढीयउ 70। साह #08। ४.' कीयो"पतिसाह 80, |,“ ,कीयो' », दिलीपति रिणवर्‌ रिमराह »। ५१"स्थु |, पदमणि “००, जीतवाद मैत जस ,., दोथ 58) जगत जीत विरद्‌ है तास ४।

;]१८५॥ जसु 70, अख्व ०। चढि 79। चाल्य् 8, चाल्यो 00० आलम 79, अंसप्रति 9 |

हे जिसे 78 लोक 70098। सकॉणी 8। जित », तिसि 5। गय॒णगण 8, -गयश- गिण ग्रयणागणि ०। १० उढडइ 9, वहू उठइ ०, बहु उडी ०! ११०“ ससिदर "80, पार रवि तस सूझे रेणि 0, अवरि साँण से तेण 8।

, ॥३८६॥ शेतनाग झ0। सकै ०, सके 8। आार्ऊम ०४) चाल्य॑र्ड 8, चाल्यों 0४, चास्यी ०। हदेइ 580, हौय्‌ ०9॥ गाजे ०। गयवर 8, गेवर ०। घ॒णों ०। ९५ लात 7] १० तणों

( & १८२] 5२१६। ०0२२२॥१ 7२२८। २०६-२५७ | 2 ॥३८७॥ अख” ०।_ कीयो 8, कीषो ०, कीयों 0, कीय ४। चढवि 8, के 27 कम दखिण 78। < पातप्ाइ 50, पातिर्साह ०, दछीपती ४। कोपीयड 8, कोपीयो ८४

कोपीयो ०।७ कहाँ ४। छटइ 9, छुटै 9४॥ सिंहल 80, सीघल"०, सिंघल कर ११ गोरी 4, दलवादल 9 १२ पतिसादि ०, रिमराह ८5। १३ जुडी झ00, मिडण 5॥ १४ तियुग छ80। १५ सोलइ झ०0 १६ सगल' 8, संघल' 00, सिंघल | १७ सूरज 20, चूरिज ०, सूरजि 5। १८.छोपवि गई 4, लोपी गयो ०, छोपी गयौ ०, लक्कवि गयो 8। पायाछ॒३ ए07, पयाले ०, पयालहि 8॥ २० वा[सिग 50, वासिग 7, वार्सिंग 5 २१ दुढड 8 दुरयो ०, दुढौ ९, गढ्यो 8. २२९ चर 90।, २२-२४ चौ,धराय सासे पड़ी

, पड़े | ९१ पातसाइ 8, पातिसाह 077छ। २६ किस 8, किसि ००। २७ चल्यो 80, चह््यौ ००।

डा ै:

२८ कवि हेमरतन कृत [ खंड चोपई

आलिमसाहि' कीउ' इलगार', साथरई" सवा" जोर्ध' जुझार' | अखलित" गति उलूघी मही, समुद्र" समीपईँ/ आव्या' बहीँ १८८ रण -रसीउ' नह अति' रंहाल, आलिमसाह करइ घख चाल

“बूरी' समुद्र करू थल-खंड, सिंघलदीप' करूं सित' खंड १८९ पकड़े! सिघलपति' जीवतर्, पद्मिणि' आएं" त्ड' हु! हत3?!।

ऐम' कही ऊतरीउ/' साहि!', रूसकर दीचउ" ले जल माहि"॥ १९० “छुड्टे' पयाणें' जाउ' छंडि, सिंघलदीप' करउ/ सित' खंडि”

ऐँम! हुकम आलिम नचउ' हुड”", छसकर वूडी' माहे' सूउ १९१ आहलिम' नई अति' चडीउ* कोप, 'कोप तणउ कीघर्ड आठदोप*॥

प्रचहंणं “नाव घडाव्या' नवा, चडीया' जोध वली" जूझिवा'॥ १९२॥ छाख-लाख॑ एंकीकउ' लहइ,' रण-रसीउ कुण' वॉसई रहई॥

आगलि' एम कहद वि धणी, बेला छहँ' खुभदाँ तणी १९३

'- जी जजज-स जज सच,

१८८ आलमसताद् 70, आल्मसाहि 08। कीयो 8078। अल्गार ०। साथे 80, सायै 08। सब॒र्क 800, वढा ४। योध 70।4 झूझार 7708। एलायति'''#, एलायति * उलगी'"०, पातसाहि औलूघी मद्दी ०, बडे पयाणे रूुंघी मही ४। समद ०, समुद्र छ। १० ससमीपई 0, समीपे 85, समीपे 958॥ ११५ आव्या 508, आयी 7॥ १२ सही ०ए४5।

«4 १८४। 58 २१५। 0२२५॥ 7० २३१। 5 २५९ |

१८५॥ रिण-रसीयो 808, रणरसीयो ०। ने ०, आल्म छल ३"'ढिग *४०,'““करे धक'**#,

पोरस चढि माँडी धक चालू 58। बूर॒ड 5, बूरो 008॥ करझ 5, करो ०, करी 2, खिण 8४।

'६ खल-खड 800, धर-मढ 5&॥। सिंहल 580, सीघल 9, संघल 4 करउ 5, करो ०5 |

९५ सतत 008

' १५० पकडठ 8, पकडो एडछ। सिंह 70, सिंघल ०, सीघल 8। नीवतों ०8, जीवतो पदमणि ०0, पदमिण 8। औंणउ 58, आँगो ०। तो ०७8, तो ०। जीत 507, मैपल।

; हथउ #0, हथी ०, छतो 5। इम कही 85। १० उतरीयो 808, उतरीयो ४॥ ११ साह 508। १२ लीथो दीघी ०, दीपो 5। १३ लेइ 5, लें 78, ते ०। १५ माँहि ०, माहिं झ। "

॥१९१॥ छडे 8। २:पियाणे ०, प्रयाणे ०, प्रयोणे 2 जाजो छ0, जाजों ०, जायो ड़

सिंदल ४0, सीघल ०, शैघल 4 करो ४, करु ०, कीयो ४। सितखढ 8 सतखड ०ए४। इमते 50, इंमंते ०, इमेते 8, हुकम हुवउ ०, हूवो ०, हुवो ०, कीयो 8, पतिसाह 2, पतिसाहिं 8] बूढण छ8078। छागरऊ ०, लागो 0४8, छागा ०। १० माहि ४00, माहिं झ।

_॥ १५२॥ *नहें 8, आलमने 0, तव आलम 8। मनि झ00, बलि चटीय ४, चढ़ीयो 08

' /. चंडियों ०। ४"“वलि कीष ठोप;७, “तणो वलि कीधो “०,”“तणो कीधपी अदोप ०, मुज्स वयणनों किम हुए लोप 8। अहड्वण | घढाया 5 चाढ्या 80, चाल्या ०, चत्या म। < जूघ ०0। बलि 9, बले 7, तिणें 8। १० झूझिवा 80, झूझवा ए४5।

!॥4$०३॥ एकीको 07, एकेक्ो छा ल्ददमँ 58, ल्है एपट्र। रिण-रसीयो 50, "रसीयी ०, रिण वेला 8

५... किम ८४। वासईं ४0, वासे 7, वेसि 8। रहईं 50, रहे एछ॥ ७० बलि ' ४, “कौ बलि 7, इम जंपश ऊम्मो निन धणी5। « बेलों 90, बेला 40। छह 50, कै ए८। ४९० मुजरा 5 के |

चोथो ] गोरा बादल पदमिणी चडपई श्षु

लडी-मिडी सिघल' सेलयो', माहि' जहई' माझी झेलयो"। चाल्या जोध घणा जूझार', पांणी" माहि: कीउ" पहसार*॥ १९४ आगलि कहर' भमइ' भमरीउ,' जाणि कि' सिंघलि-खुर समरीउ'। "हे माहे प्रवदण गिया जिसइ,' खंडो-खंड हुआ सहु” तिसद॥ १५५ फरीआदे' छागी फरीआदि', ऊगारउ' आलिम' अवलादि!। द्रीउ दुठ' महा दुरंत, उद्धि” तणउ" नवि लाभ अंत १९६ चड-वड' सुमट' रह्या जल माहि', 'अंबुधि सकइ को अवगाहि पदमिणि" नारि पड पातालि, 'आलिम तुम्ह छेडउ आलि' १९७ बलूतउ' आलियमो इणि' परि कहई', “मो आगलि क्यु द्रीड रहिदद !। खुभट मूआ ते गई चलाइ', 'अवर घणेरा आणु जाई १९८ वरस सहस-इक रहिस्यु',इहौ, विण' पदमिणि' किम जाउ' तिहाँ। भसपति कीघधउ' बलि आरंभ, तेड्या सुभट' घणा सारंभ' १९०९ 'खुभट सह संकाणा हीइ,' फोकट द्रीआ माहे दीई* | |, “काम-काज नवि सीझइ कोइ, 'हठीड आलिम” न'रहइ तोइ २००७०॥

१९४॥ सिहल झ0, सीघल ०, सीघल 8॥, भेलिज्यों ०, भेलज्यों ०8, भेलज्यौ 9। माहै' ४0॥ जाइ 50, जाय ०। झेलिज्यो 8, झालिजो जेल्जो ०। झ्ूझार ४००, झूँझार 2। पाणी 700। माँद्ि 80। कीयड ४, कीयो ०, कीयौ 0, कीया ४। १० पहसारि ०, पैसारि ०, पयसार 8। & १९० ।9 २२५। २३१५॥ 9 २३७। २६६ , ॥१०५॥ कहइ 2, कदि कहे 0, एक 8। भमे,० भमै 2, भर्मे 8 भमरीयउ झ, भमरीयो ०६, भमरीयो ) ४क 5०, जॉँणि ०। सिंहल 70, सिंघल 2, सीघल"8। भेल्द्ीयर् 8, मेलीयो ०, मेल्हीयी ०, मेल्हीयो 8॥ ७"'माँहिं गया अवहण ' 2, '*माँहि गया प्रवहण* 0, मद्दे गया प्रद्ठवण जिसे ०, माँहि प्रड्ुवण पहुता जिसे 8।, < खंडिः8।.. हुवा झ008। १० सवि 8। , ११ निसे ए8 | ॥१९४॥ फरीयादे 80079। फरीयाद' ४08॥ ऊगारो 708, कगारो 0। आलम ए४। भवलाद 2॥' दरीयज 5, दरीयो दरीया 08। दुढ्बू 7070। जलूद #0। तणो ०४, तणो ०। १० लाम ०, लामे 8। ' ॥१९७॥ बंडचड 20। १खान8। शेमाँदि7। अबुंध'“कोउ' अवगाह ४०““न सक्ै को'**7, कोई सके भवगाईँ पदिमिणि पदमणि ०, पदमिण 8। पढो ,०8, पढठी ७०» 'तुद्ष दृडो"**०, आलूष ' छडो "०, आलुम छाँडो हृठ भालि झ। ॥१९८॥ बछतउऊ 8, वलछतों बछतो ०, बलता 8॥ आलम मए5। ३इशण ४। कहे ए४छ। ५."किम'' ४0 सुझ किम दरीया रदे 2, हम आगे दरीया क्यु रहै 2 ६“““मूवा * वछाह 5, मूवा , , .. ““०"“मूवरा तौ”*9, सुमठ मुयैका क्या पछताव 8 !!७ "धणा आणउ वोलाइ ४, '*घणा आणो ०, है घणा/औंणी बेजाये ०, दिछीका घर भी 'दरीयावों ।' | ॥१९९॥ १३*एक लूगि 8008 ,२ रहेस्यड, 3, रहेस्यों ०, रहिसें। ०, रहैंगे छा वेणि०। पद्‌* मणि 2, पदमिंनी 8। मैं 8। जावै 8। कीपो ०, कीधी ०, सिंलो 8। अति 5#09| | 5 झुदड घणा गज खभ 8 |! ( , २००) ६" हीयश ४0,"* सदु संक्रौणा हीये 0, लसकर हू संकाणा दीवै 8। दरिया म09४| 5. है भाहि 079] दीपह ४80, दीपे ए४।' 'सीझे ०, तिलू-दइक कारिज से कोइ 8।

[३ हठोयंउ 808, इठया 9] आलम 809] रहे 793) & १९६) २३११। ०२३७। २४३॥ 2२७१।

ईै5: कवि हेमरतन कृत . खड़े

आहलिम।! मनि अति अमरख घणउ, पार पांमइ दरीआ' तणउ/ , , , खाण पीण' निद्रा परिहरी, “असपति मनि हुई चिता खरी” ॥,२०१

कवित्त॥ ... " 'कोपि चडिड' खुलिताँण, खाँण' अर! पान भावई/'। “छा इतमार नार दार” पदसिणि' दिखलकावइ! 7) *करि सिलांम वहु ठुवाहि,' 'खोदि वन जो इस ऊपरि। _ कप 'ंसघल दीपि सुमुद्र "अछहई, पद्सिणी घराघरि'

लीं

४हुसियार हु अरदास खुणि," "एक अद्ध पेखॉ जहाँ सं “पेखबि समुद्र सासइ पडिड, "कुण खुदाइ खूदे कहाँ।* २०२॥ खुभदा घणा सज कीधा वी, नाव-ईँ-नाव घणी' सांकली'" इृणि' परि आलिम' ऊभडउ कहइई, “लाख तुरी जाई ते छहद ॥२०३॥ | सिघल' मसेलूइ' जे उंवराउ,, विवणड" तेहनइ करुं पसाउ

माहि' जई जे' माही हणइ,: जिगुण' पसाउ' कह तेहनइ॥ रुण्छ॥..

॥२०१॥ आलम 808। २मन 9। अमरप 5। घणों 05, घणौ-04 पामइ ४8०; पामै ७; छ8। दरीया, 80ए8॥। तणों 9, तणो, ०8। खाँगा 9५ खौंन -ए8॥ $ भाव

8, अनह 0, पौन ए४ १० परहरी 500। ११ असपति हुई'"*झ0, असपति"*?, चिंता धरी 8।

इसके पश्चात्‌ 50 ओर प्रतियोंमें यह दोहा है-... 5: * : भी #. चिंता निद्रा परिहरह , “चिंता लेजाइ सुख 6. 97 99 परहरह 4 ११

+ न्‍ हि 93 93 |

9. », 9 पारहरे 3. 99 छेजाय 8 दा 2 (५ $ चिंता अहनिशि तन दहई, चिता फेडड' मुख 5 “295 हु ग्र 45% अहिनिशि तन दहति, ,, # करी है ध्ट 7, १+ 99 दहै , 45 फेडे फुक 00. "ओ- करा (पक 52 » &,और ए़ अतियोंमें यह दोहा नहीं है ॥२०२॥ कोप 808। चब्यर्ड 70, चढ्यो चढ्यो 8। सुल्ताव 5, सुल्तानि ०, सुलताँन #४। 8 खान, 58, खाण-0, खान 095।. अरू 095। ६पान 80 भावे 98 < जबे

यारा! करो निद्ांठ 80, "करू ०, तिसकु-करडु निहाढ छ। ,९ जो नार 50/ जु नार

जुपै नार 8 १० पदमणि ०, पदमिन 8 ११ दिखलावे एव ।; १२" सलाम” युंउ .. - चाहि 5,. सलॉम वहु ०, सलॉम हुँ ०, सुनत हुकम सव यूर ४] १३ खोदि जल

करो दरीया दूर 8 खोदि जल-करो दरीया दूरि खोदि ज़ल करि दरियादर 7, प्रवंल प्रैंगंटे यूरातन - +&। -१४ शघर ०, उल्टे हल असमॉनछ १५ अछै,..०, अछै पदमणी ०, मनहूँ वन वन सिर रावन छा १६ हू “58, हू अरदासि ०, छुलसे सुभट करि करि हलाँख १७ अध' पेखद जिहँ 50, “* अप पेखे जिहा ०, संझुँद्र तट आए जब्बहि.०0॥ 2८ 5 सासउ

पडइ 3, सॉमे पढडों », दरीयव छेछ विषवि ददल 8 १९ सोदर 7० खोदे जिहाँ 7, तर्न समान छुट॒दि तवहि |

॥२०३॥ शुमट 8छ। वली ०] नावे' ७, नाव 8। घाली 8 ५: शाकली 8 इण परि छ8 एण. 0। आल्म 7ए8। ऊमी 0 ऊर्मों ०. ऊमा छ)। कृद्दे ०।

१० जायइ 5, जाय ०, जाओ &। ११ छहै 75 4 १९९] २३५। 0२४१। ४9 २४८। जुटा

॥२०४॥ सगल 8, शिघल ए8। ज़ेले भेडे ०छ9। उमर 58 ऊंवरो ०, उमराव ए5 विमण पसाठ तेहनइ करउ 5, विमणों पसाउ तेह नह करो 5, विमण पसाव तेहले कराव ०, सुभट छ्द्दै ते दृण पाव 8। माहे 80, माह ०0। 5 जाइ 800] ७-७ माझ्नी नइ ४0 माहझीने पकड़े

| छ) हणें 0, सिरदार 8 तिम्ुुग 80, तिवणु 8। _ १० पस्ाव ०॥ १५ 30०। लहे 8। १२ ते रूदइ 80, तसु तेणे झुंझार 5 रु

55१

4

जी

पऋोथो ] ग़ोरा बादल पदर्मिणी चडपई

'पेसी आणह जे पद्मिणी,' घर वहुली नड हुई ते धणी ,

छलारूच' लोभ दिंखाडई' घणा, 'मन्न सनावइ खुसर्दा तंणाँ” २०५॥ , पपरदम्िणि नर्ड अधिकर्ड अभिलाष,' सज्ज कीया खुमटाँ नच छाख

खुभद सह मनि शंका करईँ,' 'आलिमथी चलि अधिका डर २०६॥

घाघ' अनई' दो' तडित न्‍्याइ, रूसकरीआऑँ” नह पुहतउ” आई जिणि'परि तिणि'परि 'मरिवड सही, सुभट सह आव्या' सांमही'॥ २०७ 'खुभटे छानउ' तेड्यउ* ब्यास,' "रे पापी ! तईँ” घालिउ पास

कुमति किसी तईं कीची णह, 'सुभट सहनऊ कीधड छेह” २०८

'हिच तेईँ कोई हुसी उपाई', जिणथी' आलिमा निज घरि जाइ” ।" व्यास कहइ-' “निस्ुुणउ चीनती,' सहुद खुभट होवड* इक मती २०९

]२०५॥ पइसी'* 8, पइसी पदमणी ०, पैसी आणैजे पदमणी 0, ऑणीछे मुझनें ४5। दोश्ते***४, वोहलानो ०, _बहुलानों होवे धणी ०, तेह करूँ दक्षिण दिस घणी 8। छालिच ४80। एम ४। दिखाड़े 0, पैसारे 8। घणे छ8। मान 50, मंत्र माने'*'०, मन नवि

माने सुहृ्ोँ तणें 8।

॥२०६॥ पदमर्णि कठ 5, पदिमिणिकी अधिको पदमणिनों अधिकौ 2, पातिसाह मनि पदमिणि

चाह 8। स॒ज कीथा सुभट 79०, सुमट सज्ञे कीया ०, सुहड विचारे निज कुल राह घ।

/ ह३ “सका“*80," सकया करे ०, समुद्र थकी रत सका धरे छझ। आल्मथीं मनि” 8, * मनि ._* 0, आलमथी मनि टरै 0, आल्मथी पणि “ढरैए।

॥२०७॥ वाघ ०। अनिई 0, अनै 78। तढ नऊ 8, दोतडिनो ०७, दोतडिनै ०। _४ न्याय &। हद लसकरीयों फऋ्रए०5। ने ०, 'ने 8छ। पुहतो ०, पहुतो 98)। < आय 9] ९-१०

निण” तिण” 88। ११ मरीवो मभरिवो ०। १३२ धाया' 5009। १३ सामुही 8) ११-१२ यह हे - >अतिम पाद # प्रतिमे-नहीं है -

हि * ॥२०८॥ सुभटइ ०। छॉनो ००। तेड्यो ०, तेडी ०.। व्यास ०। ।५तै79। « धाल्‍्यो ०, - घाल्यौ ०0]-७ कीधो ०। सफल सुभटनी कीघी छेह ०, यह चॉोपई # प्रतिंम नहीं है “इस चोपईके पश्चात्‌ 80 प्रतियोंमें निम्न लिखित दोहे हैं- 8 वचन विमासी वोलीए , पडित नऊ न्याइ। ,, विमासी वोलीशइ ,ए पडितनो न्याय . -0: बचन विमासी वोलीयो , ,, ,, ,, »! ४' अविमास्था काये कंर३ ,'मूरीख ते नर थाइ॥ 0. अणविमासी काये जे कहि , ,, , , थाय 9 अविमासी कारिज करे, ५, ,, % थाइ॥ 8 लघु बालक युद्दवी धणी ,ए विहु एक सुहाउ 0. 99 989 3? है 33. 39 बेह 0 , » पोहोबी ,, + » विह्ठ , सहाउ] '$ रींढें न'छडश आपणी , भावश ते घर जाउ॥

ते

0, रीढड 99 छाडि १३ $ 9) १) घ्‌्रि |

०. रठ नवि छडे ,, , भावे जो घर ,, !

4 और > प्रतियो्मे ये दोहे नहीं हैं।. - “॥॥र०ण्णा "ते

होइ” 5, ते " होइ उपाउ ०, हिव एडवो कोइ करो उपाइ 8 जिणि ०, जिण परि 5। 7' हैं गीलम फफछ) फिरि पाछो ०) जाय ०। व्यासि ०, ब्यास ०। कहे ए8। < निध्नणो 085, निसुणी 9। चीनती 8। १० सहू छ0०5। ११ हुवड 7, हवो ०, छोवो ०, होवो 8। १२२ एक 8078 | <& २०५ 8 २४४। 0 २४६ 0 २४८ ।8 २९३

मन

३२ कवि हेमसतन्र' कृत : [ खंड

हिकमति' हेक हलावाँ नवी, व्यासईं साची मती' सीखवी। बा सहस एक साकतिखु' तुरी, आधा आणउ' गज-पाखरी २१०॥ पहिराबर्! सोवन सिणगार, कोडि एक आणउ' दीनार |

नाव भरावउ वहु नव नवी, पद्टकूछ वहु ऊपरि ठवी २११॥ कंचण'-कलस घणा सिरि' ठवउ', अण दीठा' नर इम' सीखवबउ' |

'सिघल' पति मेल्हरउ छह! डेड”, “आलिम |! अवकदद मुझ नइ' छंडि/॥ २१२ नाक॑-नमणि' मई कीची एह, है छे' तुम्हनी' पगनी खेह!

ऐएम' कही राखउ अभिमेन', जिम “बाहुडि जायइ' खुल्तिन? २१३ अवर उपाए दीसई' कोई, हरपित' खुभट" हआ' सहु कोइ |

रातों -राति कीया' परपंच', छांना सेल्या' सगला संच २१४

आहलियम! साहि जाणद' वाति', आविड' डंड" हु परभात॑'

जागिउ* आलिम' जगती'-घणी, मन माहे थी चिता घणी २१५॥ आगलि' बावि्ड चाहणि जिसइ', जरूघि' माहि ते दीठा तिसइ'।

साहिब फहद “क्विर्सू छइ एह१” तब ते व्यास कहद ससनेह' २१६॥

॥२१०॥ हीकमति 80 हुकमति ०। एक 7008। चलावर ४, चलावों ०, चलाँउ 0, चलागी व्यासइ 50, व्यासे ०, व्यास 8)। मुठी 9। 'स्थु ४, सागतिस्यु साखतिसं, “छु४। पॉचसइश ४०, पॉचसह 70०, पॉचत ए3। आणो ०, भाणी औणो 8।

॥२११॥ पहिराबदों ०8, पदिरवों शोवर शिणगार ४, सिंणयार 8। आणो जँगो एफ। भरादी ०७ भरावी ०।

॥२१२॥ १५ कंचन छ) शिरि छझ, सिर 8। ठके ०, ठवी 78) जाण्यों 80, जॉण्या 7, सिंधा "नह 50, ने 78) ६८& शीखवउ 5, सीखवों सीखवो ए४ सिंदल" 50, सीघल" 9, सिंघल" 8।.. भेल्ह 9, मेल्यो ०, मेल्हे ०, मूकी 85। छै0, 8। १० दढ 50%, पेसे 588 ११५ झालम 78। १२९ अवकइ 5, अवकि ०, अबके ०, मुझकुं ४। १३ मुझनईं 80, "ने ०, दियो 8। १४ रेस झ।

॥२१३॥ नाकि ०0। नमण ०। मइ 50, मैं ०8 हू 00। छठ 80, छु ०8। हे तुमारा ०, आलम 78). इम ०0। राखो राखो ०, राख्यो छा अभिमान झ। १० बाहुडि 5 8 ११ जाइ 50, जाए ०, जायै 5। १२ सुल्ताण 9, सुलताँण सुल्तान 2॥

॥२१४॥ उपाव 5, उपाय ००8। दीसै एछ। कोय 8छ। ४, ५, सॉमलि रीक्षया मनि ४&। रातौ-राति 9। करी 5। ९५ प्रपंच 8। १० छाना ०७। ११ भेल्हा

॥२१७५॥ आलिमसाइ ४8०, आलमसादहि जाणइ 80, जेंणे ०) वात आव्या 50, आया 9 दड 5। हूयों ०, हुवे ०७। परभाति 9। जाग्यो ०. जागो 0) आलम 7।

१० जगनो ०70। ११ माहि ०, माद्दे 9।यह चोपई प्रतिमें नहीं है & २१५१। २५० 0२७५४ | 70 २६४

॥२१६॥ वाहिरि 4, «आज्या जिसईंछ, वाहण आयावाहण जिसे ०, तितरे प्रवदण आया जेह ४। दरीया «“तिसईं 5, दरीया माह्दे दीठा तेह ०, दरीया माहिं दीठा तेह 8। $ साहबजी कहईं किस्यु छद्ट एद 5, साहवजी कह्ि किस छश एड साहबनजी'र कहे कियु एद ०, साह

हक कद्दे क्या एह 8&। .४ व्तउ व्यास...७ वछतो.. ०, वरतौ न्यास कहै--«०, वलता-« कहे सनेह £।

ज्ोथो ] गोरा चादर पद्मिणी चउपई

०सॉपि' सकई तउँ सिंघल तणी, परिघल" आवी पहिरामणी? | घलकईूँ' तोरण चूनी चंग, ऊपरि कंच्ण-कलख उतेंग २१७॥

फरहर नेजा धज फरहरर', उद्धि' माहि' 'आवई इणि परई"।

आलिम' मनि' हड॑ आएंद, देखी प्रवदण-वाहण'-द्वृंद्‌ २१८

ते पिण' आव्या' वाहरि तरी', 'साकति 'सगली आगलि करी

अखसि' नाँखी नर आव्या' धाइ”, पातिसाहि! नह छागा* पाइ २१९ डंड-डोर हय-हाथी घणा', सेवक आव्या सिंघल तणा'

विनय करी भाषद' वीनती", “तु मोटड छइ डिल्लीपती २२०

सिंघल पति तुम्ह' पगनी खेह, तिणि' महिमॉनी' मेल्ही' एह।

'ए. चूनउ होसी तुम्ह पॉनि', मया करी हिवकद” दिउ मौन २२१॥

“तु मोटउ' जाणे जगदीस', नमताँखु' नो कर हिच रीसख”। विनय-वचन राजा' रीझीउ, सिंघलपति“ नई सिरिपाउ' दीड २२२ पहिराव्या' सगला परधोन, मोटों नई परि दीघु' मान

खिंघलपति' 'युं जे मेल्दउ“, ते खुभयों नइ' विहची ' दीउ २२३

और

॥२१७॥ खामि 808, सामि 9 4 सकईं 8, सके, ०8। तो 8008। सिंह ४0, सिघल धणी 798] ..पहिरावणी ४०, मेल्ही पेस एह हजरत भणी ४। झलकइ ४०, झलकत ०, झलकै 8।

कंचन 79]

॥२१८॥ फरदरै ०, फरहरें छ। दरिया 800, सागर ४। विचि ०, विचि आवइ ४80, आवे ०ए98। “परि ०, "परे 798॥। आलम एछ। मन ४। हूवड 59 हुवा ०, हुयी 8

५९ बाहण-बूंद ०।

२१९॥ परि 8, पणि ०0, तितरे 8। आया ०8। वहिरि ०, वांहण तिरी ०, वाहंण तिरी 8।

सौंकलि 8, साखति ०, सागत' 8। शगली ४, सघरी ४5।

धरी 8।॥ अस 8, खडग

0०0। <८ नाखि नइ 5, नाखइ नह ०, नाखिने ०, नाखिंने 8। आया ए8। १० धाय 7॥

११ पातसाह ४0, पातिसाह 8। १२ नह 8, ने ०, के छ। १३ लागईँ 70। १४ पाय प्ठ आव्यों 8, आया ०]। सिंहल ४0, सिंघल 9 त्णों 5 '५ बिने ||

॥२२०॥ घर्णा 800॥

& भाषईँ छ, भाषे ०। घीनती ०। तड (तूँ ०) छह मोटो ४०, तुम्द छी मोटा साहिब

दिलीपती ०, तुम्द दो मोटा दिलीपती छ। प्रथम अद्धौली प्रतिमे नहीं है

॥२२१॥ संगरूः 8, संघल" ०, सीघ्” ०, सिघछ”" 8। तुम ०॥ तिण 9। महिमानी,झ। बोली 80, भेजी ०8। “पान ऊ, हूँ चूनों "तुम पान ०, “तुम पौंन ०, यहुँ चूना हैगा तुम पौन झ। ' थो मान 7४, हिवकि थो मान ०, हिवै दौ झुझि मान ०, लीजै हम मान ४।

*+ २१७] 8२०"६॥।०२६०॥ 7२७०॥ 5३०७३०८।

| रेर२॥ मोटो ' ०, तू मोटो"*०, तुम हो दुनियाँ सिर जगदीस 8। 'स्थु झ, नमतासु ०, छुं छ। शे द्दिव केही 3, हिवि केही ०, हि केही ०। बिने 0। वचन ०। आलम ०४। रजीयो 80, रजीयो ०, रीझीयो 8 ८-९ "सा 4, सिंहल पति नहँ छ, सिंह पति "०, सिघलजी ने ०,

सिंघल हु छ। 0्ष, दीयी 9 २२३॥ २१, पहिराया ए४।

) 'नों 4, *नहं ४, "नै ०, सुहर्शीने 8॥ “१० दीउ 4, दीयो 80ए४।

१० सिरिपा 4, सिर॒पाउ 5, सिरपाऊ ०, सिरपाव ०, सिरपावज ११ दीयो

प्रधान #00। नो &, नी झठए0घे। दीपर्ज 8। मान 700। सिद॒ल" ४0, सीघल ०, सिंघल 8। जेइ जे 8, जेह जि ०, जे जे ०४। मैंल्हउ 4, मेल्द्दीयो

हे कवि हेमरतन छत '[अंड

'मान मुह्तसे' मेल्या तेह, सिंघलपतिस्ध' कीड सनेह।

ः.

ब्यास तणी सहु समरी बात, मेटी घीगडि धातईं-घात २२४

दृह्दा [ जेह नई घटि बहु बुद्धि बसइ', ते सारइ सहु काम 'प्ंजर गंजह बलि घड़द', बलि आणइ निज ठाम! २२५ ] फकृच 'की् भसपति' पतिसाहि, आबिउज डिल्लीपुरि' निज माहि" ठोडि-ठोडि' गूडी ऊछली, गोखि-गोखि' वहु नारी सिली २२६

कवित्त मिलीया' मीर सलिफ, साहिजादा हिंदू' सहि। 'कही सु रे पदमिणी', खारि 'खाधड छूसकर सहि | राघव जंपद इसउ*, “कहिउ' हमॉरउ कीजद'! आणउ'' माल बहुत", साहि/ पाछड।' घालीजइ” | * अछद लाछि* अरदास”" सुणि, असिपति डंड भराईउ' छुलितोण ' तौम' सब जाइ करि, वाहुडि डिल्ली” आईड' २२७

७. ८०७. ल्‍क++ >> अब + + + वधनलसजट.... ल्‍भन +3 ५७ ली ओडी७लल« लक जल >मजन>बलनण नम बम

३२) ?े मास का। मंदारपु ऊ, न्न्यु ०, सहतसे ०७, मशुउसु »। मंय्या ०, मेला एए। शिललपीर्यू 7, संदत ०, सीयी ए, निया ह्ीीय्ड », फीयो ०0, की ?। समा गत 9, वयसतसरी पर संझसी दात ग। ०७ पातों वात ?,' घाल्ते थात ०, मेली विस भा कया 9, से लिम मेरी को पास 7। ढश्दा ? क्‍निद्ाा कए, किमी ए, तउपी 8॥4॥ ३)? दुद्ि महु 70, युधि बंद बहुली शुधि £। ब्रगा 0, मर 9॥ यु ०४ साथ गाय ?, नीय सी। परिणाम #। 8 आप मणि 6, * 4 0१ कक, उामि ल्‍७ >ल्‍्न्‍ॉंक » ठाति द् नपां मी इन दी 9 पि ७५ भी गय। ठामि ०, बहि ये * ठागि 0, सत्र सुधारे घण का धरती यादोरा ना हि! ञ्र डे जे डर 08४ | रच क, कोए भौरी 0॥ + एन के, बार 0 परत 0॥ # सोप्यर ), अली 2, "5 8 ४. है €ै, दि पह 9॥ लिठ्रा सरगिल क6, गिल कप 9॥ 2४ जप श्र जी पक की डक रा न्‍ 08 हा पा बन दि सु दइवदि ॥, रो मी 6 7, रवि 8। उदय गिए, को गोगि ८8४ | 5 द्रीर्भे दे आर «आय ! & रा >३) ३३2१) एन४छा #9>रछपाा शिदश्क कह हे एल हा द्रव | हि हद का मै ह9ै 8] घाट पोज छा दामाद 93 झाप्रो ९, हक 4९४ 8 795. *€ बह दे | हे हु नह |, नी 2 छ!

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प्रँचमी ] गोरा घादल: पद्मिणी चउपई ड्र्ष [ पाँचसों खण्ड ]

पी ॥चोपहै॥|..

असिर्पति आधिउ' निज पुरि' जिसई, ठोडि-ठोडि' नर भाषहँ तिसई) | पद्मिणि' नारि “पखहँ पतिसाह, "किम ' आविउ “विण की “विवाह” २२८ ॥' आलिमसाहि' 'हत् आकर, 'पिण हिव' सरल हु पाधरकी] |" विण* परणी' आविड'” पद्मिणी”, ठोडि-ठोडि' भाषई" कॉमिणी/॥ २९९॥ ' आलिम' आविड' निज आवासि), लेइ' शस्त्र महि गये खबास' |

माहि' सेल्हि ते! बल! जिसइ“, बडकणि' बीबी वोलइ'' तिसइ/ २३० “पातिसाहि' परणी पद्मिणी', ते' दिखलावउ' अब हम भणी! |

जात्तकर्य' जोबा" दीदार, निजरि निहांलछाँ हम” इक बार॥ २३१॥

जसु' घरि पदमिणि' नही दोइ च्यार, सगल्' खूनउ तखु संसार

तेह' तणी सुलिताँणी किसी? जेहरुं पद्मिणि स्मइ हसी' २३२ पातिसाहि! हिच' पदमिणिं' पखे', ठालउ आयड' हुए! घरि रखे”?

बीबी विछुखउ कीउ खबास'', आंवी' पुहतड/' आलिम' पासि/ २३३

२२८ आव्यर्ड 8,। आयो ०, आयौ ०, आया ,छ। निज तखतईं 5875, निज तखतइ 0। जिस 8, तिसह ०, तिसे ०, जिते 8। ठंडि-ठउुडि 80, ठामि ढामि ०, ठोडि-दोडि हर भाषइई 0, भाषै ०5। तिसदँ 88, जिसइ ०, इसइ 0। पदिमिणि ०, पदमणि 9, पद्िंण पखइ पखै ०, सरिस 8। क्‍्यु 2। १० आयज 8, आयो ०, 'भायौ ०, आप मे. ११ विणि ०।बिनु 8 १२ कीयइ छझ0, कीया ०, कीपे 8 (१४ ब्याह छ।.

२२५॥॥ /१/ आलिमसाह 8, आलमसाहइ ०४७, आल्मसादहि ०। हुतों ०, छुतो ०, छुते 88 आकरों ०, आकरी ०, माकरे | पिण ०, पणि 7४। हिवि ०, हि ०. अवकै 8। हवौ ०, हुवी हुये ७। पाधरो ०, पाधरौ ०, पाधरे 8 विण ०, विनु 8। परण्या 8। १० आख्यर्ड छ, आज्यो 0. आयौ ०, आये 5। ११ पदसणी ०, पदमिनी 8। १२ ठर्डि-ठर्डडि ४,

ठोडि-सोडि ०, ठामि-ठांमि 0, ठॉम-ठास छ। १३ साषि ०, भाषै एछ १४/कांमिंणी 5,

कौमनी ०, कॉमनी

« २३० , १,मभालम ४705। आव्यउ 8, आव्यो आयी 9, पहुता 8॥ आवास 59, आव्यासि ०0।

शस्त्र लेई गयो माहि (खास 8, सख््र लेई गयो माँहि खवास ०, ससम्र लेइ गयो माहे खवास ०,

(' ' खत छुंडायो आइ खबास & माहे ०। "नह ७, मेलि नह ०, 'मुकीसे '०।

वलीयड 5, वलीयो ०, बलीयो ०, वलियोौ 8। जिसईं 8। वढकण ए09, वढक॒त 8&।

१० वोले ०, वोढी ४8। ११ तित्तईं 5, तिसे ०४। है है २३१ १, पतिसाइ ०8. पदमंणी | ति 5, सो 5। दिखलांवों एण। सणी ४। जातिकरा ०, जातकरा ०, जातिकरों 5। देखें 8008॥ न्जरि 8, नजर 0। निहालच ४,

निहालों 078] १७ डुक 50छझ। ११ एक वार छझठफ। + ( मैं रेशर॥ जस5। पदमणि ०, पदमिन 8। दोइ-च्यारि 800, दुु च्यार 8 सब ही ऊजड तसु 'ससार'80, अब ही ऊजड तसु घर वार ०, है तिसका कैसा अवतार ५- "सुलताणी “48, अब तेरी पतिसाही किसी ०8४। जेहस्थु" रमईं ४, जेद्वस्यु "०, जेहस्यो पदमणि ०, जे ।. , पदमनि सुन-सुन में इसी छ। मै रेशे३े पातसाई 808, पातिसाह ०। अवे झ5, अब॑ 0, भाए ०। 8 पदमणि ०। ४४ पखइई ०, पस ०) |५ वालो फ008 | जायो झठण05छ होइ झ०४ | विलखो 0०४॥ . फ़ीयो 8ए०छ। १० खास ०। (११ आवि ०। ,१२ पहुतौ ०। १३ आलम मफ़छ। रैं४ड पास 8 २९८१ 8२६७] 0०0२७१॥। ए०२८३। ६७ ३२५, ; रु

हु

23: फवि हेमरतन कृत [ खंड

'वात सह सविवेक्षी फही', असपति' रीस हीया महि अही'

भाछिम' भंडिउ' अधिक अभ्यास', “ततखिणि तेडि् बलि ते व्यास २३४ “सिंघलदीप' 'पखे पदमिणी', वले किहाँ छह कहि मुझ भणी”

ध्यास कहइ- “संभलि खुलितोण", 'इक वलि पद्मिणिलुुं अहिदाण' १३५॥ चिंहु' दिसि' चबिड' गढ चीतोड', वींझाचल' महि विसमइ” ठोड़ि | श्तनसेन राजा रंढाल', “करूह करूर महा कंचार २३६॥ .

तसु घरि नारि अछई पद्मिणी', सेपनाग सिरि जिम हुई मणी

'लेई सकद कोई तेह", तिणि" कारणि झु' 'भाखुं 'एह” २३७॥

साह' कहई-“संभलि' हो' वेभ,' एचडुड' फोकट' कीउ आरंभ'। '

वीजी'' बात सह हिच तिजउ”', गढ' चीतोड' तणउ/' खु* गजउ/॥ २३८ ऊभा-ऊभमि लीड पद्मिणी, जीवतउ' पकर्ड गठन घणी”?

'सबल सेन ले आलिम चडिड*, “धर धूजी चासिग घडहडिड"॥ २३५ *

२३४ इसके पूर्व निम्नलिखित चोपई 70०7४ प्रतियोर्म क्षेपक रूपमें मिलती है- 98 "पातिसाह जीव कोडि वरीस , बीवी हासा मिसि करि रीस

. 2 पातसाह जीवों # »#$ # # »कीधी »। 7 पातिप्ताहि जीवी »५वरीस , » हासोँ »» ऊऋ हजरत जीवों » पेरीस , /७ इदेमसु कीन्ही + ! 3 हासा मिसि मुझ कहीया घर्णों , नाजक वोल पदमिणी तणों

सर » 9 पैणा $ नाजिक ,, पदमणि तणा। 3 * 90 9१ मिस मुखि 99 ११ है। नंजक 9१ पदमिणी तर्णों || की ,, मिंसि घणा कह्मा , , भोसा पदमिन नारी तणा।

१२ वात 'सबिवेकी 0, नगर वात पणि सगली लही 8॥ असुपति 5। हीया मादि 88, हीया मौँहि ०, 'मै ०) गृही 8078॥ आलम 7४। माढ्यठ 5, माठ्यो माडौ ०, माट्यो ४।

कै प्रयास ४) ततखिण चेटाब्यो वे व्यास 5, ततिखिण तेटाव्यों ते न्यास ०, ततखिण तेडायो ते व्यास ०, तेढायो वलि राघव-व्यास 5॥ नि

सचनिका- इसके नीचे एक कवित है, देखो स० २४०॥

/ध | रेमे५षश] सिंघल 800, सींचल छ। पखइ 807, पर्ख ४। पदमिनी 5। बहुरि किहोँं वे कदि सुझ भणी ४0, वहू. 0, कह वै व्यास कहाँ तें सुनी 20 ५० अणईं* 'सुखताण 2,"“भणईँ"*०, जीवै हजरत इस दुनियान छू एक वले पदमिणि अद्दि ठाण 8०, एक वले पदमणि अद्दि ठाण है पदमिनत एक हीदूस्थान |

२३६॥ चिहू चिट 8 चिक हे चावो ०8। चीत्रोड 700। वीझाचल

' वीझाचल ग। माँदि मे 8 विसमी 7078। ठछढि 8, ठोंट ४। रिणघीर ४8) १० * कुद्दाल 800, रजवट प्तिरे चढावे नीर 8

॥२३७॥ अछे 5। पदमिनी 2। * सोहड जिम "80, सेप-सीस जिम सोदइ मणी ०, रजवट सिरे चढावै नीए 5। तिद्दों 500, लेन सकीजे किण ही तिहाँ 88 तिण 778 '"स्थु ए008। मापठ 77, भाषों ०, कहीये छ। जिहीँ 208

२३८॥ सादि ०। कददईं 8, क॒हि 0 कहे ०४। सॉमछि ०8 वे 8। व्यास 8 एवड 4, एवंटो पहिली छझ। फोगट 8 कीयर् 58, कीयो 08। ९५ प्रयास 8। ६-८ यह पाद प्रतिमें नहीं है १००“अब तजर् म००, अब दूजी सही वातों तजो 2। ११ चित्रोडि ४० (१) १५ तणो ०० तणी ०। १३ झु &, स्यु झ0, क्या ०। १४ गजो ००, गजौ ८5।

२३५॥ ऊर्मों ऊम ०, ऊम्रा ऊमा ४8। लेवउ 8, लेऊ लेढ (१) ०, ल्यातुँ 8) जीवत 3, .. पकटढर्ट॑ 9 जीवतो पकडो गढ़नो धणी जीवतो गढनी “9, पकटि जीवतों गढकों धणी झ।

४-५ के स्थान पर यद्द अर्द्धाली क्षेपक है - दिन दस-पाँच रही ते करी 500४, सबरूू सनाखति (सनापति 8) सावति ( सावति 8) करी 70०४ री 8002, सबल सनाख

पाँचमो ]

गोरा बादल पद्मिणी चडपरे ३७ कवित्त

सलहदार हथीयार, छेइ आगलि अवचारी |

सभाली सर-सेलि, माहि' भेजी भंडारी

बीबी तब पूछी3', “कहाँ पद्मिणि' तुम्हि' आँणी' प्यारि-पंच' नही पद्सिणि*, किसी तिसकी खुलिताोणी।

त्तेडावि

व्यास तत्तखिणिहि, पुछइ वात विगति बहू

सिंघल टालि'' जिणि" ठाणि* हद, कहा राघव “पंदमिणि “कह॥ २४० हसि बोलइ' सुलतौण', माण “घरि मूछ' मरोडी' “रतनसेन' कर बंदि', चित्रगढ' 'भाजु जोडी पलाण्याोँ पतिसाह,' *जलरूय-थरू बहु अकुलोणदइ'*। स्रग्गि इंद्र खलभलिउ, पद्या* दह-'देस भगौोणई | 'फणिवह पयालकि वासुगि दुड्यउ , “कह साहि विश्नह करूं

भेशयारूं

२४० हे

सदेस हिंदूआण कउ*, “एक-एक जीवित घरूं' २४१

इसके पश्चात्‌ 807४ प्रतियोंम यह अद्धांठी क्षेपक रूपमें है -

भीर-मुगरू चाहुडि सज थया , आधी राति दर्मोमा हुया

0 ,, मूंगल बहुडिसजि ,, + # » » हैसा।

7 ,, जोधा वाइडि जत कीया, » »# » दीया

११ है) 4) ११ कीया है ११ ११ 9१ ||

४-४"'चड्यद 8," चठ्यो ०. सेनि ले आलम चडो ०,' सेनसु आलम चढ््यो 8। ५-५० धढदस्यर ४,., धडहव्यो ०' वासिग धदहल्यौ ०, वार्सिंग धडहल्यो 5। 4 २३४। # २७७ ०२७९॥ 79२९२)]। एछ १३२॥ सूचना- यह कवित्त 809 प्रतियोंमें चोपई संख्या २५४ के नीचे दिया है और प्रतिभे नहीं है मैंहि छझ00। भ्रेज्यड 80, भेज्यो ०॥। पूछीयों घ00। पदमणी ०। तुम ०0१ आणी 8। दोइन्च्यारि 500। पदमणी ०। सुल्तानी 5, सुलतोनी ०0 १० व्यास ०। ११ ततखिणहँ 8, तितखिणइ ०० ।१२ पूछे वात विगती

. बहु ०। १४१ सिंहलि 9, सिंहल 0, सीधल ०। १४ वगइरि 80, विगर ०। १५ जिहि 809।

२४१ 0

१६ उरि 8, छोर 70। १७ हय ०। १८ किददाँ 50, किह्ा ०। १९ प्रदमिणि ०, पदमणि २० कहो ०, कडु ०। 8507 प्रतियोंमें यद्द कवित्त घोपई सख्या २३४ के नीचे दिया है # प्रतिर्मे यह नहीं है हे

बोले ०, वोल्यो ०। सुरताण 5, सुलताणि ०, सुरताँग ०, सुलताँन 8 ३-६ कहाँ राघव! प्दमिणि कहु 4। साँग सॉन 8। ७-९ रतनसैन गढ चित्रत़ोंट ७। रतनसैंनि ०। < करों 58, कु ॥। ३९ वदि 9; पकड़ि छ]। १०-१२ गहिलोत राए पड 4। १० चीत्रगटठ ११ भाजउ 5, साजीं ०, नाखइु 8॥ १२ तोडी ०8॥ १३-१४ पलॉणीया अलावदी 4, पछाण्या पति- साहि ०, इय कपे चक च्यार 8। १५ जल-धल अकुलाणइ 4, जल-थल बहू अकुराणे ०, जल्य-धल बहु अकुलॉणे 9, थरकि जलनिधि अकुलोंणी 5। १६ सरग 800, सरगि 8) १७ खलमली ए0फ, खलमलयो 8 १८ पख्यर्ड 8, पद्यो ०8, पडी 8। १५ दस-देस 5०, देस-देस ०, दस दिसिहि 5 २० मंगाणै ०, भगाणों ४। २१...वासिग- छवासिग ढर्‌यो फण वय प्यार वासिग ढरूयो ०, फर-

.. मान देस देसद्दि फटे छ॥ २२. -करउं 5,.. करों ०, कहदे...वियह. ०, सव दुनियां जैसी सुनी 5।

२३ मारठ 8. दिंदूवाण-««०, मारू देस हिंदवाणको ०, थो पद्ध देस हिंदवाण सव ०, मारि हैं रतन हींदुऑन पति 8 र४ कोइ कोइ जीवतर् धर 8, कोई-कोई जीवतों धरू कोइक हु जीवतो धरु ०, सा्हि पकडि है पदमिनी 8॥ 8075 प्रतियोर्मे यह चोपई संख्या २३५ के नीचे दिया हैं। & २३६, 8 २७८, 0 २८०, २५३, ३३३।

8८ .. कवि हेमरतन' कृत | [खंड

[ छठो खण्ड |

गढ़ चीतोड' तणी तलहदी, आबिड' असिपति इणि परि हठी।

लाख सतावीस' छसकर लार, 'हथीयारे छागा हथियार २४२ मदृगर्रू सवरूू करईं सारसी, हय हीसारवा भट्ट पारसी

आतसबाजी अधिक अगाज', गोला-नालि रह्या वहु गाजि २४३

दह दिसि' मेड्या' वहु दुमदमा, 'सुभट सह दीसईँ ऊजमा' |

"हलकई चिहूँ दिसि वहु ढीकुली', सकईह कोइ पइसी नीकली' २४४ डुमकि' दुमामा घूमईं घणा', चाजइ ढोल घण-सॉधिणा

भभकई' सुंगल' भेरी भूर', रणकइ' रोस भरयथा' रण-तूर॥ २४५॥

हुई सरणाई सिंधू साद, परवर्ता माहि' पडईं/ पडसाद।

हठीउ” आलिम* साहि अभंग', जुद्ध// तणा करि जॉणइ जंग” २४६॥ रतनसॉन' पिण' योसई चडिड', दीठउ” आलिम' आवबी पडिउ/ |

सुभट सेंन सज कीची सह', वलवैत वोलइ'” वहसे वह २४७ “साहि भरूईँ तु आविड सही, पिणि हिच नासि जाए वही

'तासंताँ छईद' नर नई" खोडि', हु" ठावउ छु" इण'" हिजि ठोडि/ २४८॥

नीजीजल जज जल ज॑ जी न्‍ी जैज ॑ीज॑ जज सज अजीज जज जज न्‍।

२४२॥ चीत्रोड 80०, चीतोंड 2 क्षेनुक्रर्मि आया असपति हठी 5, अनुक्तषमि आयो असपति«««० अनुक्रमि आयी असपति हृठी ०, 'भनुक्रमि आयौ आलम हठी 8। हथियारें दीसइ...७ » दीसइ हथीयार ०, दीसे .-०, डेरा दीया अति विस्तार 8 २४३॥ मईंगल 8, मयगल 7, मेंगल छ। करे ०, करें 5। हींखारव 8, हीसे ०, दींतें ४। मुगल 800, मूँगल 8। अति छ। अगास अग्माज 8। २४४ दिस 5४। माँड्यों माव्यों छझ8. दमदमा 7008। सुभदया सहू दीसइ ऊजमा 9५ / « दीसईं ऊजमा ०, सह दीसे उजमा ०, मॉडी नाछि वलि चिहुंयै गमा 5। ढलकश बिंदु दिसि है वहु ढींकुली 8, ढलकइ विहु दिसि वहु ढीकली ढलकै ढीकली ०, ढलके ठॉम ठॉम ढीकैंली 8। ; ६. .नीकली 807, सके को पैसी नीकली 8 : रछ५॥ ढर्मोंमा घूमई 5, दुमकई द्मोमा धूमई दर्मोमा धूमे चौरस नगरे धूजे धरा धणा हू घणा 50, वाजै ढोल नही काश मणा ०, गूँज्या गयण अने गिरवरों 8। हे ममके ए8। मूगल #, मूगल 0, मुगुल 98। भूरि ०। रणकई ४, रणके 08 ७-८ भरायह दूर 80, भराया तूरि ०, भराण्णां तूर 8

२४६॥ सुर छ०छछ | सीघू 7, सींघू झछ। हें परवति 8। माँहि 80। पढ़ 8, पड़े 98॥ परसाद 4। इठीयो 800, हृठीयी 8। < आलमसाद ४50, आल्मसाहि ०८४१० घाव (अलाव) 5। १० ज़ुध +जाणइ 95, जोधि,. जाणश जुध जुल्या करि जौँणे जंग ०, गढ भॉजण भनि चिंतें दाव 8

२४७॥ रतनसेनि 8० पणि छ००8४ रोसइ », रोसि ०, रोसे ०, रोसें ४8। चब्य॒ऊ 5, चल्यों ०, चढये। ०, चढयो 5 दीठों 08, दीदी ०। आलम ००। पव्यत 70, पड़ी ०, अड्यी 8। < तेढाया 8। वहू 508, सहु ०। १० वोरैे 9, आया 5। ११ सहू ड£। *& रेधर) 8 रट४) 0०एर२८५] 7२०० एछ३8३९॥

_ राणा रतनसेनजी दूत मोकली एम कहायो “8

२४८॥ -.आब्यउ 8, - मलइ तू आव्यो साँहि भर तू आयो सही ए, अम्ह उपरि आया छी सही ४। पणि नासि जाजो जी धिप मही ४50, नॉसि जाजो सिमजो रही ०, नासि जाजो खमयो रही 3 नासता उ0फरष्ठ। छै 9। नरने। ०, नरने ०। ३-६ नासंता हींदू ने

खोडि 8४। हूँ छ, हू 705॥ ठावो ठावी ए8। छठ 5, छू 079। १० इण हीं 8, इण हीज ०, इणि हीज ४8&। ११ दरडि 9, ठोढि ठोट ०, दौडि मा ! !

छ्ठो ] गोरा बादल पदर्मिणी चडपई

हिवहँ' दिखाडिसु माहरा हाथ, ते पिणि' सज्ञ करे निज साथ।..., . ढीलीपति' मत ढीलउ' रहद हे खुभदा! तिको* जे पहिली' कहह। ॥२४९॥ ते' सिंघलथी' आबिड नाखि, तिणि' कारणि' तोनई' शाबासि" | तोनइ छदव' नासणनी' टेव, दीठइ' सुंहि' मत ज्ञासई हेव??॥ २५०॥ फीधड' कोट सजे साबतउ', 'फिरतां दीसदइ अति फाबतड*।

पोलि' जडादी पेठा' माहि', खुभद' घणा साहा गज-गाहि २५१

'आगलि पतिसाह अराति कराल', तेल पड्यउ' बलि ऊठी झाल

हिंदू'बोल' वधघा' ने 'बडा, अब क्या 'खुभठो देखो“ खडा २५२

गढ़ रोहड संडाणड घणड, तिम-तिम कोप वधइ' बिहुँ तणउ |

बेही' वलवैंत बेही' दूठ, पूरउ” परिगह विहुनी' पूठि/ २५३

जे 'भाजइ ते लाजईं घणु, कुल अजूआलरूईं बे" आपजऊु।

गोला-नालि वहद' ढीकली, बाहरि को” सकईइ'' नीकली २५४॥

गोफणि गयणि' वहईँ' अति घणी, रीठ पडहईँ अति' रोढा" तणी

कुहक वाण' करडाटा' करईं“, 'छसकर लंघी जाई परईँ २०५॥

२४९५ हिवह ४80, हिपरे ०, हिवे 8। दिखाडिसि 50, दिख,डसि ०, दिखाडिस छ। तू 8, तू ०0,

[ तुम्द 88 पिण 50, पृणि 78 सज 00, सझ ४। कीयौ 8। डिली" 5, डिली-

पती ०। < मति 808। ढीलो ढीढी 98 १० रदईं ४, रहै 75। ११ शुभट 5,

हद हम १२ तिकउ 80, तिकौ ०, तेह छ। ११ जो 80078। १४ पहिली ०। १५ कहईँ 5, फछ

॥२५० तेँ एड, तू 7०0 सिंवल” 8, सिघलि 0, सीवलतै ०, सीधढते 8। आव्यज », आन्यो,०, आयो ०, आयो 8। तिण 08, तिणि तो ०0। वातें छ। तो" ऊ, तुझ" ०, 2 तोने ०, तुझनें 8। सावासि 509, स्थावासि ४। तुझने ०8। नासणरी छह 8, नासणरी छे ०5, नासणरी छे ०। १० दीठे 7४। ११ मुहि 8, मुहरइ ०, सुखि ०४5॥ १२ भति 709

; १३ जाए 8, जाइ ०, जाज्यो ०, भाजो 8।

२७१ कीधो ००४। साबतो ००४ फिरतड 5, फिरतो फावतो फिरतौ दीसे ०, फावतौ ०, भुरज भीत चिह्ु दितति फवती पउलि 9। पइठर्ड 8, पेठों पैठों ०। माँद्दि ०। शुमट ०। गाह 800 | अतिम अद्धांली प्रतिमें नही है का ' जी र५ष२॥ *,भमति विकराल ०. आलम अति अप्तराल 9, आलिम आगि सदा असराल 8। पडो ०, पत्यो ०। र३ेसे ४छ। बोलइ ०। विद्या कहच्मा 5। चे वढा मऊ, वि वढा याएँ ०४। देखो ०४, देखी ०॥

है र५३॥ गठरो हो 00, गठरों हौ 8 मढाणो 8, मढाणी भढाणी ०। घणो ०, घणा एड5।

वधह 4, वये ०, वध्योी छ। विहू तणो 8, “तणी ए5। बे थे ७8, चेई 8008] पूरो ०ए85।

| < परिग्रह 8, परिभिह ०। विहनी 8, विहूनी वेहई ०, विहु अ5। १० पूठछण।

) भ२५३४॥ भाजै 9४ | लाजइ ४0, लाजै 98 घणरू 8, घणों ०, घणी[ 08 उजवालइ २,

उजबालै ०, ऊजाडै 8 ) ते ०। आपणउ ७, आपणों आपणौ ०8। वहई », वहि ०,

बद्दे 0, वहे 8। ढींकुली 8, ढीकुली ढीक॒ली 5। वाहिरि 5, बाहिर 8 १० कोइ ऊ,

| कोई कौ ११ सके ए8छ 4 रड्ट। २९१। 0 र०२। 7 ३१५३। ४5 १८२।

« रंपंड॥ ३१ गयण 098। चहइ ०, वहे ०, वहे 8) पढइ ०, पड़े 9४) गिर ०, सिर 5। रौढों छ।

कोद्दोक वाण ०, कुहक वॉण 8। कडडाटा 0, गडडाद्दा 8। करे ०8। ९...जाय परइ ०, *न्‍माजी जाय परे ०, गैवर घोडा मूगल भरे 8।

४० कवि हेमस्‍य्तन कृत [ खंड

बाण विकछूटईं बढदईँ' तणी', 'फूटईँ फोज “चिहुं दिसि 'घणी। *झूझई-बूझईँ सघली कला , “भुरजि-सुरजि भड ऊछाौँछला २५६ झाडइ झंडा पाडईं पाघ, ऊडाडई” धज गयणि" अथाग' |

"ताकइ ह।कर वाहदई तीर, 'मारइ मयगरू मुगल मीर! २०७

फाडइ' डेरा हेरा करी, सकई' को पेसी' नीसरी"।

कलली कोप करईँ' कैंधाल, फारक सारि करईँ थईं फाल २५८॥ , कोट 'तणा 'सगला काँगुरा, 'वीटी वइसई" जिम वॉनरा'

'वालईं वाघी कवडी “हणईं, मरण तणउ भय “मनि नवि गिणईँ/ २५९ रतनसखेंना वाँसई राजॉन , पूरइ पाणी नह पकवान

"जूझईं सुभट सनेहाँ' सह, आलिम' मनि हुईं चिंता वह २६० आलिमसाहि' कहद-“सॉमलूउ', सुभट' सह को' सेला मिलूड।

गढ' ऊपाडउ' घरड सीघडा, 'पाडड 'भ्ुरज 'पविहँडउ “घडा॥ २६१॥

'सबल् सुरंग दीड गढ हेठि', देखी सकइ' जिम को' द्वेठि |

कोट तणा' ढाहउ' कॉगुरा', पाडड' खॉणि' घधकावउ* चघरा २६२

'जजजल-

२५६ वॉग 8४ बछुटइ विछूटे ०, विछूटे छ। बूटइ ०, तूटे 0, फूटे 8॥ अणी फूटइ 0, फूंटे 0, फाटे 8। फोजै[ 8। चिहूँ 5, चिहू ०, चिहठ 8। 4 दिस छ। तणी 8। १० झूझइ-वूझइ ०, मारे घण मुगलाँ विण सीच ४। ११ भुरज-सुरज मिढ॒ईँ उछाछला 8, भुरज-भुरज मिड उछाँछछा ०, बुरजिलुरजणि भिड़े उछाछला ०, भुरजे-भुरने ऊमा भीछ ४७

२५७॥ झाठईं 8, झाड़े 7४॥ पाडइ ०, पाडे एछ। ३१ पाथ 200, पाग 8। उंढाहईं 5, उडावइ ०, उडांडे ०, ऊढांडे 8&। गयण 780098 अवाथ 50, भवाथ ०। ताकरँ हाकई वाहईं" 8, ताऊईं हाकईं वाहि ताके हाके वादे ०, ताकि हाकि शम वहे तीर छ। मार्‌इ

'सुगला 9, मारईं मठगलर ०, मारे मुगल सवली भीर पाडे खाँन निवार्वा मीर ४।

] २५८॥ फोडे 78। ०? डैरा ०। सकई 5, सके एछ8। पश्सी 50, पैसी ०, कटक तणा 8 | नीकठी ०। करइ करे 7 वहु 70, देश 9। 5 प्रतिर्मे यह अद्धांली नहीं है।

२५०॥ "त्णों 8, कोटि त्णोँ सघछा ए४। कॉगरा 8छ। वीटी 0, वींदी छ। बश्ठा 8, बैठा ०8 थे वानरा 8० वॉनरा ०। वाल्‌ड 80, वाले ०, वाले 5। < वाघी 8, वॉघी कफ करेंडी 8. कोडी 70। १० हणइ 50, हृणे 79 ११ तणों ०8, त्णी ०। १२ तिल 8। १३ गणइ ए0, गंणे ए४। २६० रतनसेनि वौँसईं 8, वासे 0, वास वेंसि 8। राजान 9। पकवान ७, पॉणी ०, अन्न पॉन पूरे पकवोन ०, दिये वधारा करि सम्माँन ४। झूझइ ४80, झूझे ०, झुझे 8४। सनेहा 80ए5॥ आलूम ए5 | 2 २५४ २९७ | 0 २९८ 9 ३२३ | # ३५२ ] २६१ अलिमिसाह 5० आलम साह 8। कह्टे 98। सॉमलों ०8, सौंसली 0। सुद्दृढ 8 सब्र ४घ। कोउ 790, अब ए78। लेले 8। मिलो 08, मिल ५९ ऊपाडों ०, ऊपाटी' ०, उटाटो ७। १० दो दो ०, दे 8। ११ पाटो ०8, पादी ०। १२ बुरज 7फछ। २१३ हुवर्ड 9, छुयो ०, द्दोइ ०, छागी 5। २६२ १" दीयउ «७, ««दीयो-.«०, «दियो गढ़ हेठ ०, सुरँग लूगावो गठने हेठ 8० देखि ४। सक्रै ?४॥ कोइ ०, कोई ०। थ५द्वेढझ॥। ध्तणों०ण)। पाद़ो पाडै ०।

< कागरों कायुरा ०, कॉगरा 4 पादो प्राढाी ए४। १० ख्ाणि ४झ0। ११ धकावो धृुखावी ए८।

छठो ] गोरा वादूल प्रदुमिणी चउपई ४ैै

आखि-पासि पश्साएउ' कर, काखु' सरण थकी 'सनि डरउ? ,/ “४ लॉबी ले'नीसरणी दवरउ', एकी 'कउ रोढउ' ख़ेसवउ' २६३

छाख लाख स्यउ! रोढा' तणउ,, गढ़ ऊपाडि करी औंगणर्ड?.], खुभठ सह फो' घाया धसी, आलिमसाहि' हउ मनि' खुसी र२६७,॥...#..* रण-रसीउ' जोबई' रमि राह, हलकारइई' पूठईँं" पतिसाह ढीलीपति' ढोबउ' मॉडीउ<, 'पिण नवि कोट चिनी खाँडीउ' रूदण॥ +.. , सॉंझ लगइ' हु संग्राम, पिण नवि सीधउ' कोइ काम" , .., घणा मराज्या' सुंगल' मीर, अखिपति“ मौनी हीयद हीर'॥ २६६॥ . .. है 'आलिमसाहि करइ आलोच', छसकर माहिं हुउ संकोच |

व्यास कहइ-“संभलि खुलिताँण', कोट छीजई क्रिम' ही प्राण” २६७ 'छानड कोइ करउ॑ छल-सेद, मत परगासर्ड' मरम मजेद ॥._ -

“वात करावउ' कपटई इसी, 'साहि हड॑ हिव तुमझं ख़ुसी' २६८

बोल-बंध 'द्यउ माँगई' तिके, करउ॑ ख़ुगंद' करावइ" जिके'

विचलईइ' नही हमारी" बाच'', एँस कही ऊपायर्ड/ साच २६९

२६३ आस-पास 8। पश्सारों पवसारी ०, पैसारा ४। करो ००, करो ४॥ काशु 70, क्या वे ०। अब ०४ डर॒थो 0, डरी ०5। ठवो ठचो ०। एकेको ०, एकैको रोढो रोढे ०, रोढो 8। १० खेसवौ एफ

॥'२६४॥ सयो ०७, लेहु रोदों 8०, रोडा छ। रे तणो ०५ तणो ०४8, करो ०एड४ ऑगणो ०, ऑगणो सहुके ०, सुणी सहु ४।' आलिमसाद 5, भाल्मसाहि < हूवा 8, हूआ ०४8, हुवी ०। मन 850॥ ६:0५ रु६५ रिण-रसीयो 80, रिण-रसीयो 78। जोबै ०8। है रिण” 50, रिम” ए8। 'सिलकार्‌इ ४0, ' हलकारे 78। पूठइ 80, पूठें ०. ऊी 5। दिल्लीपति 8, 'डि्रीपति दिलीपति ०, ढिलीपति 2। ढौवी < मॉडीयर् 8, माडीयो,०, माडीयो ०, मॉडीयो'छ।॥ पणि..« | खॉडीयड 5, पणि“““कोटि. -खॉडीयो ०, पणि ..विन्द्ति खॉँडीयो ०, तिरुश्क गढ खाँडियो ८॥

२६६ लगे, 0, साझि लगे छ। २.हूवा ४, हया होवे ०, दोवे झ। सम ०। सीधो खीझे ०8॥ काम 800। भराया 8 मुगल'त 8, मूगल'न् ०, झुगलद्द 0, मूगल 8। < असुपति ४, असप्रति ०४) म्ान्नी 8घ00। १० हीयडइ 50, हारि ए8।॥ ११ अधीर ४, अह्ठीर 888 & २६० ३०३ ।० ३०४ 9 ३३० & ३९९ पे

२६७ 'आल्मसाद काश करझे आलोचे! 8, करो-««०, भालम साहि पत्यौ--आलोच ०। माहि छ०७। हूवउ 8, हूयो ०, हुवौ ०, हूयी 5) ब्यास ०७ क॒द्दि कहे ०, भणे झुलछताण 8, छुलुताणि' सुल्तान 54 कोटि ०) <'हीजे ०, लीजै & किणही एम] १०'प्राणि 80, प्राण ०। ' | *

२६५ छानो ०5, छौनो ०। रचो ०, करो ०, फरौ 3। मति 9। परगासो ४० परगासौ ०, परकासी छ। बात ०। करावो ००, कद्ावी 8 कप #, कपड़े 0, कपटें

साद हुवर्ड : स्थु. .8, हुयो«««सु...० -*हुवो दिवै. ०, आलिम हूमा छै..-४। ४२६९ घर्ड 5, यो ०, देउ % थो मागइ 8, मागि मांगे करो करो झ। . सुगषि 8, सुगंध ००, सौगंध 8। करावी ०, करावे ७) जिके_8 | विचले ०, विचलै 5।

५... नहीं झ। इमारी मै, अम्ारी ०, हमारी ०। १० बात 8, बाच 9। ११ 5पावजो ०, रो ०, उपादौ 7, ऊपाबो ४। , 7

हु

9२ कवि देमरतन कृत... [ खंड मुंकरउ महिं' पाकां परधौन', इम' कहवाडउ दिउ हम मौन |, तेडी माहि खवाडड' खौंण'' द्रेठि!! दिखाडउ+ तुम्ह अहिटलाँण॥ २७०॥, पद्मिणि' हाथईँ जीमण' तणी, मुझ्त 'सनि खंति! अछई' अति घणी , अवर काई'" मागई साहि", ' अल्प सेनखुं! आवह'' माहि'॥ २७१॥ एक बार! देखी पदमिणी, साहि' सिधावर' ढीली" भणी | 0... ऐम कही सुक्या' परधॉोन, रतनसेंन पूछया दे मान २७२ “/कहडउ किम आव्यउ तुम्हि परधान'?” तब ते चोलई-“खुणि राजॉन' आलिमसाहि' कहइ” छह ऐएम,- "“माहो-माहि करउ हि प्रेम” २७३ कवित्त

#हमर्स साहि परठव्या', करणकुं बाताँ' भछ्ठी

'जह तुम्हि" मानउ वात', साहि* वहि' 'जावइ डिहल्छी!

'करि पद्मावति दृष्टि, “फ्रेरि चीतोड जि देखुं।* |

/विश्नह कोई नबि करूं/, *चाँह देदइ सब ही रखुं/। *गलि-छाइ केठि पहिराइ करि*, बहुत मया आलिम' करइ*। “राड रतनसेंन | खुणि बीनती"', पुहर माहि दुत्तर तरइ”॥ २७४

२७०॥ मूकी ४0०), मेर्हों 8। माँहि झ05, माहि 9। पक्का छ। परधान 80 एम ०४। कहवाडो 5, कहिवाडो कहावी ए5॥ थर्ड 8, थो ०, दो ०, दियी 8। < मान 70 ५९ खवाटो खवाडों ०, खवावों 5४ १० खाण 5। ११ नजरि 7, नजर।०, निजरि 0, निजर 8। १२ दिखाडो ०, दिखाडी ०, दिखावी छ। ११ ठाण झष्ठ।

।.9. २७१ पदमणि 7, पदमिन 8। हाथि ०, हाथे ०, हार्थिझ। जीमणि 70॥। मनि ०।

हा खाति 98 अछि ०, भगछे ए8। कॉई झ8। मागई 8, मागै ०, मांगे ह&॥ | साह झघ0। १० अल्प ०0। ११ 'स्वु 8, "स ०, सेंनि' ०। १२ भावईं 98, अबि ०, ; भावै ०८8

* ॥२७२॥ १बार 79। पदमणी 0। साह ४08। सिधावे 98। दिलछी ४, दीली ०, ढिछी 9 & घणी 800, भणी 5 मुँक्य् , मूक्यों भूकयो 0, मुक्या ७। < परघान 509 | ९...पूछह राजान 50, रतनसेनि*पूंछे राजान ०, मिल्या जाइ रतन'* राजान 5। श्धई ' ३०५॥ 0३१० ३३६ & ३०५। * ॥2७३॥ कह आयो तू परधान 5, कह आायो तू.«०, कहो आयो तू ०, कहोजी क्यूं आया ««8। तत्व ०। बोलइ 50, वोले ०छ8 चतुर 8078। सुजाण 20।॥ भालमसाइ 80, - आलिमसाहि ०, आलिम वलू 58। कहै छझ। <छे 78। माहो-माँहि छझ। १० करो 50, | करों ०। ११ हिवि ०, हिवे ।, | / २७४ ॥, १"“पठात़्या 5,"“पठावीया,०, हम-+ ०७ हमहिं पठाए सादिझ॥ २कौ०।- बातों ०, वातोँ झ। जे 50, जे ०, जो ४। तुम्द 508, तुम ०। मानो मानो ०, मानहु 5 बात ०, वाच 8। साह छ808। वक्ति 80, वलि ०, फिरि छ। १० जाइ 4०, जावे ४। ११ दिल्ली ००। १२ ..दीठि 8, दिखलावौ। पदमिनी 2। ११ फिरि सह्दू गढ कई देखुं ४, , फिरि सहू «के « ०, फिरि सब गदकूँ...०, और सव गठदि दिखावी छ। १४ कोश «करों &% * कोइ---करों बिभ्रह को ««58। १५ वाह देउ सवदि इरघु 5, वाह देओ सवही इरपौं ०, बाह दे सवंही इरघुं ०, वाद दे ग्रीत वढावी 8 १६ कठ-««4,. “लाईं- ४, ... लाये. -पदिराव ! »*«०,« मिलहि सिस्‍्पाव दे झ॥ १७ आलम ०। १८-करईं 5, करे 9, करहि ह5। १९ राव रतनंसनि-«बीनती ०,-«-सुनि ..छ8] २० माँद्ि ०, माहिं४। -२१ तरेई 5, तहै ०, तरहि 5 4 प्रतिमं यह कवित्तके नीचे दिया है * * 20 मन

4

कु

छठो ] गोरा चादर पदमणी च्रठपई ७३

“वॉक गढ' चीतोड' सकति खसुरताण' लीजइ . ऊटठाईइ' वुसाफ़ बोलि' ज्यु 'राउ पतीजई। ' दंड ' द्वृव्य लीड" देस पर दुरू नवि गाई। ' नही हम गढकी* चाउं राउकुमरी” नवि “ब्याह” अलावदीन खुरतांण'' कहि*- “राज माददि नवि' आहड्डे॥_.+ राउ रतनसेन" मुझकु मिलइ , नाक - नमणि करि बाहुड॥ र७्५ता “की उरपंग खुलिताँण', मंत्र-एइ सु उपाई'। मुझ्क गढ द्खिलाउ,' आप' जनमंतर' भाई ) 9. हूँ” कृत ऋम्मज” जम्म, 'सत्रु अखुरों /घर पौसी |. - « तु पूरव/ पुन्य!' प्रमाण, “हुड चित्रकोट॒ह' खामी''। दोह कादह अछद इक आतमा, 'आवबि जम मेल थयर्ड* | *खीमकरण-भुज-मंत्रछु राजाचयण तिम भय २७६॥ '

मर चोपई चोल' बंध थु साचा सही, विचलई वात' हमारी" नही नाक-नमणि' करि/'कोट' दिखाडि*, पदमिणि'-हाथई”” मुझ जीमाडि!'॥ २७७]. पद्मिणि/ नारि निदालण,तणउ, मुझ मनि हरष' अछई' अति घणउ/। अबर कौई मागइ? आथि, जीमे' जाऊँ पद्मिणि' हाथि २७८

,॥ २७५॥ चॉँको 50, बाकी ०। चीत्रोड 50, चीतौढ़ ०। गति 800। झुलताणि -म, . 4 सल्तौंनि सुल्तोंण ०, लीजे ०। ऊठाश्यह 5, उठाईगै ०। ७जु ४, 'ज ०, 'तो ०। ' राज ०५ $ प्रतीजई 88, पतीजै 9। १० द्रव्य ०॥ १६ नहु 800॥ १२ लीयु 5, लीयु 00। नहि ०। -१४ ६हंम 9। १५ 'को 80, "कु ०। १६ चाजो ७। १७ राजकुमरी म०, « राजकुमरी ०। १८ नदि 800। १५० ब्याहूँ ०। २० सुठतान 9, सुलतानि ०, सुलतौँन ०। कक २१ कदइ 809 ) २२ राजमहल ०। २३ आहुडड 9। २४ रतनसेंनि ०। २५ मिलईं म, « 'मिंलइ 0, मिले ०। २६ तर नाक . 5, तो नाक...० त्तौ नाक... 7" २७ बाहुडठ 9। प्रति यह पद नहीं है।' 709 प्रतियोंमें यह पद चोपई सख्या २७८ के 'नीचे दिया गया है।

* २७१ 2 ३१५। 0 ३१६॥ 9 ३१४२॥

! २७६॥ कहदइ राण सुलताण 5, कद्दि राण सुल्ताण कहै रौंण सुल्तोंगें वात तुम्द एम कहाई'फ, बात तुम एम कहाई ०, बात तुम्ह कहाई ०। "कर 80। दिखलाइ 8, दिखलाइ ०, दिखलाय ०9। आप 4, आपि ०। जनमतरि 5, जनमार्मितर ०॥ मइ 5०, भै०। < कृत कस 80, क्रतक्मे ०। अमिहर 8500। १० जनम 7४00। ११ घरि 509]

' श१२ पाम्यौ ०, १३१ तू 8, तू ०। १४ पूर्व 0, पुरद ०। १५ पुण्य 07, पुन्य 8। १६ प्रमाणि 5, प्रमोँणि०ए०। १७ हू 40, हवर् म, हुवी ०। १८ चित्रकूट 70। १९ खांमी ०, सामी “२० दोई काई एक आतमा 8, दोई काई एक जीव आतमा' ०, दोई काइ जीव एक आतमा ०, दोय

काया एक हम आतमा 8। २१ दुनिया मादि मेछठ थयउ ४, दुनियाँ माहदि मेलो थयो ०, दुनिया

' माहि मेली सयो ०। २२ मुझनमंत्र सुणि ४0, खेम करण मुझ मंत्र सुणि ०। २३ राजि वयण तब मानीय् 5, राजि वयण तव मानीयो ०, राज-वयण तब मानीयै

| २७७ -१ बौल 0०। रु 3, थो देउ ०, थो 8। ३१ विचलि ०, बिचले 9, बिचलै 8। बात ०।

-. हमारी 702। नॉकि" ०। कोटि ०। दिखालि ४०, दिखाए &। पदमणि ०, पदमिन ४) १० ह्ाथइ 8, हाथि हाथे ०8) ११ मुझद्द ०8४। :१२ जीमाड ड। कौ रे०८ ॥" पदमिन 0, पदमणि ०।4 तणो तणी ०ए४8। हरषि 0, हर्ण 9। "गे एड। : [* ». घणो, 8, घणौ-08।, काइ 00। , मांगे ०४। -८ खाणा ४00, खॉंणा-2४] ५९ खुरदम 5० खुरम ०, खुस है, प्रतिमे यह पद यहीं है। |

पं

] ट।

भय;

है बन

४४ कवि हेसरतन हात [ हंड

भाषह्ठो-साहि फरउ' संतोष, शखउ छिच घथध॑तउ रोष 7! | घछतऊ' भूपषति' घोलइ राण,' माहरा' कथन कहड' खुलताण*॥ २७९ ॥| श्तनसेंना कहि-'सुणि) परधॉन,' वात करता वाघद वॉन"।

पिणि' जउ" प्रॉण” दिखाडद'' भूप,' तउ/ नवि कोई रहदू रख-रूप'/॥ २८० बात! करह जउ आलिमसाह', तउ हम मिलवा घणउ उछादद।। 'असपति आवह अंगणि वही, प्रापति विण क्यूं पामों सही २८१॥ 'वोल बंध थइ साचा साहि,' अछूप सेनसु आवहि माहि'।

अर्ह' घरि आइ 'अरोगउ घॉँने, माहो-माहि" वधई' ज्यु" मौन” २८२॥

[ सातमों खण्ड |

परधाँने'! पूछिड' पतिसाह, “वात वंणे' दीधी' निज वाह”?

आलिम' खुस करइ' सहि झूठ, मुँहि! मीठउ मन भाहे दूध २८३ राघव व्यास कीउ! संत्रणउं,' रतनसेंन' दप' झालण" तणउ |

जंप-मनि कोइ नही छल-सेद, खुरसानी' मनि अधिकड खेद २८४ 'ऊषघाडी मैल्ही गंढ-पोलि, मिलीया' मॉणस' ठोछा-ठोलि' आलिम' साथि लीया असवार, लोहइ' लुंब्या: प्रीस' हंजार॥ २८५॥ *

२७० | करो ४, करी ०४। . हिवश वर्धता रोस 5, राखो हिवि वर्धतों रोस ०, राखी हिंगै वर्धतै। रोस॑ ए, हिव॑ मेटी अति वधती रोप 8। बलतो वलूतोौ ०, वठता झ। ४. बोर सैंण ०, कहे रतन राजॉन 8। माहरी 778। कहो कही ०, सुणी ४। सुलंताणि ०, झुछ्ताण ०, परधौन 8। « अतिमें यह अंड्ोली नहीं है 2२७० 9 ३१४। ३१५॥ 7 २४१ | ४१० | १८० रतनैंनि ०। कह 80, कहे 70। सुण ०, सुनि 8। परधान 8. वात 50, 5 बात 090। करता 70 ७वावै ०। धान 5, वान ०। ५-८ इण जाते बहु वापे वॉन घ) पणि 509, परि 8छ। १० जो ००58। ११ प्राण 50, जोर पड १२ दिखाडे 9, दिखाबै 8। १३१ साह ४। १४तो ०वे रहे -०, रस न॑ रहे वलि लागे दाह ४5। २८१ बात 7, इम 5। करे ०, करता झ। जो ००8४। आलिमसादहि 8, आलम साहि ए४। ५-७ चो० २८१ का दूसरा पाद-अलप- 8008। ५-६ और पाद 807४ प्रतियोंमें नहीं है। ३८२९॥ १५ ४09 प्रतिर्मे यद्द पाद नहीं है। 807४ प्रतियोंमें यह २८० का अतिम पाद है। _स्थु आवइ « 8,.. 'सु आवश ०, सेनिसु आवे ०,.---सु आवै. 5॥-३ मह्य ०0। आरोगइ 5, आरोगह आशेंगे ०, मारोगे 8। माँहो-मौँदि 08॥ ८& वघइ 8, वे ०, वे 8। जे 8, ज्ु बोही ०, वहु 8 4 २७६ | 8 ३१८।॥ ३१९ | 9 ३४५। ४१२६ | २८३॥ परधाने 8, परधानि ०। पूछूयउ 5, पूछयो पूछे 2। १-२ तेढी राग तथा परधौन ४। बत 00) घणी ४0, वणी ०। दीन्ही ०। वाहि०, वॉहिं ३-६ दीघा बोल बाँह सुछतान | आलम ऊ०। स्थुस 8। करै ए8। १० आहूठ 50 सहु झूठ ०) ११ मुद्द 80, मुखि ०, मुख 8। १२ मीठो ०, मीठा ०, मीठी 5। १४ भादि ०, माँहि 8। १८४ कीयों कीयी ए४। मत्रिणों 0४5, मंत्रणो ०। रंवनसेंनि०। श्रप , नैडे। झेलण 85778। तणो ०४8, मणी 8 खुरसाणी 5, खुरसोंगी ००४5 अधिकों क, इधकी ॥२८५॥ उधांडी मेल्ही गढनी पर्डलि ४, उघाडी 'मेल्ही गढंनी पोलि उघाडी तंव गठनी पौर्कि /। मिलिया माणस #०। "टोल ।' आलम ।' किया म60॥' लौहे < छन्‍्या म०, दुल्या तीस म०एप यह चोपई प्रति नहीं है।.. 7

खीतंमी ] गोरे घांदुल पदृंमणी चउपई ४५

कवित्त

गदईँ चंड्यूउ' खुलिताण,' नालि' उंवरां' खबासौं भमर एक' भुल्लि' गंउं,' चेद ज्यु" भयउ उजासो। 'ए चंदा खाइकुक,' “दान उर मानस मेगल' | श्यक चंद चंद्णउ, '"सेज सोदहद रायों घर ' फुजदार' सबे'' हाजरि खडे, गिरि। पद्मिणि/' पाउंद्धरइ अलावदीन खुलिताण' खुणि, आलिम सिरि छत्ताँ घरद' २८६॥

चोपई रतनसेंन' सरल भन मांहि', मेत्री तेडण' मेल्यउ' साहि। “साहिव ] आज पधारउ' सहि”, रतनसैंना तेडर” गहगही २८७ व्यास! सहित साथईं' ततकालरू, माहे' पेठा' सह समकाल फछा' इसी” का“ कीघी सोइ, पदसंतर्' नवि दीठउ” कोइ २८८ आधी माहि' इआ' एकठा, तव' सगला' दीठा खामठा। रतनसेंन' मनि खुणसिउ' सही, आलिम* आवबिउ' अंगणि/ वही २८५ न्पां पिण' सेना सगली' सार, असवारे' मेल्दया/ असवार। ' शज तुंगे-तुंग मिल्या' एकटा, जाणि', कि दीसह बादल घटा २९० आलिम पिण' सकद आगमी', सकद जर्प' पिण' आलिम'" गंमी आलिमसाहि' कहई” “छुणि भूप, कौंद तुम्द' मेलड' कंठक संरूप सण ११.

च्ऊ

२८६ गठ 800। चडीयो चढीयौ ०।॥ सुल्तँण 90 साथि 9। उमराव 50,

. अमराव ।' खंवासा जेम ४00। भूछि 80, झुढठी ०१ ५९ गयर्द ७, गयो

00। १० जो 79) ११ भयो भयो ०। १२-१२ पच लाख इक दीयछ ४80, प॑च ठाख एक

दीबो ०। १३-१३ जोति तसु अतिहिं सुदिनकर म0०। १४-१४ चौंदणर् जणु अफ्ताद 80,

चेंद जेम अफुतांव ०। १५' राय घरि ४०, सेझ सोहे राय घरि ०। १६ हुजदार 509॥

१७ संवे ०५ १८ गिर 700]। १५९ पदमणि 9 ३० पाउ उधरई ४०, पाव उधरै७।

२१ सुलताण ए80, सुलतौन ०। २२ आलम 9०। २३ छप्त 800] २४ धरै 9। #0 प्रतियोंमें

यह चीपई संख्या २८७ के नीचे दी गयी है, 5 प्रतिर्म नहीं है। 4 २८० 9 १२४ ॥,.ए श्शदा 5 श्५१।

गृद७ कै रंतनसेनि ०। 'माँहिं०, 'माहिं ०। हर तेडन ०। मेल्यो मेल्हो ०॥ भाजि ०। पधारों 0, पधारी ०, तेडे 0 गद्दिंगह्दी 5 & प्रतिर्मे यह चोपई नहीं है।

॥२८८॥ १.व्यास ०। साथे 800। तत्तकालि ०। माँहे 8, माँहि ०। पश्ठा 80, पैठा

कली ४, कक 0, कछ 7.) एडनी ०। काई ४00) पहसंता 20, पेसंता ?। २० दीडो दीठी ०। यह नहीं है

॥२८५॥ मादि 8 हुवी 88, हुया ०। 3 तब ०। सगलके छत सॉँमठा | रतनसैंनि ०। खुणस्यो 50, ख़ुणस्यौं ०3।, झालम ०। श्ाज्यड 5, जाव्यों ०, आयों ए8। १० अगणे 8, अगण ०। ११ बही ४०। ,

२९५७ )॥ ह्रंप 9) पणणि #0०0४8। सघल छ। अंसवारें 8, असवारि 0। पिंलीया 800।

बस हुआ ४। जाण कि 5, जाणिक ०७, जौँणिक ०! दौसे ०, उत्तरी 88 बादल एमए, द्लिए

5 १९३ पणि ४0०४। संकें ४०। औंगमी 4। पत्रप 9), ५-आछम ए5। "साह 20०।

0 उकेहंफंब। , “' दलों 0 मेरी गम हों की? 3, 2 दम वृक्ष हंन्दें 2 १० मेल्वई

8६ “कवि हेमरतन कृत ' (खंड

हुं' इहाँ विढवा आविड नहीं, गढ' जोएचड जाइसु सही

म॑ँ घरड' मन महि! खोटउ' खेद, मुझ" मनि कोइ नही छल-छेद्‌”” २९२ नप' जंपइ- “आहिमो! अवधारि', कटक' कोइ मेल लिगार | है जई' तुम्ह वचन हे हिच इस, कटक करी नह करिदुं किस? २९३ पिणा तईं आण्या तीस हजारो, क्रिणि' कारणि' एँचडा असवार!? तुझ' मनि कौइ सही छद्व बात, धूत पणारी' दीसइ धात” २९४ आलिम॑ जंपइ'- "ज्र॒प] अवधारि', प्हुणडो नह इम पचारि!।

थोडा' हो अथवा हो घणा, झेली लीजईं” निज प्रॉहुणा" २९५॥

चॉन' तणड' छट्टे! आज' खुगाल", घणा-घणा कौइ' कह भूआल।

अम्हि' आव्या था जिमवा सही", विहवा कारणि आव्या नही” २९६ जीमणा रड॑ जांण3' संकोच, खरच' करंताँ आवद खोच'।

तड'* बलि पाछा मेल्हों णह*, जिम भाखउ तिम राखो तेह? २९७॥

भूपां भणदई- “संभलि पतिसाह', भरई' पधान्या' आलिमसाह'।

चलि' तेडाबु” जौणउ' जिके, पिण' रूघु वोछ मा वोकड/ तिके* २९८॥

२९५२॥ १...आयउ..«४, हू...आयो ..०, हू-- विढवा आन्यो«««०, मैं लढनेकुं आया नही 8 २.५जोह जाइस्यु...8, . ज़ोइ...०---जोश ने जाघ्चु---०, गढ देखणकी है दिल सही 8घ। श्.न ह5। घरो 008।4 माहि 5, माँहि मैःए8] खोटो ००, खोदा 5। ७.«“मेंद 80० मेरे मन॑ नाही छलन्‍्मेद 2॥ गे 2.

२५३१॥ शचन्रप ०। जपै एछ॥। आलम ०। अवधार ०। एचडर्उ कटस्युं नगर मझारि 5, एवंडो कटसु नगर मझारि एवंडो कटस्थु नगर मंझारि 0, छसकर क्युं छाए हो. छारि झ।

, , जो,. हृव , इसउ ७, जे तुक्ष «हू इसा ०, जो' तुम्हे वचन हु हिवै इसउ ०, पहिली तुम्द 4६. ' फुरमाया साहि छ। करिस्यो किसउ ४, ..करिस्यो किस्यो ०....करीनै करिसी किसी 9, भलूप

सेनसें आदुं माहि 8 दम,

॥२०५४॥ ए..-तीस --3। तश आँण्या तीस---०, ८ए तै--वीस ०, भव तुम स्थाए तीस«««8 किण 00, किस 8। कारण खातर &। एवडा 800, इतने 8। ५««काईं ««-कूडी «3» केडी ««०, -«-काइ कूडी छे वात ०, हल तुम्ह मन कूंडा असमॉन 58 घुत्ते...दीसे न, दिलीके ठग हो घुलतौँन 8। ;

२९५॥ माल्म ए8। जयै ०, जंपढ्ढगि त्रिप 0 अवधार ०, राजोन ४। प्राहुणटों . झ०

पाहुणछाने मंदी पचारि ०, घरि आयोँ दीजै वहुमान 8। ८६ थोढा होह होश अथ घणा 80, थोढा होवे दोवे घणा-एछ। लीजश 80, लीजै 78] < प्राहुणा 808, पाहुणा

॥२९६॥ घान80। तणो तणा 08) कछे 7छ8। ४आजिए। सुगाल 08। कूया 9४8। करो ०, करे ०, कहो 25) भूपाल फष्फ्सम। अम्ह . 8, अद्षे इंम आया...०, हम मिलवा आए ऊवही 8 १० विढवा आया ««०, लडवाकुं आए है नही 5 |

' ॥२९७॥ "रो ०8, रौ 5। जाणे जाणों ०, जागो झ। ३...उपलै---०, ««तणौ आँगौ मन - 8 तउ पाछा मेल्द्यवर् एड 5, तो पाछा मेलावो एद्र ०, तो पाछा मेल्हौड एह 2, कहो जितने फिरि छसकर जाइ ) ५.**राखरउं तेद्द 8, . भाखो---राखो तेह ०, «« “भाषो...राखु. «०, राखो सोइ तुम्दें दिल भाइ 8। हि

'॥ २५८॥ राणों 50, रॉण ०, राई 8झ। भणि ०, भणै ०, कह्ै 5। पतिसाहि 0! भलि ०, भले 78। पधारे ४। आलमसादि ०, आलिमसादि ४। वलि #। तेढावर्ड 8, वेडावों ०, तेढाबी 28। जाणरउ 5, जाणो जाणी 7, जाँणी 8। १० पिणि 8, पणि ठ08। शश्न्न »। ३२२ बोलो 00ए8। १३ बक़े 80, वके ०8॥ & २९२। ३३२४0 ह१५॥ 07१६५ | 2 ४१२९५ |

रे

सातमो ] गोरा घादल' पदमिणी चडपई ४७

परिघल पाणी परिघल धान, परिघल घोल घणा पकवान

जीमर्॑ भोजन भावद जिके, पिण लघु घोल बोलउ' बके” २९९

बोलि'-बोलि बे हुआ खुसी, दृथे ताली दीधी हसी माहो-माहि' हु" संतोष, दलीया' सगला मनना दोष ३०० र्तनसैंन' हिव निज घरि घणी', भगति' करावइ' भोजन तणी हे पद्मिणि नारिः प्रतईं जई कह२*,-“आलिमरुं/ हिच जिम रस रहई ३०१॥

तिण' परि भोजन भगतई करउ॑', जिम आलिम भनि हरपइ खरउ” | न्‍ पद्मिणि नारि कह “प्री | खुणउ, निज करि करिखु हु प्रीोसणड”" ३०२॥ घट रस' सरस' करूं रसवती, प्रीसेसी' दासी" गुणवती है सिणगारउ सगली' छोकरी“, षॉँति अछद' जड'” तुम्ह'' मनि खरी” ॥.३०१॥

दि सहस दासी रूप निर्धानं, पद्मिणि' पासि रहईं' खुविधौन'

रूप अनोपम रंभा जिसी, काम तणी सेना हुई तिसी ३०४

आसण'*-बेसण सगला तेह', करसी' कौम सह ससनेह'। '

सगली' साकति-करि सावती', माहि' तेंडाविउ! डिह्लीपती' ३०५॥

परिघल' परठा दीसइ घणा', जाणि' विमान अछईं' सुर तणा"।

उर्वड्धि ठडंडि' दीसई' पूतली<, घालईँ" वाउ' चिहु/ दिसि चली ३०६॥

२९९॥ 70758 प्रतियोंमे यई चोपई नहीं है। ' / ट्रआ

॥३००॥ बोल ..8। हूया ७, हँया ०, हुवा ०। माँहि 0। हूवउ 8, हयो ००, हुवो 8 राश तणै मनि मिटियो रोप 8। हा ३०१ रतनंसनि धरि विधि-विधि घणी ०, रतनर्सेन गया महिलों भमणी छ। ,२,जुगति 5। करावी ४800, करावण 8। «प्रति इमि पदमणि. «प्रतै .कहै 0, पदमिण प्रति, राज़ा « क्यो 8 ५.*-स्थु..«७, .«सु.- आल्मसु हिवे « रहे ॥३०२॥ तिणि «भगति . 8, तिणि भगति करो ०. भगति करु ७, भोजन भगति करो हिच इसी 8। /. 7 थणउ 80, आल्म -हरिषै घणु ०, जिण दलीपति होवे खुसी छ। पद्मिणि 0, पदमणि ०, पदमिण 8। कहे ०४। प्रीय ०0। सुणो 0०8, सुणी 0। .करू 58,..-करू « प्रीसणो ०... करहु प्रीसगोी 0, हु हाथे करू प्रीसणो छ। पा

३०३ नवरस 45800। सरिस ४8 करउठ 8, करो करू 7, करिस प्रीसेसईँ ४, कि ओऔक्षसइ ०, प्रीसेसे ०, प्रीससी 8४ नारी सिणगारू ०, सिणगारौ ०, सिंणमारो & ;क्‍ सघठली ०७) छोकरी ०। गछईँ 5, भछे ०8] १० जे 700, जो 8, ११ तुम ०॥

३०४ दो 50, वे ०। निधान 800 पदमणि ०, पदमिण ४। रहै ०5॥ सावधान 807, सावधान 8 ।. होइ 809, हुये ४। & २९७ | 8 ३१९ ]0 ३४० | 9 ३७० & ४४८ ॥/

३०५॥ १...बश्सण.. 5, .वैसण .०, आसण बैसण विधि विधि किया छ। काम ४8, कैम-काज + * *०, ऊपरि छाया डेरा दिया 8। .--रिसवती 8, .साखति 2॥ माहि 8 ,, तेडाव्या हे 8098॥। & दिललीपती छ0, दीलीपती ०, दीलीघणी ॥'३०६ परधल परिगह «०5, परघल परिगह.«« धर्णां ०. परिगह्ट दीसे ..०, देखे साहि मदिक सतखणा तोँणि जाणि 8। विमॉन ०, विमाण ०, विर्मोण 8। ४,अछदश 48, अछे ए8। सुरतणोँ 0०5। ठोडि-ठोडि 2008 ) दीसइ 0, दीसे ०8 फूतली 5। ५९ घालइ 7, घालि 0, घाढे 78। १० बाव ०, वाव 5] ,११ बिह्ूूं ०॥ १२ मिली 8005।

४८ कवि हेमरतन छत. ., [खंड

अनुपर्मा रतन-जडित आवास, अगर कपूर अनोपसम वास |, ,, चिहं' दिसि दीसईं चित्र अनेक, मंडप महल महा खुविवेक॥ ३०७॥ तिहाँ आबी बेठो' पतिसाह, मन सहि' आवइ अधिक उछाह'

पद्सिणि' पॉहईँ अधिक पहूर, दासी आवि' दिखाड़इ' नूर ३०८॥

इका आवी वइसण दे जाइए, बीजी थार मैंडाबश ठाई।

ज्ीजी आबि धॉवाडइ हाथो, चोथी' ढारूइ/ चमर सनाथ ३१०९

दासी भव इम जू जूई, आलिस सति अति विद्धल हुई

#“प्द्मिणि' कह, पद्मिणि, सरिखी दीसइ सहु कासिणी/” ३११० व्यास कहई-'संभलि' सुझ धणी | सहु' दासी पदसिणि' तणी | चास्वार' स्थुं झबकउ' एम ? पदमिणि इहाँ पधारइ' कैम”? ३११ - “म्रुष्टि! करी रहउ' साहि' खुजोंण', “मं हवर्ड चलि-चलि विकल अयौण'

एप आवहई ते सगली दासि, प्रमदा पदमिणि' तणी खबाखि” ३१५॥

देखी' दासी रंभ समॉरना, आलिम-मनि अति हर गुमॉन

“ज्ेहनई' दासि अछई एहवी', ते" फहंझ' आप हुसी केहवी'”? ३१३

३०७ अनोपम ०, अनौपम 2, 'नूप्म 8छ। आवासि ०। .अनूपम «8, »««अनौपम «०, अगर घृूप कपूर सुवास 8॥ ४. दीसइ-.« 7०, «««दीसै...०, चित्रसाली रंगित' चित्रॉम छ। महिंल महा सुविवेक ०, विचि-विचि मीनाकारी कॉम रू

३०८ बइठठ 8, वश्ठो 0, बेठो ०। + "मइ झ0, सन माहि 9। भाव ०] उत्साह ०॥ प्‌दुमणि ०। पासई 8, पासइ ०, पासे 8 पुदूर ०। भावद 5, आवि 0, भाई 7। दिखावै 09। # प्रति यह नहीं है

३०९ एक वैसण दे जाय २. मढावै घाय ०। धुवाटइ 7० तीजनी आय धुवाड़े 9। चधी 80, चोथी ०। ढोलई 9, ढाढे 5 प्रतिमें यह नहीं है इसके नीचे 80 प्रतियोंमे ये दो चोपइ्थाँ अधिक हैँ-

(१) इश्क सखि मेवा मिठाई घर्णी, इक सखि माँति वहु (वहू ०) सालण (साल 0) तणी | इक सखि साग सगएती (समोती ०) थार, ले लेश ऊभी सुदरि वाल़ि (२) इक आणह खूब धर्णो (घणा ०) पकवान, इक आणइ गुरडी देवजीर धान (धान ०)॥ इक आणइ हलुआ साकर तणा, पातसाह (पातिसाह ०) मनि रज्या घणा

]३१०॥ आवइ 804 ०? जू जूई 8 विकलत थई 80॥। पदिमणि ०। कॉमिणी ०। 4 ३०३ | % ३४७ | ३४८ ए5 प्रतियोंगें यद्द नहीं है

॥३११॥ कह #, कहि ०, कहै ०४॥ सुणि दिलीधणी 85। चुद ४0, सव्‌ ०8। पदमणी ४9, पदमिण४छझं। बारवार ०। सु सु क्या 58। झवको 8, जवको झवकी 28। पदमणि ०, पदमिण 8। पधारे ००, पधारें 8

॥३१२॥ मुष्टझए0। हो रहो एछ साह मए8। चुजाण ७, सुजॉन 8। मम होवउ बलि विकल अजाण 52, मम दहोवो वलि विकछ अर्जोण मति हो वलिचवलि विकल अजोण ०। भावद् एझ00४8॥ पदमणि ०, पदमिण

३१३ १२ -««रूप-निधान 808, रूप-निर्धोन 0, दात्ती रूप"विलासी देख 8। , हृवऊ शुमान 8 हुवों श॒मान ०, वार-चार चिते अनिमेष 8छ $ अछह « ०, जेहने छे.. ०, जेहनी दासी छे एदवी 8! ४०«-कदु-- -आपि हुस्यइ --05४,.. ऊद्दो आपि इुसल्म३---०, , कहो इसके नीचे 809 प्रतियोर्मे वह कविश्त

आगलि बहुत उवासि, नारि बहु पोइस करूंती पाहजि सर गेच-च्यारि, च्यारिसित चिद्द दिति र॑ती

सातमो ] गोरा बादल पदमिणी चडपई

व्यास कहई'- सांसलि' सुलिताण'] पद्मिणि' नारि तणा' अहिनोण'* | झलकंती" जाणे चीजली<, ऊुंदण-कंति जिसी ऊजली ३१४ अंधारइ! अजूआलड' करइ, देखता" तिशुवतत मन हरई परिमल कमल सरीखड' तास, भूला भमर छंडइ" पास ३१५ ते आबी छानी किम रहई', खुणि आलिम!” इम राघव कहई आहलिम' एम कहई'-'खुणि व्यास! धन्य | धन्य] ए' सगली दाखि॥ ३१६१ पद्मिणि' पासि' रहद' नितु जेह", निजरि' निहालूईंँ पद्मिणि' देह किण' परि निजरि हुइसी पद्मिणी””? व्यास” कहइ -सांमलि मुझ घणी“ ॥३१७॥ डंचउ' दीसद आवास, इ॒ह छद' पद्मिणि" तणउ' निवास | रतनर्सन राजा इहाँ' रहई,पदमिणि विरह खिण इक नवि सहइ"॥ ३१८॥ कवित्त लखद्द' लहई'.पस्येग', सडंडि' सतलाख' खुणिज्ञई गाल-मस्री' सहस, सहस गेदुआ भणिज्द' तस” ऊपरि दोवटी'', मोलि दस'' छाखे लीघी' | अगर कुसुम” पटकूल", सेजि' कुंकुम पुट दीधी" | अलावदीन खुरिताण* सुणि", विरह” विथा४ खिण * न्वि खमई'। 'पद्मिणि" न्ञारि सिणगार करि', रतनसेन सेजहँँ” रमइ ३१९

चमर ढलइ चिंहु पासि, भमर वडु रुणझुण मढइ सुर-नर पिष्यिय रूप, गरव मनि ततखिण छडइ हस गमणि गय गेलिस्यु, ठमकि ठमकि पग ते ठवर्ई कहें राघव-सुरुताण सुणि, पदमिणि गति शणि परि हुवई बहूत ०, बोडइत ०। खास ००। वहू ०0। पोईंस ७। करती 8 ६& पाछिछूफ सइपँच 5, सयपँच चिह्ठु ०० ३१४ कहि 0, कहे ०। सभलि ०॥ सुलताण 8, झुलताणि ०0॥ पदमणि ०॥ तण 9 #& अद्दिनाण 500 झवकती ०। < वीजुली 8, बीजुली ०, बीजली प्रतिर्मे यह नहीं हैं ३१५॥ अपारे अधारै ०+ ३२ ऊजवालो ०, ओनवालो ०। करईं एछ, करे 0। देखता 8०। म॒नि 9) हरहं 5, हरे ७) सरीखों 0०0) बास ०१ ९५ छडि छड़े 9। १० पॉँस ४80, खास 7 9 प्रतिमें यह नहीं है ३१६ रहहें छ, रहे ०। आरूम ०। कह 8, कहे ०। ब्यास ०। धनि-पधंनि 5०, घन घन ०। ६8 एते 800 | & ३०९ ३५३। ३५४ ३८५ 5 प्रति यह नहीं है। 3१७ पदिमणि ०, पदमणि ०, पदमिण 8 पासइ रहई 80, रहै 78। निति ०, नित नजरि 8, नजर ०। निहालइ «0, निहाडे 7४ नजरि होसी -8, होइसी

«0, किणि -होसी. ०, किस विधि हू्दे 5। < कहि-सभलि ०, ज्यास कहे « ०, कहै-'सुनि दिली घ।

३१८ ऊचरछझ 5, ऊचो ०, उचों ०, उच्ो दीखें£ 8, दीसे ०8। ईहाँ झ, ईहा ०, विह्दों छा छईँ 9, छे 98] पदिमणि पदमणि ०, पदमिन छ। तणों ०8, तणी 0। रहईंँ ४8, रहे ०, जाइ ४। विरद क्षिणशइक सह ४, पदमिणि विण इक खिण नवि रहइ <, पदमणि विरद्द खिण एक सद्दे 9, समर कमल जिम प्रेम सुखइ |

गे १५ १-दश ७, दस ०5, दर 0॥। लहैे ए8। हे सेज ०, पिलय ०, पलिंग 8 सोडढि 78। सतकक्ष 8, सतलख्य ०, सत्तरुख ०, सतरख 8॥ सुणीजईं 8, सुणिजइ ०, उुणीजै ०8॥ भ्

५० कवि हेमरतनं कृत ( खंड

चोपई अ्ड॑र' देखइ पदमिणि' कोइ, जो' देख" सो गहिछउ” होइ पद्मिणि' पुण्य” पसे' क्यु/ मिलइ!, जिणि” दीठी* नारी” अब गलूह?॥ ३२०॥ इम ते व्यास अन्ा सुलिताँण , वात करईँ' बे चतुर सुजाण'। तिणि' अवसरि पद्मिणि* चीतवइ', “दिखु' अछुर किसर्ड!”- इम चबइ/ ३९१॥ 'तितरइ' जपई दासी एक, “गउख हेठि वइठ3' खुविवेक'””? ते' देखण गडखइ गज-गती', आवी' बेठी' पद्मावती ३२२॥ जाली' माहे जोचरइ जिसई', व्यासई दीठी पद्मिणि तिसह ततखिर्ण व्यास चली वीनव३", “सौमी'! पद्मिणि देखउ/ हवइ* ३२३ रतन-जडी' देखउ' जालिका, ते माहे दीसइ' बालिका आलिम' उंचु' जोचइ” जिसइ, परातिख' दीठी पद्सिणि” तिसइ' ३२४ “अहो!! अहो! कह पदमिणि!?? रंभ' कहुं, कइ कहूँ रुखमिणी"? लागकुमरि कई का किंनरी? इंद्राणी' ऑणी अपहरी? ३५०॥

ल्लचजिजजलजजनजि जज जज ड़

मयूरया 800। गिंडूजा 8, गिडूवा गीदवा ०। भणिज्जई 8, सणीजइ भणीजै ए४5 | १० तसु 808। ११ दोवडी ०, दुष्पती ए। १२ दसलखें 58, दसलखे ०, दुहलखे ०, दहलर 8। १३लिद्धी 85, लद्बी ०. लूघी 9। १४ कुसम 800 १५ प्रदकूल ०॥ १६ सेज 807४। २७ दिद्वी 8ए5, दिधी ०। ?८ सुलताण एछ0, सुलतोन ए8छ। १५९ सुनि 28। २० बिरह ०। २१ विथा 75%, वृधा 0 विथा 0। २२ क्षिण झछठएघ २३ खमें 7४। २४ पदिमिणि ०, पदमणि 7

२५ सिंगार 80। २६ सजि 5। २७ सेज 9, सेजइ ०0, सेजै ए8छ। २८ रमें एछ। & ११२। ३५७ | 0 ३५६ ।9 3८८ | ४द५।

३२० ओर ०। देखे ०8। पदिमिणि 0, पदमणि ०, पदमिन 8। जे 8098। देखे ए४। ब६ते7। गहिलो 05 गहिले। ०। पुन्य छ5, पुनि पखइ 8, पे 98। १० किम

म्0ए8। ११ मिले 9४8) १२ जिण ०8। १३ दीठईँ 8, दीठइ ०, दींढे 28॥ २१४ भपछर 2 | १० ग्व्‌ 78॥ १६ गे एछ।

३२१ भने ०, भने सुल्ताण 5, सुल्तानि चुछतॉन ०। हें बात ०॥। करे ०, करे 5 सुजाण 8०। तिण एछ। अवसिरि ०0। प्रदमणि 0, पदमिन छ। चींतवश ४8; चितव ०, यौतवै 8। १० देख -चवर्श देखो « किस - « किसो «हुवे ०, आलम केहवेजे एम चर्च £।

॥३२२॥ तितरइ ७, तितरे ०, तितरे 5। जप ए8। गोस्ि ०0, गोख 5। बेठो बैंठो वेठो 8। सुविवेक ०। 5 गोखि ०, गोसइ 7०, तसु भुख देखण तव गज-गती आवइ 0, आचे ए8। वयठी 5, वड्ठी बैठी 0, गोखे

३२३॥ जालिका माहद